कहानी- प्यार जैसा कुछ नहीं, लेकिन… 2 (Story Series- Pyar Jaisa Kuch Bhi Nahi, Lekin… 2)

 

“क्या है? थप्पड़ खाना है क्या…”
लेकिन वह न तो सहमा और न ही मेरे सामने से हटा. मुस्कुराते हुए अपनी पैंट की जेब में कुछ टटोलते-टटोलते बोला, “नहीं, नाश्ता करके आया हूं. फिर कभी आराम से खा लूंगा. अभी तो आपको कुछ देना था.”
उसकी ढिठाई ने मेरे ग़ुस्से को और बढ़ा दिया. मैं समझ गई कि मजनू जी अपने प्रेम की पाती लेकर उपस्थित हुए हैं.

 

 

 

 

… वहां एक लड़का होंठों पर टेढ़ी मुस्कान लिए खड़ा था. आंखों की बेशर्मी नज़र नहीं आ रही थी. जनाब ने काला चश्मा जो चढ़ा रखा था. सफ़ेद धोती के ऊपर डाली गई पतली सफ़ेद चादर के नीचे से उनका पीला जनेऊ भी झांक रहा था. मुझे उस पर ग़ुस्सा तो बहुत आया, लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ कहती, बरसात थम गई.
हां, लेकिन, निकलने से पूर्व मेरी आंखों ने मेरे ग़ुस्से को दिखा अवश्य दिया. यदि आंखों में जलाने की ताक़त होती, तो उस दिन हीरो वही जलकर राख हो जाता. मेरे लिए तो वह मुलाक़ात वहीं ख़त्म हो गई. लेकिन उसके हिस्से की कहानी तो बस शुरू ही हुई थी.

यह भी पढ़ें: कैसे जानें, यू आर इन लव? (How To Know If You’re In Love?)

 

मैं उससे कभी नहीं मिली, पर वो मुझसे मिलता रहा. हर सुबह गली के मोड़ पर खड़ा हो जाता और मुझे आता-जाता देखता रहता. मेरे कॉलेज जाने का समय बदलता रहता, लेकिन उसका इंतज़ार मुझे वहीं मिलता. मेरे लिए उसकी मौजूदगी कुछ नहीं थी, लेकिन जब भी गरिमा मुझे उसके होने के बारे में बताती, न मालूम क्यों मुझे अजीब-सी बेचैनी होने लगती. हालांकि एक साल तक उसने एक शब्द भी नहीं कहा, लेकिन ना मालूम क्यों मेरा ग़ुस्सा उस पर बढ़ता ही गया, इसलिए जब उस सुबह वह मेरे सामने आकर खड़ा हुआ, मैं फट पड़ी.
“क्या है? थप्पड़ खाना है क्या…”
लेकिन वह न तो सहमा और न ही मेरे सामने से हटा. मुस्कुराते हुए अपनी पैंट की जेब में कुछ टटोलते-टटोलते बोला, “नहीं, नाश्ता करके आया हूं. फिर कभी आराम से खा लूंगा. अभी तो आपको कुछ देना था.”
उसकी ढिठाई ने मेरे ग़ुस्से को और बढ़ा दिया. मैं समझ गई कि मजनू जी अपने प्रेम की पाती लेकर उपस्थित हुए हैं. मैं भी मन-ही-मन तैयारी करने लगी, ‘आज तो बेटा तेरी खैर नहीं. ऐसा सबक सिखाऊंगी कि क ख ग लिखना तक भूल जाएगा.’
मैं अभी ख़्यालों में प्लानिंग कर ही रही थी कि गरिमा ने कोहनी मारी. मैंने देखा वो लड़का एक सफ़ेद लिफ़ाफ़ा मेरी तरफ़ बढ़ा रहा है. ग़ुस्से में बिदकती हुई मैं चीख पड़ी, “दिमाग़ ख़राब है तुम्हारा. अभी पापा को बुलाऊं ?”
मुझे लगा कि पापा का नाम लेने से वह डर कर भाग जाएगा, लेकिन वह बेशर्म तो मुस्कुरा रहा था. इससे पहले कि मैं कुछ और कहती, उसने मेरी दाहिनी हथेली में ज़बरदस्ती लिफ़ाफ़ा ठूंस दिया और चला गया. मुझे बिजली का झटका-सा लगा हो जैसे.

यह भी पढ़ें: नाम के पहले अक्षर से जानें अपनी लव लाइफ (Check Your Love Life By 1st Letter of Your Name)

 

मारे ग़ुस्से के मैंने लिफ़ाफ़ा फेंक दिया, लेकिन उतावली गरिमा ने लपककर उसे उठा लिया. वह तो ऐसे ख़ुश हो रही थी मानो परीक्षा के पहले प्रश्नपत्र हाथ लग गया हो.
“अभी फेंक दे इसे.” मैंने गरिमा की तरफ़ आंखें तरेरते हुए कहा. लेकिन जब तक मेरी बात पूरी होती, तब तक वह लिफ़ाफ़े में झांक चुकी थी.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

पल्लवी पुंडीर

 

 

 

 

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

 

 

डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli