कहानी- प्रेमाबंध 1 (Story Series- Premabandh 1)

उनकी एकलौती संतान होने के बावजूद मुझे कभी अकेलापन अनुभव ही नहीं हुआ. इसका कारण था मम्मी-पापा का ज़बर्दस्त तालमेल. घर पर मेरे लिए सदा एक अभिभावक मौजूद होता. पढ़ाई से संबंधित समस्या हो, दोस्तों के साथ हुआ विवाद हो अथवा आयु के साथ बढ़ती उलझनें हो, सब कुछ साझा करने के लिए मेरे पास मम्मी या पापा अवश्य होतें.

 

 

 

 

“आप मेरी मां नहीं हैं!”
साहिल ने अविचलित भाव से कहा. अपने दस वर्षीय बेटे के मुख से निकले इन शब्दों ने मेरे हृदय को लहूलुहान कर दिया. मुझे लगा कि क्षण भर को एयरपोर्ट पर सब कुछ थम गया हो और साहिल की आंखों में बहती घृणा उसकी आंखों से उतरकर मुझे चारों तरफ़ से घेर रही है. मैं घृणा की सरिता में डूबने लगी कि तभी मेरा मोबाइल बज उठा. इससे पहले कि मैं फोन उठाती, साहिल ने फोन मेरे हाथों से छीना और अपने कान से लगाकर बोला, “मां!”
साहिल फोन पर व्यस्त हो अपनी कही हुई बात भूल गया. पर मैं, मेरे लिए भूल जाना इतना सरल नहीं. अतीत मनुष्य के जीवन का ऐसा मौसम है, जो जाकर भी नहीं जाता. विगत के गर्भ से जन्म लेकर स्मृतियों का वर्तमान में अनाधिकार प्रवेश, अनवरत चलता रहता है. अतीत और वर्तमान के इस आबन्ध से भविष्य भी अछूता नहीं रहता. मेरे अधैर्य ने पहले मेरे अतीत और अब मेरे वर्तमान को प्रतिकूल कर दिया.
मेरे मम्मी और पापा दोनों पटना के साइंस कॉलेज में लेक्चरर थे. उनकी एकलौती संतान होने के बावजूद मुझे कभी अकेलापन अनुभव ही नहीं हुआ. इसका कारण था मम्मी-पापा का ज़बर्दस्त तालमेल. घर पर मेरे लिए सदा एक अभिभावक मौजूद होता. पढ़ाई से संबंधित समस्या हो, दोस्तों के साथ हुआ विवाद हो अथवा आयु के साथ बढ़ती उलझनें हो, सब कुछ साझा करने के लिए मेरे पास मम्मी या पापा अवश्य होतें. मैं दोनों से ही बहुत निकट थी.

यह भी पढ़ें: स्पिरिचुअल पैरेंटिंग: आज के मॉडर्न पैरेंट्स ऐसे बना सकते हैं अपने बच्चों को उत्तम संतान (How Modern Parents Can Connect With The Concept Of Spiritual Parenting)

मेरे पहले पीरियड के समय तो मम्मी किसी सम्मेलन के लिए पटना से बाहर गई हुई थीं. हालांकि मम्मी ने मुझे मानसिक रूप से इस दिन के लिए तैयार किया था. किंतु जब वह दिन आया मैं घबरा गई, पर पापा शांत रहें. उन्होंने अपने कॉलेज से छुट्टी ली और पूरे पांच दिन मुझे सामान्य करने में लगे रहें.
ऐसा नहीं था कि मुझे डांट नहीं पड़ती थी. एक बार स्कूल में की गई शरारत के कारण स्कूल में तो मुझे माफ़ी मिल गई, पर मेरी मम्मी ने प्रिंसिपल से बोलकर मुझे दंड दिलवाया. लेकिन अगर मेरी ग़लती न होती और फिर भी मुझे दंडित किया जाता, तो यही मेरी मम्मी किसी से भी लड़ने को तैयार हो जातीं. फिर सामने स्कूल की प्रिंसिपल हो अथवा मंत्री, जिसके बेटे को मैंने उसकी छेड़छाड़ से परेशान होकर थप्पड़ मार दिया था. अनुशासन और प्रेम के इस परिवेश में मेरा पालन हुआ…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

पल्लवी पुंडीर

 

यह भी पढ़ें: ज़्यादा अनुशासन न कर दे बच्चों को आपसे दूर… (Why Parents Avoid Disciplining Kids)

 

 

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Usha Gupta

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