“तुमने टकलू कहकर मेरी कमी बताई, तब मुझे बुरा लगा, लेकिन…”
“टकलू कहने का मेरा इरादा नहीं था, बस ज़ुबान फिसल गई.”
“तुम्हारी ज़ुबान न फिसलती तो मैं अपनी सोच न बदल पाता. अब लग रहा है रिजेक्शन लड़की को कितना निराश करता होगा. लड़केवाले छोटी-छोटी, नामालूम-सी कमियां, बल्कि वे कमियां भी ढूंढ़ लेते हैं, जिन कमियों पर आमतौर पर ध्यान नहीं जाता. ऐसा कर वे अपनी बेवकूफ़ी या घमंड साबित करते हैं. सच कहता हूं, नीति भाभी के लिए मुझे पहली बार अफ़सोस हुआ.”
“मैं एक्सरसाइज़ और डायट कंट्रोल से मोटापा कम कर लूंगी. आप बाल कहां से लाएंगे?”
“कहना क्या चाहती हैं आप?”
श्रेयस की अचंभित उंगलियां अनायास चकरा रहे माथे पर जा टिकीं. सोचता था ख़ुश होकर कहेगी कल से एक्सरसाइज़ शुरू कर देती हूं. यह केश पतन बता रही है.
“क्या आप मेरी कमी बता रही हैं?”
“आप भी तो. आपको सब अच्छा चाहिए, तो मुझे भी चाहिए.”
कहते हुए श्रेष्ठी को लगा उसने अपने आत्मविश्वास को वापस पा लिया है. इधर श्रेयस को लगा श्रेष्ठता खोकर हीन हो गया है. सीधे ‘टकलू’ कह दिया. ऐसी मुंहफट लड़की के साथ गुज़र. नो मैन. यह नादान-बेवकूफ़ है या दंभी है, जो भी है ऐसी लड़कियां फ्लर्ट करने के लिए बेहतर हैं, पर शादी के लिए नहीं. उसका मुंह सूख गया. आगे कुछ कहने-पूछने की इच्छा, बल्कि साहस न हुआ. बस, इतना ही कहा, “नीचे सब लोग हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे.” वे लोग चले गए.
एक बार फिर नाकाम हुए. श्रेष्ठी की बेफ़िक्री तो देखो. श्रेयस को टकलू कहकर गुड़-गोबर कर दिया और अब पूना के लिए रवाना होते हुए कह गई, “वे लोग फोन नहीं करेंगे. तुम लोग कॉल कर बिल्कुल नहीं गिड़गिड़ाओगे कि आप लोगों ने क्या फैसला किया.”
सप्ताह बीत गया.
श्रेष्ठी के व्यवहार से लज्जित हरे कृष्ण श्रेयस के पिता को फोन करके माफ़ी मांगने का भी साहस न कर सके. वे सुस्त बैठे थे कि श्रेयस का कॉल आ गया. हरे कृष्ण से आदर से बात की और श्रेष्ठी का मोबाइल नंबर पूछा. उम्मीद का सिरा थामते हुए हरे कृष्ण ने नंबर दे दिया. अनुराधा ने श्रेष्ठी को समझाते हुए थोड़ा तमीज़ से बात करने की सलाह दी. सलाह पर श्रेष्ठी ने ग़ौर नहीं किया. श्रेयस जिस टोन में बात करेगा, वो उसी टोन में बात करेगी. वह अकड़ेगा, तो वह भी अकड़ेगी. वह तमीज़ दिखाएगा, तो वह भी दिखाएगी. श्रेयस के कॉल पर श्रेष्ठी सदमा खाई-सी लगी. नकारात्मक भाव के कारण नहीं, श्रेयस के सकारात्मक भाव के कारण.
“श्रेष्ठी, उस दिन तुमने मेरा बड़ा इंटरव्यू लिया. जानना चाहता हूं मैं रिक्रूट हुआ या नहीं.”
“क्या मतलब?”
“मैं जब तुम्हारे घर से चला, ग़ुस्से और नफ़रत से भरा हुआ था. लग रहा था कि तुम्हें कॉल करूं और दो-चार खरी-खोटी सुना दूं. मेरा उतरा चेहरा देखकर भाभी अलग सता रही थीं. लंगूर को हूर मिल रही है और क्या चाहिए. जब मेरा ग़ुस्सा शांत हुआ, तब मुझे लगा तुम्हारी साफ़गोई से मुझे ग़ुस्सा नहीं, प्रेरित होना चाहिए.”
“मैं समझी नहीं.”
“तुमने टकलू कहकर मेरी कमी बताई, तब मुझे बुरा लगा, लेकिन…”
“टकलू कहने का मेरा इरादा नहीं था, बस ज़ुबान फिसल गई.”
“तुम्हारी ज़ुबान न फिसलती तो मैं अपनी सोच न बदल पाता. अब लग रहा है रिजेक्शन लड़की को कितना निराश करता होगा. लड़केवाले छोटी-छोटी, नामालूम-सी कमियां, बल्कि वे कमियां भी ढूंढ़ लेते हैं, जिन कमियों पर आमतौर पर ध्यान नहीं जाता. ऐसा कर वे अपनी बेवकूफ़ी या घमंड साबित करते हैं. सच कहता हूं, नीति भाभी के लिए मुझे पहली बार अफ़सोस हुआ.”
“वो कैसे?”
“भैया के तिलक की रस्म हो चुकी थी, पापा ने तब भाभी के पिता से अचानक कार की मांग की थी. उन्होंने कार दी, क्योंकि अब शादी टूटती है, तो बदनामी होगी. इतने पर भी मम्मी भाभी से ख़ुश नहीं हैं. कुछ न कुछ कमी निकालती रहती हैं. अब मैं भाभी का फेवर करने लगा हूं.”
“सो स्वीट.”
“मैंने तीनों दीदियों को भी बहुत याद किया. उनकी शादियों में मम्मी-पापा ने बहुत पापड़ बेले थे. मझली दीदी की शादी के कार्ड छप गए, तब लड़केवालों का फ़रमान आया कि और कैश चाहिए. पापा ने शादी तोड़ दी. लड़केवालों ने नहीं सोचा था कि पापा ऐसी कठोरता दिखाएंगे. फिर तो लड़केवालों ने ख़ूब फोन किए कि हमारे भी कार्ड छप गए हैं. बदनामी हो रही है. आपको जो देना है, दें, न दें पर शादी होने दीजिए. पापा नहीं माने. बाद में दीदी की दूसरी जगह शादी हो गई और अच्छी हो गई, पर उस समय घर में जो मनहूस माहौल बना था, हमारी बदनामी हुई थी, तुमने अनजाने में मुझे वह सब याद दिला दिया. मैं मानता हूं लड़के फ़रिश्ते नहीं होते. उनमें भी कमी होती है. वे टकलू हो सकते हैं.”
“कहा न, ज़ुबान फिसल गई थी.”
“तुम्हारी यही ईमानदारी मुझे अच्छी लगी. तुम मुझे पसंद हो.”
“मोटापे के बावजूद?”
“यदि तुम मुझे टकलेपन के बावजूद पसंद करो.”
“मैं इस देखने-दिखाने से ऊब गई हूं. शादी नहीं करूंगी.”
“तुम्हारे दर पर धरना दूंगा, तब तो करोगी और हां, एक्सरसाइज़ मत करना. तुम मोटी ही अच्छी लगती हो.”
श्रेष्ठी ठहाका मारकर हंस पड़ी, “आप भी बाल उगानेवाली कोई भी क्रीम न आज़माइएगा. टकलेपन के कारण बुद्धिमान लगते हैं.”
श्रेयस ने भी ठहाका लगाया, “तब तो तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय.”
और दोनों एक साथ ज़ोर से हंस पड़े.
सुषमा मुनीन्द्र
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