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साउथ पोल पहुंचकर कैसा लग रहा था? वहां पहुंचने का अनुभव शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. नीचे दूर-दूर तक पसरी बर्फ की चादर और ऊपर कभी न ख़त्म होने वाला आसमान. ऐसा लगता था बस, थोड़ी देर बाद ही क्षितिज तक पहुंच जाएंगे, हमें धरती का कोना मिल जाएगा. आसमान, धरती, चांद-तारे.. वहां से हर चीज़ ख़ूबसूरत नज़र आती थी, हर चीज़ को निहारने का अलग ही अनुभव होता था. वहां पर कोई जीवन नहीं है, लेकिन उस जगह पर ग़ज़ब की एनर्जी है. इतनी शांति मैंने कभी महसूस नहीं की. यकीन ही नहीं होता था कि ये भी धरती का ही एक हिस्सा है. एक अलग ही दुनिया थी वहां, जिसकी स़िर्फ कल्पना की जा सकती है, जिसे स़िर्फ महसूस किया जा सकता है. मैं ख़ुद को भाग्यशाली मानती हूं कि मुझे वहां जाने का मौका मिला. सच कहूं तो मुझे फिर वहां जाने की इच्छा होती है. आपने साउथ पोल मिशन कितने दिनों में पूरा किया? हम 7 देशों की 7 महिलाएं अपने लक्ष्य को पाने के लिए जी जान से मेहनत कर रही थीं और आख़िरकार 29 दिसंबर 2009 के दिन हमें मंज़िल मिल ही गई. अंटार्टिका के तट से 900 कि.मी. स्कीइंग करके जब हम साउथ पोल पहुंचे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि हमने ये कर दिखाया है. 38 दिनों तक लगातार स्कीइंग करते हुए अंटार्टिका पहुंचना आसान काम नहीं था. हम सब एक-दूसरे से गले लगकर रो रहे थे. साउथ पोल पहुंचकर हम वहां दो दिन ठहरे थे. वो दो दिन मेरी ज़िंदगी के बेशक़ीमती दिन हैं. ़कुदरत का इतना ख़ूबसूरत नज़ारा शायद ही कहीं देखने को मिले. हमसे पहले भी कई लोगों ने वहां पहुंचने की कोशिश की, लेकिन क़ामयाब नहीं हो पाए. साउथ पोल मिशन में आपके पति ने आपको कितना सपोर्ट किया? मेरे पति लवराज भी माउंटेनियर हैं इसलिए वो मुझे और मेरे काम को अच्छी तरह समझते हैं. लवराज अब तक पांच बार एवरेस्ट होकर आए हैं (उन्होंने इतनी सहजता से बताया जैसे एवरेस्ट न हुआ गली का नुक्कड़ हुआ) और एक बार कंचनजंघा भी पहुंचे हैं. लवराज को 2014 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. मेरे अंटार्टिका जाने के ़फैसले और तैयारी में उनका बहुत बड़ा योगदान है. जब मैं अंटार्टिका के मिशन से लौटी, तो लवराज दिल्ली एअरपोर्ट पर बैंड-बाजा के साथ मेरे स्वागत में खड़े थे. शादी के बाद पार्टनर का सपोर्ट बहुत ज़रूरी होता है. मैं ख़ुशनसीब हूं कि लवराज क़दम-क़दम पर मेरे साथ होते हैं. आप और आपके पति एक ही प्रोफेशन में हैं, आपकी लवराज से पहली मुलाक़ात कब और कैसे हुई थी? लवराज से मेरी पहली मुलाक़ात लेह में हुई थी, जब वो पहाड़ चढ़कर लौट रहे थे और हम पहाड़ चढ़ने जा रहे थे. फिर मुलाक़ातों का सिलसिला बढ़ा. हम दोनों के शौक़, जीने का तरीक़ा, प्रोफेशन एक जैसे थे इसलिए जल्दी ही हम ये महसूस करने लगे कि हम एक-दूसरे के लिए ही बने हैं. हमने हमेशा रोमांचक यात्राओं को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया है. (हंसते हुए) शादी के बाद भी घर में रोमांस का कम और प्रकृति का ज़िक्र ज़्यादा होता था.यह भी पढ़ें: मिलिए भारत की पहली महिला फायर फाइटर हर्षिनी कान्हेकर से
अब आपके आगे के क्या प्लान्स हैं? प्रकृति ने मुझे बहुत कुछ दिया है, अब मैं प्रकृति का कर्ज़ चुकाना चाहती हूं. मैं पर्यावरण के लिए काम कर रही हूं, लोगों को पर्यावरण का महत्व और उसे बचाए रखने के बारे में बताती हूं, ग्रुप माउंटेनियरिंग के लिए जाती हूं, आगे भी बहुत काम करना चाहती हूं. मेरी ख़्वाहिश नॉर्थ पोल (उत्तरी ध्रुव) तक पहुंचने की भी है. मैंने दुनिया के एक छोर को छू लिया है, अब दूसरे छोर को छूना चाहती हूं. आप एक मां भी हैं, क्या कभी मातृत्व आपके करियर के आड़े आया है? मां बनने के बाद कुछ समय के लिए मैंने अपनी गतिविधियां कम कर दी हैं, ताकि अपने बेटे को पर्याप्त समय दे सकूं. अभी वो छोटा है इसलिए उसे मेरी ज़रूरत है और उसके साथ रहना मुझे बहुत अच्छा लगता है. फिलहाल मैं स्कूल, इंस्टिट्यूट्स में पर्यावरण और एडवेंचर स्पोर्ट्स पर लेक्चर देने जाती हूं. मेरे लिए एक और ख़ुशी की बात ये है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा जल्दी ही मुन्स्यारी (पिथौरागढ़) में पंडित नैनसिंह माउंटेनियरिंग इंस्टिट्यूट शुरू होने जा रहा है, जिसका ओएसडी मुझे नियुक्त किया गया है. रीना धर्मशक्तू और उनके पति लवराज की उपलब्धियां * रीना को वर्ष 2010 में राष्ट्रपति द्वारा तेज़िंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड मिला है, ये अवॉर्ड अर्जुन अवॉर्ड के समान ही है. लवराज को यही अवॉर्ड वर्ष 2003 में मिला है. * लवराज को वर्ष 2014 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. - कमला बडोनी
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