कहानी- पुनर्जन्म 2 (Story Series- Purnjanam 2)

कहते हैं, समय हर घाव का मरहम होता है. मेरे घाव तो व्यस्तता के मारे समय के साथ भरते चले गए, पर मैं जानता था नीरा के घाव भरना तो दूर, सूखने का भी नाम नहीं ले रहे थे. मुझे दुख हो, इसलिए ऊपर से वह सामान्य बने रहने का प्रयास करती थी, पर मैं जानता था, जैसे भीषण ठंड में पानी की झील के ऊपर ब़र्फ की एक पतली परत उसके ठोस होने का भ्रम मात्र जगाती है, पर नीचे पानी तरल अवस्था में ही होता है. नीरा के घावों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी.

मेरी शर्मिंदगी नीरा से छुपी न रह सकी. उसने पूछा तो मैंने सब कुछ साफ़-साफ़ बता दिया.
“इसमें आपसे ज़्यादा मेरी ग़लती है. मधु भाभी मुझे भी तो उसका नंबर और ज़िम्मेदारी सौंप गई थीं. आप तो कॉलेज में व्यस्त रहते हैं. मुझे ही उसे बुला लेना चाहिए था. ख़ैर, देर आए दुरस्त आए. कल श्री का जन्मदिन है. मैं कुछ विशेष बनाऊंगी ही. आर्यन को भी बुला लूंगी.”
पत्नी के समझाने से मन हल्का तो हो गया, पर दिवंगत बेटे श्रीकांत की याद से मन फिर भारी हो उठा. भगवान भी कभी-कभी कितना निष्ठुर हो जाता है! कितना हंसता- खेलता छोटा-सा परिवार था हमारा. भगवान ने श्री के रूप में हमारी गोद में एक बेटा नहीं ज़मानेभर की ख़ुशियां दे दी थीं.
श्री था ही इतना प्यारा और समझदार कि हम क्या सारे रिश्तेदार और आस-पड़ोस के लोग भी उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे. नीरा तो मानो जी ही उसके कारण रही थी. वही सबकी आंखों का तारा श्री एक दिन सड़क पार करते व़क्त एक ट्रक के नीचे आ गया. दुर्घटनास्थल पर ही उसने दम तोड़ दिया था. हमारी दुनिया लुट चुकी थी.
कहते हैं, समय हर घाव का मरहम होता है. मेरे घाव तो व्यस्तता के मारे समय के साथ भरते चले गए, पर मैं जानता था नीरा के घाव भरना तो दूर, सूखने का भी नाम नहीं ले रहे थे. मुझे दुख न हो, इसलिए ऊपर से वह सामान्य बने रहने का प्रयास करती थी, पर मैं जानता था, जैसे भीषण ठंड में पानी की झील के ऊपर ब़र्फ की एक पतली परत उसके ठोस होने का भ्रम मात्र जगाती है, पर नीचे पानी तरल अवस्था में ही होता है. नीरा के घावों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी.
अठारह वर्ष के श्री को गुज़रे दस वर्ष होने को आए थे. प्रतिवर्ष नीरा उसके जन्मदिन पर उसकी पसंद के ढेर सारे व्यंजन बना डालती है. यह जानते हुए भी कि उन्हें खानेवाला हम दो प्राणियों के सिवाय और कोई नहीं है. जिनमें भी एक मधुमेह से पीड़ित है और दूसरा रक्तचाप से, पर मैं उसे यह सब कुछ बनाने से रोक नहीं पाता था. उस दिन भी डाइनिंग टेबल ढेरों व्यंजनों से सजा हुआ था. अंतर था, तो इतना कि नीरा की मेहमांनवाज़ी में आज उत्साह का पुट कुछ ज़्यादा ही नज़र आ रहा था और मैं जानता था यह अतिरिक्त उत्साह आर्यन के लिए है.

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“अच्छा नीरा, मैं चलता हूं, मेरी क्लास है.” मुझे जितना खाना था, खाकर फटाफट उठ गया.
“तुम भी थोड़ा-बहुत खाकर दवा ले लो. आर्यन पता नहीं कब आए.”
“हां, अभी ले लूंगी.” कॉलेज पहुंचने के बाद मैं हमेशा की तरह सब कुछ भूल गया था. यहां तक कि शाम को घर लौटा, तब भी मुझे कुछ पूछना याद न रहा. नीरा चाय बनाकर लाई, तो ख़ुद ही बताना शुरू कर दिया. दिनभर का जमा गुबार निकालने को उसे भी कोई नहीं मिला था.
“यह आर्यन तो बिल्कुल हमारे श्री की डुप्लीकेट कॉपी है. उस दिन मां के साथ थोड़ी देर के लिए आया था, तब मैंने ग़ौर नहीं किया था. आपने भी नहीं किया होगा. कद-काठी, हाव-भाव चलने की स्टाइल… ऐसा लगता है श्री ही सिर उठाए चला आ रहा हो. मैंने उसे यह बताया, तो वह श्री के बारे में जानने को उत्सुक हो उठा. मैंने उसे बताया कि श्री को मेरा घंटों रसोई में घुसे रहना ज़रा भी पसंद नहीं था. वह चाहता था हम तीनों साथ बैठकर टीवी देखें, कैरम खेलें या घूमने जाएं. जब भी मैं उससे पूछती क्या बनाऊं बेटा? वह तुरंत कहता, ‘कुछ भी जो जल्दी बन जाए… दाल-चावल या फिर आलू के परांठे.’ इसलिए मैं उसकी पसंद की सारी चीज़ें उसके स्कूल जाने या खेलने चले जाने पर ही बनाती थी. जानते हो यह सब सुनकर वह क्या बोला?”
“क्या?” मैंने बिना कोई उत्सुकता दर्शाए सामान्य लहज़े में पूछा. पर मेरी बेरुख़ी से सर्वथा अप्रभावित नीरा उसी उत्साह से बोले जा रही थी. “उसने कहा कि वह भी अपनी मम्मी से यही सब कहता है. उसे भी उनका घंटों रसोई में खटना ज़रा भी पसंद नहीं है. और जो-जो चीज़ें मैंने आज बनाई थीं, वे ही सब उसकी भी फेवरेट हैं.”
“तो इसमें आश्‍चर्य जैसी क्या बात है? एक विशिष्ट आयुवर्ग के बच्चों की पसंद और बहुत-कुछ बातें एक जैसी ही होती हैं.” मुझे नीरा का इस तरह ज़रूरत से ज़्यादा उत्साहित और उत्तेजित होना रास नहीं आ रहा था. पर वह थी कि मेरा मनोविज्ञान समझ ही नहीं पा रही थी.
“दीपक, मुझे तो ऐसा लगता है हमारा श्री ही पुनर्जन्म लेकर हमारे सामने आ खड़ा हुआ है.”

      संगीता माथुर

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Usha Gupta

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