कहानी- स्क्रीन के उस पार 2 (Story Series- Screen Ke Uss Paar 2)

प्रशांत और अपर्णा को झारखंड आए चार महीने हो चुके थे. दोनों की दिनचर्या बदस्तूर जारी थी. आज प्रशांत थोड़ा चहकते हुए ऑफिस से आया. “कहां छिपी हो अपर्णा डियर? तुम्हारे लिए एक ज़बर्दस्त गुड न्यूज़ है.” अपर्णा भागती हुई आई, “क्या हुआ?”

रहती भी हैं, तो हमारे लिए उनकी अहमियत कम हो जाती है. उन्हें करने की बजाय हम तब तक फ़ालतू चीज़ों के पीछे व़क्त जाया करते हैं, जब तक ज़िंदगी हमें दोबारा मसरूफ़ न कर दे. अपर्णा की भी यही कहानी थी.

शाम को तय समय पर प्रशांत घर आ गया, “और सुनाओ क्या गतिविधि रही दिनभर की? सोशल मीडिया पर कमेंट्स के अलावा भी कुछ लिखा या यूं ही टाइमपास कर दिया.”

“एक प्लॉट डेवलप कर रही हूं.” प्रशांत के ताने से आहत अपर्णा ऊंचे स्वर में बोली.

“कहां? डायरी में लिखकर?”

“नहीं दिमाग़ में.”

“फिर तो हो चुका डेवलप.” प्रशांत कुढ़ा.

“अच्छा ये मज़ेदार फोटो देखो.” अपर्णा बात पलटते हुए उसे मोबाइल पर एक फोटो दिखाने लगी.

“याद है ना मेरी सहेली रश्मि, वैसे कभी छपरा से बाहर नहीं निकली, मगर अब अंडमान घूम रही है. सिर पर घूंघट रखनेवाली स्विमिंग सूट में… वो भी इतनी बड़ी बिंदी लगाए हुए… कैन यू इमैजिन.” लहज़ा मज़ाकिया था.

“यार, जब मेरे साथ बैठती हो, तो इस बला को दूर रखा करो.” प्रशांत उसके हाथ में मोबाइल देखते ही चिढ़ जाता था. उसने मोबाइल लेकर दूर स्टडी टेबल पर रख दिया.

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कुछ इधर-उधर की बातों के बाद अपर्णा ने पूछा, “सुनो, क्या तुम्हें कुछ दिनों की छुट्टी नहीं मिल सकती? जब से आए हैं, इसी घर में कैद हूं. इस सुनसान जगह पर कहीं घूमने-फिरने का स्कोप भी नहीं है. कहीं बाहर चलें? सुना है, आसपास बड़े ख़ूबसूरत हिल स्टेशन हैं. मेरा चेंज हो जाएगा.”

“हम्म. देखते हैं.” चाय पीते हुए प्रशांत अपर्णा को बड़े ध्यान से देख रहा था. बड़ी बेचैन और कंफ्यूज़ नज़र आ रही थी वह. उसका मन जैसे हिरण की गति से इधर-उधर कुलांचे भर रहा था. उन सभी जगहों, उन सभी लोगों के बीच, जिनके उसने दिनभर सोशल मीडिया अपडेट देखे थे. वह एक जगह टिककर बैठ भी नहीं पा रही थी.

तभी अपर्णा चाय छोड़ मोबाइल की ओर दौड़ी. प्रशांत हड़बड़ा गया, “अरे, क्या हुआ?”

“दीदी ने शाम को फोन करने के लिए कहा था, कहीं उन्हीं का फोन न हो.” अपर्णा बोली.

“पर मोबाइल पर कोई रिंग नहीं बजी थी. हे भगवान! अब इसके कान भी बजने लगे.” वह चिंतित स्वर में बोला.

“शायद कहीं बाहर से आवाज़ आई होगी. आजकल सभी की रिंग टोन एक-सी ही होती है.” वह झूठी मुस्कुराहट फेंकते हुए वापस आकर चाय पीने लगी.

प्रशांत और अपर्णा को झारखंड आए चार महीने हो चुके थे. दोनों की दिनचर्या बदस्तूर जारी थी. आज प्रशांत थोड़ा चहकते हुए ऑफिस से आया. “कहां छिपी हो अपर्णा डियर? तुम्हारे लिए एक ज़बर्दस्त गुड न्यूज़ है.” अपर्णा भागती हुई आई, “क्या हुआ?”

“तुम कह रही थी ना, कुछ दिनों के लिए कहीं घूमने चलते हैं, तो बस आज उसी की पूरी प्लानिंग करके आया हूं. मेरी लीव एप्लिकेशन भी अप्रूव हो गई है. कहां जा रहे हैं, यह तुम्हारे लिए सरप्राइज़ है, मगर मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं कि यह ट्रिप तुम्हारे जीवन का सबसे बेहतरीन और यादगार ट्रिप होगा. ट्रस्ट मी.”

“मैं तुम पर आंख मूंदकर विश्‍वास करती हूं.” प्रशांत की बातें सुन अपर्णा ने ख़ुुशी और उत्साह से उसके गले में अपनी बांहें डाल दीं. “कहां जा रहे हैं, बताओ ना? इंडिया में या कहीं बाहर?” अपर्णा ने पूछा, तो प्रशांत सोचने लगा कि वाह! पहले आसपास के हिल स्टेशन की बात कर रही थी, अब आउट ऑफ इंडिया. सच ही है बीवी को ख़ुश करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

“सरप्राइज़.” वह कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए बोला.

अपर्णा ट्रिप को लेकर बेहद उत्साहित थी. वाह! मज़ा आएगा. कितनी नई ड्रेसेस लेकर आई थी, अब तक एक भी नहीं निकली. वे सभी रख लूंगी, मैचिंग एक्सेसरीज़ के साथ. जमकर सेल्फी लूंगी और पोस्ट करूंगी. पिछले चार महीने से दूसरों की पोस्ट देख-देखकर जल रही हूं, अब उन्हें जलाऊंगी.

ख़ैर वह शुभ दिन आ ही गया. दोनों टैक्सी से गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे. रास्ता बेहद ख़ूबसूरत था. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर, लहराता बलखाता पहाड़ी रास्ता. कहीं छोटे-छोटे झरने बह रहे थे, तो कहीं ऊंचे-ऊंचे पेड़ आसमान को छूने की कोशिश कर रहे थे. अपर्णा को रास्ते में जहां भी नज़ारा अच्छा लगता, टैक्सी रुकवाकर अलग-अलग स्टाइल से सेल्फी लेती और हाथोंहाथ सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देती. प्रशांत शांत भाव से यह सब देख रहा था. पता नहीं क्यों आज वह हमेशा की तरह अपर्णा को टोक नहीं रहा था.

चलते-चलते दोनों शहर को काफ़ी दूर छोड़ आए थे. टैक्सी गांव-कस्बों से भी आगे सुनसान बियाबान रास्तों पर बढ़ने लगी. मोबाइल और इंटरनेट सिग्नल धीरे-धीरे कम होने लगे और यह क्या, एक बिंदु के बाद सिग्नल गायब. अब अपर्णा परेशान हो गई, “अरे! ये क्या हुआ?”

“रिमोट एरिया है ना, इसलिए सिग्नल का प्रॉब्लम है, मगर जगह बहुत ख़ूबसूरत है.” अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. सोचते हुए प्रशांत के चेहरे पर विजयी मुस्कुराहट खिल गई, पर अपर्णा का मुंह उतर गया. दोनों इसी बात पर नोंकझोंक करते हुए गेस्ट हाउस पहुंचे. टैक्सी से उतर अपर्णा ने चारों ओर नज़र दौड़ाई.

हिंदुस्तान में इतनी ख़ूबसूरत, भीड़भाड़ रहित और साफ़-सुथरी जगह भी है, उसे विश्‍वास ही नहीं हो रहा था, मगर सिग्नल नहीं आते. यह कमी हर ख़ूबी पर भारी थी.

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दोनों ने गेस्ट हाउस में चेक इन किया. वहां दो-चार लोग रुके हुए थे. कमरा देखकर अपर्णा को बड़ी ख़ुशी हुर्ई. कमरे की खिड़की सामने घाटी की ओर खुल रही थी, वहां से आ रही ठंडी सुगंधित हवा उसे छूकर जैसे उसका स्वागत कर रही थी. सामने खड़े देवदार के वृक्ष भी उसकी ख़ातिरदारी में जैसे सिर झुकाए खड़े थे. चिड़ियों का मधुर कलरव कानों में अमृत घोल रहा था. गहरी सांस भरकर उसने प्रशांत को बांहों में भर लिया.

     दीप्ति मित्तल

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