कहानी- प्रतिबद्ध 2 (Story Series- Pratibadh 2)

मयूरी स्वामीजी की चर्चा में शामिल नहीं होना चाहती थी, पर सभी उनके प्रवचन का सार उससे सुनना चाहते थे. क्या सुनाए वह? उसके जीवन में एक तूफान आ गया था. जिस अपराध को उसने किया ही नहीं, उसी का कहर उस पर टूटा जिसके पश्‍चाताप की ज्वाला में वह आजीवन जलती रही.

रात्रि का दूसरा पहर समाप्त होने को था, पर उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी. हवा का एक तीव्र झोंका आया और अतीत पर जमी गर्द ऊपर उठती गई, जिसने भूली-बिसरी स्मृतियों  को तीक्ष्ण कर दिया. रात की घनी नीरवता में सिमट कर वह अतीत के गलियारे में भटकती अपनी किशोरावस्था में जा पहुंची.

उसने चोर दृष्टि से उन्हें देखा. उनकी निष्पाप दृष्टि को देख उसे अपनी भूल का एहसास हुआ. उनके चेहरे पर एक दिव्य मुस्कान थी. उन्होंने अपनी मोहक एवं शांत दृष्टि मयूरी के चेहरे पर टिका कर पूछा, “कैसी हो मयू? परिवार में सभी कुशल-मंगल से हैं?”

मयूरी क्षणभर को जड़वत रह गई. उसकी चेतना ने उसका दामन छोड़ दिया. अपनी सुध-बुध बिसरा कर उसने भी उस समंदरी आंखों की गहराई में झांका. उसके मस्तिष्क में जैसे भूचाल-सा आ गया. आंखों में अनेक प्रश्‍न कौंधने लगे. किसी तरह से उसने संयतपूर्वक सजल नेत्रों से कहा, “सभी ठीक हैं.”

“सोचा नहीं था कि जीवन की इस प्रौढ़-गोधूली में तुमसे भेंट हो जाएगी. मन पर नियंत्रण रखो मयू… ईश्‍वर जो करता है, अच्छा करता है. ईश्‍वर तुम्हें सुखी रखें.”

स्वामीजी से मिलने कुछ लोग वहां पर आ गए. सबों को बातों में मशगूल देख मयूरी पीछे जाकर बैठ गई. प्रसाद लेकर स्मिता जब आयी तो वह मयूरी को देख घबरा उठी, “क्या बात है मयूरी? तबीयत तो ठीक है?”

“हां, यूं ही ज़रा सर चकरा गया था.” मयूरी ने टालने के उद्देश्य से कहा. “कितनी बार कहा है ब्लड प्रेशर चेक करवा लो. बत्रा अस्पताल में मेरे अंकल डॉक्टर हैं… चलो तुम्हारा कल चेकअप करवा दूं.”

“अरे नहीं यूं ही…”

“मयूरी जीवन के जिस पड़ाव पर अभी हम हैं, उसमें सतर्कता की बेहद आवश्यकता है अन्यथा वृद्धावस्था भयावह हो जाएगी… अभी से ध्यान रख… मैं तो हमेशा अपना चेकअप कराती हूं. वृद्धावस्था का भय मुझे अभी से खाए जा रहा है.”

कमरे में हलचल बढ़ जाने से उन्होंने दृष्टि फेरी तो देखा सभी स्वामीजी को विदा करने कमरे से बाहर जा रहे हैं. स्मिता तेज़ी से द्वार की तरफ़ बढ़ गई, पर मयूरी वहीं शिला सदृश बैठी रही. शिष्टाचारवश उसने भी उठने की चेष्टा की तो दृष्टि उस स्वामी से जा मिली.

स्वामीजी के जाने के बाद सभी उनकी विद्वता का बखान करने में लगे थे. मयूरी ने स्मिता को घर लौटने का अनुरोध किया. मयूरी की अस्वस्थता को देख स्मिता मयूरी को लेकर लौट गई.

मयूरी स्वामीजी की चर्चा में शामिल नहीं होना चाहती थी, पर सभी उनके प्रवचन का सार उससे सुनना चाहते थे. क्या सुनाए वह? उसके जीवन में एक तूफान आ गया था. जिस अपराध को उसने किया ही नहीं, उसी का कहर उस पर टूटा जिसके पश्‍चाताप की ज्वाला में वह आजीवन जलती रही.

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रात्रि का दूसरा पहर समाप्त होने को था, पर उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी. हवा का एक तीव्र झोंका आया और अतीत पर जमी गर्द ऊपर उठती गई, जिसने भूली-बिसरी स्मृतियों  को तीक्ष्ण कर दिया. रात की घनी नीरवता में सिमट कर वह अतीत के गलियारे में भटकती अपनी किशोरावस्था में जा पहुंची.

उस वर्ष उसने कॉलेज में दाख़िला लिया था. गर्मी की छुट्टियां होते ही उसे अपने चाचा की शादी में गांव जाना पड़ा. जीवन में पहली बार वह किसी गांव को देख रही थी. गांव के स्वच्छ एवं उन्मुक्त वातावरण में उसने बेहद आनंद का अनुभव किया.

गांव का सामाजिक जीवन आपसी रिश्तों की सुनहरी डोर से बंधा था. हर रिश्ते का एक नाम था. पड़ोस में रहनेवालों को सभी चाचा, ताऊ या मामा कहकर पुकारते, उनमें किसी प्रकार का दुराव-छिपाव नहीं था. बच्चे अपने आंगन में कम पड़ोसी के आंगन में अधिक खेलते थे. जहां भूख लगती, वहीं खा लेते.

मयूरी के दादाजी के निकटतम पड़ोसी थे मधुसूदन दास. दोनों परिवारों में बेहद घनिष्ठता थी. मधुसूदनजी की पत्नी शादी के रस्मो-रिवाज़ को निभाने की वजह से मयूरी के दादाजी के घर पर ही अधिकांश समय बिताती. ब्याह के गहनों को देखते हुए अचानक उसे शहर से आए अपने पुत्र पुष्कर का ध्यान आया. वह हड़बड़ाकर उठ बैठी.

“गहनों को मैं बाद में देखूंगी. अपनी पढ़ाई ख़त्म करके पुष्कर कल ही शहर से वापस आया है. वह भूखा मेरी राह देख रहा होगा.”

“अरे बैठो भी… बार-बार गहनों को निकालना इतना आसान नहीं होता… मयूरी… जा पुष्कर का खाना परोस दे.”

मयूरी दिनभर पुष्कर के बरामदे में सहेलियों के साथ गप-शप लड़ाया करती थी.

उस परिवार के सभी सदस्य उसे बेहद स्नेह देते थे. पुष्कर चूंकि पिछली रात ही आया था, इसलिए परिचय नहीं हुआ था. वह स्नान करके तुरंत निकली ही थी कि उसे पुष्कर के घर जाना पड़ा.

पुष्कर अपने कमरे में बैठा किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहा था. मयूरी को अचानक देख वह आश्‍चर्यचकित हो उठा. मयूरी साधिकार रसोई में जाकर उसका खाना परोस लाई.

“ताई ने कहा है खाना खा लें. उन्हें आने में देर होगी.” कहती हुई वह फिर रसोई में चली गई.

उसके अप्रतिम सौंदर्य को देख पुष्कर अभिभूत हो उठा. उसने कमरे की खिड़की से रसोई की ओर झांका. अपने खुले लहराते केश को लपेटने में बार-बार असफल होती मयूरी उसे बेहद भोली-सी लगी. दुपट्टे को संभालते उसे कमरे की ओर आता देख पुष्कर अपनी जगह पर पुनः जा बैठा.

– लक्ष्मी रानी लाल

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मयूरी स्वामीजी की चर्चा में शामिल नहीं होना चाहती थी, पर सभी उनके प्रवचन का सार उससे सुनना चाहते थे. क्या सुनाए वह? उसके जीवन में एक तूफान आ गया था. जिस अपराध को उसने किया ही नहीं, उसी का कहर उस पर टूटा जिसके पश्‍चाताप की ज्वाला में वह आजीवन जलती रही.
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