कहानी- प्रेमाबंध 4 (Story Series- Premabandh 4)

पहले तो मैं मां बनने के लिए तैयार ही नहीं थी. संभवतः समय के साथ शिशु और मेरा बन्ध मज़बूत भी हो जाता, किंतु उस दौरान स्वयं मेरे लिए परिस्थितियां इतनी जटिल रहीं कि शिशु के तरफ़ मेरा ध्यान ही नहीं गया.

 

 

मां के गर्भाशय में भ्रूण का विकसित होना एक साधारण-सी लगनेवाली असाधारण घटना है. प्रत्येक क्षण के साथ स्त्री एक पावन प्रेमाबंध में बंधती जाती है. कुछ महीनों में वही स्त्री जन्म देती है, एक शिशु और एक मां. किंतु मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. न मुझे मेरा गर्भवती होना रोमांचित कर पाया और न साहिल का जन्म.
पहले तो मैं मां बनने के लिए तैयार ही नहीं थी. संभवतः समय के साथ शिशु और मेरा बन्ध मज़बूत भी हो जाता, किंतु उस दौरान स्वयं मेरे लिए परिस्थितियां इतनी जटिल रहीं कि शिशु के तरफ़ मेरा ध्यान ही नहीं गया. मायके आने के बाद भी मेरा ध्यान अपने काम में लगा रहता.
मैंने रिमोट वर्क ले लिया था और पूरी एकाग्रता से स्वयं को स्थापित करने में लगी रही. स्तनपान के अतिरिक्त साहिल की सभी ज़िम्मेदारियों को मेरी मम्मी ने सहर्ष अपने ऊपर ले लिया. मेरे तन ने शिशु को जन्म अवश्य दिया, लेकिन मेरा मन मां नहीं बन पाया.
मन की निर्लिप्तता को तन ने भी शीघ्र भांप लिया और चार-पांच महीने बाद ही मेरे स्तनों में दूध आना बंद हो गया. मेरे और साहिल के मध्य का एकमात्र बन्ध भी समाप्त हो गया. मैं पूरी तरह अपने काम में और मम्मी साहिल में व्यस्त हो गईं.
मेरा परिश्रम फलित हुआ और कंपनी ने मुझे मैनेजर लेवल देकर मुंबई ऑफिस जॉइन करने के लिए बुला लिया. बधाई के लिए सबसे पहला फोन मिलन का आया.

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साहिल के जन्म के बाद से मिलन का मेरे घर आना-जाना बढ़ गया था. उसके साहिल से मिलने में मुझे भी कोई आपत्ति नहीं थी. आख़िर वह उसका पिता था. वह आता, साहिल के साथ खेलता. मम्मी-पापा के पास बैठता और चला जाता.
आरंभ में हमारी बातें औपचारिक अभिवादन तक ही सीमित रहीं. उसने कभी स्वयं तलाक़ की अर्जी वापस लेने की बात भी नहीं की. लेकिन जैसे-जैसे केस की सुनवाई का दिन समीप आने लगा, उसका मेरे घर आना बढ़ गया.
मैंने उससे पूछा भी, “साहिल की कस्टडी लेने के लिए भ्रमण का व्यय बढ़ा लिया है क्या!”
उत्तर में उसने कहा, “नहीं! तुम मुझे माफ़ करके शर्मिंदा कर दो, इसलिए.”
उस दिन जो संवाद एक मौन के साथ समाप्त हुआ, वह आगे आनेवाले संवादों के लिए मार्ग प्रशस्त कर गया. जीवन में स्वयं पर विजय प्राप्त करने की तुलना में कोई बड़ा आनंद नहीं है. हम दोनों ने ही अपनी-अपनी अशक्तता पर विजय प्राप्त कर ली.
उस दिन मात्र बधाई देने के लिए उसका फोन नहीं आया. उसने मुझे अपना ट्रांसफर मुंबई करा लेने की सूचना भी दी. अतीत को पीछे छोड़ एक नया वर्तमान आरंभ करने के लिए हम दोनों मुंबई आ गए.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

पल्लवी पुंडीर

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Usha Gupta

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