कहानी- प्रेमाबंध 3 (Story Series- Premabandh 3)

मेरा मानना है कि लड़कियों में आंतरिक शक्ति होती है, जो कुछ स्थितियों तक निष्क्रिय रहती है. किंतु शक्ति के जागृत होते ही वह हर कुरीति और दुर्व्यवहार की होलिका को जलाकर भस्म कर देती है. कई महीनों की विक्षिप्त नींद के बाद जब मैं जागी, तो स्वयं को पंखे पर रस्सी बांधते हुए पाया.

 

 

 

सुंदर समय एक पक्षी होता है. घोंसला बनाकर कुछ समय को ठहरे, तो इसे अपना सौभाग्य समझना चाहिए, अन्यथा इसके स्वभाव में टिकना नहीं उड़ना है. मेरी गृहस्थी के साथ भी ऐसा ही हुआ. हैदराबाद आने के आठ महीने बाद मुझे दो बातें एक साथ पता चलीं, एक कि मेरी सास हमारे साथ रहने आ रही हैं और दूसरी कि मैं गर्भवती हूं.
मैं ऐसी किसी स्थिति के लिए तैयार नहीं थी. उस समय मेरा एकमात्र लक्ष्य अपने करियर की चुनौतियों को परिश्रम और युक्तिसंगत निर्णयों से परास्त कर मैनेजर की कुर्सी पर बैठना था. किंतु किसी भी निर्णय से पूर्व मुझे मिलन को बताना ठीक लगा. मिलन तो मेरी प्रेग्नेंसी की बात सुनकर इतने दबाव में आ गया कि तुरंत अपनी मां को फोन लगा दिया. इस फोन का लाभ यह हुआ कि एक महीने बाद आनेवाली मेरी सास दस दिन बाद ही आ गईं. माँ बनने अथवा न बनने का नितांत व्यक्तिगत निर्णय भी मुझे नहीं प्राप्त हुआ. उस समय मैं स्वयं भी अबॉर्शन को लेकर संशय की स्थिति में थी, सो मैंने अपनी सास के निर्णय को मौन स्वीकृति दे दी. पर मेरे मौन को मेरी कमज़ोरी मान लिया गया.
अपनी गर्भावस्था में घर और नौकरी की रेलगाड़ी पर उतरते-चढ़ते मुझे मेरी सास के टाइम टेबल का ख़्याल रखना पड़ता. उनके अनुसार गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं, स्त्री जीवन की एक अवस्था है, जिससे हर स्त्री को कभी न कभी गुज़रना होता है. यह एक सामान्य-सी प्रक्रिया है. सो मेरा आराम करना अथवा अपनी समस्याओं को व्यक्त करना उन्हें अखरता. मेरी पीड़ा को वो मेरा अभिनय समझतीं. ऐसे समय वे अपना उदाहरण देने में भी पीछे नहीं रहतीं. वे मुझसे नौकरी छोड़ देने की बात भी कहती रहतीं. जहां प्रतिदिन के मानसिक और मौखिक प्रताड़ना ने मुझे विक्षिप्त करना आरंभ कर दिया, वहीं मिलन मुझ पर हो रहे इस मानसिक अत्याचार से निर्लिप्त ही रहा.

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मेरा मानना है कि लड़कियों में आंतरिक शक्ति होती है, जो कुछ स्थितियों तक निष्क्रिय रहती है. किंतु शक्ति के जागृत होते ही वह हर कुरीति और दुर्व्यवहार की होलिका को जलाकर भस्म कर देती है. कई महीनों की विक्षिप्त नींद के बाद जब मैं जागी, तो स्वयं को पंखे पर रस्सी बांधते हुए पाया. सच कहूं, तो क्षण भर को मैं कुछ समझ ही नहीं पाई. और जब समझी, भय और संतोष की मिश्रित संवेदना से घिर गई. भय हुआ अपने वर्तमान से और संतोष मिला कि भविष्य अभी शेष है. मैंने तत्क्षण ही वह घर छोड़ दिया और अपने मम्मी-पापा के पास पटना आ गई.
मिलन भी आया था मुझे मनाने, वापस ले जाने. उसने मेरी प्रताड़ना को एहतियात और देखभाल का नाम दिया. आठवें महीने को गर्भावस्था का अंतिम चरण मानते हैं. इस समय शिशु का आकार ऐसा होता है कि वह गर्भाशय को घेर लेता है. अब उसके पास उछलकूद का स्थान नहीं होता. इसलिए वो इतने करवट बदलता है कि प्रतीत होता है मानो पेट में शिशु नहीं, आंदोलन पल रहा है. कम-से-कम मेरे लिए तो यह अक्षरशः सत्य था. सो मैंने मिलन को तो मना किया ही तलाक़ के लिए भी अर्जी डाल दी. मां का राजा बेटा होना एक बात है और इस राजा बेटा सिंड्रोम के पीछे अपनी कमज़ोरी को छुपाना दूसरी. अच्छा बेटा होने के लिए अच्छा मनुष्य होने से समझौता नहीं करना पड़ता…
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


पल्लवी पुंडीर

 

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Usha Gupta

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