कहानी- तुम्हारी हां तो है… 6 (Story Series- Tumahri Haan Toh Hai… 6)

सगाई हो गई. आनंद दूसरे दिन ही छह महीनों के लिए विदेश चला गया. मिलिंद के अंतर्मन में पीहू के बारे में और जानने की जिज्ञासा बलवती हो उठी. प्रखर से बातों बातों में पूछा, तो उसने पीहू के बारे में उसे सब कुछ बता दिया.

 

 

 

 

… “मैं देखती हूं…” कुहू अंदर गई. किसी तरह समझाकर पीहू को बाहर ले आई थी.
“ख़ुशी का माहौल है पीहू रंग में भंग नहीं होने देना. तू तो सब को रोते से हंसानेवाली है और तू ख़ुद आज… देख मेरी ससुराल का मामला है 1-2-3-4 स्माइल.. स्माइल प्लीज़ ना, देख मेरी इज्ज़त का सवाल है…”
कुहू के कहने के अंदाज़ पर पीहू हल्के से मुस्कुरा दी.
“यह हुई ना बात. चल जा कितनी ट्राफियां तो तूने भी जीती हैं डांस में. आज दिखा दे…” उसने पीहू के नम गाल चूमे थे. पीहू ने डांस शुरू किया, तो सब देखते ही रह गए. एक-एक करके मंत्रमुग्ध से बैठ गए.
अद्भुत आकर्षण था उसके डांस में. फोटो लेते समय मिलिंद को पत्नी मिताली याद हो आई. कुछ ऐसा ही शालीनता भरा डांस था उसका. कॉलेज डांस प्रतियोगिता में उससे मुलाक़ात हुई, प्यार हुआ और शादी हो गई. और शादी की पहली वर्षगांठ पर उसे मिट्ठू का तोहफ़ा देकर दुनिया से चल बसी. सोचते हुए दर्द के भाव उसके चेहरे पर आने-जाने लगे. वह बैठ गया.
“भैया ऐसे मुंह लटकाए रहेंगे, तो मैं यूएस से लौटूंगा ही नहीं. शुची को भी फिर समझा लेना आप…”
“पागल है क्या. मैं तो ऐसे ही थोड़ा सुस्ता रहा था. कितना नाचा हूंं… तू शुचि के पास जा, मैं अभी आता हूं…” आनंद चला गया, तो मिलिंद ने आंखें बंद कर सिर पीछे टिका लिया.
“वह शुचि की भाभी है ना, उसकी सहेली तो पहचानी-सी लगे हैं. दिवाकर जौहरी की छोरी तो नहीं..?”
“हांं, अरे हां अपने पड़ोसी की छोरी. वही तो है. ख़ूब पहचानी तुमने.” पूना से आई चंदा बुआ के ससुराल की कुछ औरतों की आवाज़ों से मिलिंद की आंखें अचरज से खुली रह गई.
“उसका तो दूल्हा साल के अंदर ही ख़त्म हो गया था, पर इसे देखो तो कौन कहेगा यह विधवा है. कैसे नाच रही है और एक साल पहले तो दिवाकर जौहरी भी भगवान को प्यारे हो गए. फिर भी देखो तो आंखें मटका-मटका कर…” उनकी खुसर-पुसर शुरू होकर ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. मिलिंद अचंभे में था. ‘जी में आया कि औरतों का मुंह तोड़ दे, पर क्या यह सच कह रही हैं… पीहू विडो…? तब तो बहुत बुरा हुआ उसके साथ. इतनी कम उम्र में कितना सदमा लगा होगा इन्हें. मेरे से ज़्यादा और कौन समझ सकता है इस बात को.’
सगाई हो गई. आनंद दूसरे दिन ही छह महीनों के लिए विदेश चला गया. मिलिंद के अंतर्मन में पीहू के बारे में और जानने की जिज्ञासा बलवती हो उठी. प्रखर से बातों बातों में पूछा, तो उसने पीहू के बारे में उसे सब कुछ बता दिया.
“वह पुणे की ही रहनेवाली थी. तीन साल पहले प्रसून के साथ अरेंज मैरिज हुई, पर प्रसून के फ्रांस जाते समय विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई. उसका सदमा इन्हें मूक कर गया, जो पीहू हमेशा चकहती रहती, सबको हंसा के रखती, बिल्कुल ख़ामोश हो गई. बस जितने में काम चल जाए, उतनी ही बात करती है. प्रसून के निधन के बाद इनके पिता भी चल बसे. पिछले वर्ष इनकी मां का भी देहांत हो गया. मायके में अब कोई नहीं रह गया. हंसती-खिलखिलाती पीहू भाभी एकदम शांत हो गई हैं.”
“भाभी…” मिलिंद आश्चर्य में था.
“हां, मैंने यह तो बताया ही नहीं पीहू मेरी पत्नी कुहू की भाभी ही है. कुहू ने ही मना किया था भाभी कहने को. हर समय भाई की याद उनके जेहन में ताज़ा हो जाती है. और फिर यहां बुआजी के ससुराल में लोग विधवा जानने पर जाने कैसा रिएक्ट करें. थोड़े पुरातन पंथी हैं. सब कुछ उल्टा-सीधा बोल जाएं और उन्हें फील हो, हम यह नहीं चाहते थे.”
“सही… ऐसे लोग आज भी होते क्यूं हैं? तमाम मिलते हैं.”
“फॉर ए चेंज हम उन्हें यहाँ ले आए कि थोड़ा घूमेंगी-फिरेंगीे, तो मन बदलेगा.”
मुंबई टूर के बचे हुए दिनों में मिलिंद को एक-दो बार और पीहू से मिलने का मौक़ा मिला, पर जितना मिला, उतना ही उसकी ओर खिंचता चला गया. आत्मीयता बढ़ी, तो जाने कब प्रेम का अंकुर फूट पड़ा, उसे पता ही नहीं चला.
मिलिंद की प्रखर से बातें हुई, तो मालूम चला मिलिंद लखनऊ में ही बजाज इंडिया में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्यरत है. मिट्ठू पापा के बिना नहीं रहना चाहता था, तो उसे वहीं सीएमएस में एडमिशन दिलवा दिया गया. छुट्टियों में वही मिट्ठू को पापा-मम्मी के पास ले आता. पापा का अपना प्रेस का काम था. उसे छोड़कर उनका लखनऊ आना बहुत कम ही हो पाता था. मिलिंद ने किराए का घर ले रखा है, जो प्रखर की ससुराल से एकदम पास है.
“चलो यह भी अच्छा है मिट्ठू की अपनी दोस्त आंटी से मुलाक़ात आसानी से होती रहेगी, बल्कि मिट्ठू की स्कूल बस का स्टॉप ही घर से 15-20 कदम पर है. आते-जाते अक्सर मैंने देखा है स्कूल.”
मिलिंद पहले चला आया था लखनऊ. प्रखर कुहू और पीहू के साथ बाद में पहुंचे. चंदा बुआ ने मिलिंद के लिए कुछ सामान भेजा था. शाम को तीनों ढूंढ़ते हुए मिलिंद के घर पहुंच गए. मिलिंद ने ही दरवाज़ा खोला.
“अरे आप लोग आइए आइए… फोन कर लिया होता. आइए बैठिए मैं कुछ लाता हूं.” वह ग्लास में कोल्ड ड्रिंक डालकर ले आया था.
“मिट्ठू कहां है?” पीहू जैसे अपने को रोक नहीं पाई थी. उसकी नज़रें इधर-उधर उसे ही ढूंढ़ रही थी.
“पीहू बड़ा याद करती है. उसी से मिलाने ले आए.”
“आज स्कूल नहीं जा सका. उसको हाई फीवर था. डॉक्टर को शक था कहीं डेंगू तो नहीं. सारे टेस्ट करवाए. कल शाम तक मम्मी-पापा भी आनेवाले हैं.
“अरे, तो हमें बताया होता, हम बगल में ही थे.” पीहू अचानक बोली.
” मेरा नंबर तो है ना आपके पास. हम उससे मिल सकते हैं क्या?” वह कुछ रुककर बोली.
“हां.. हां.. क्यों नहीं, आइए…” प्रखर और कुहू भी पीहू के साथ अंदर हो लिए.
“आंखें बंद करके लेटा है. मुझसे ग़ुस्सा है. मैं इसे मोबाइल पर गेम जो खेलने नहीं दे रहा.” मिलिन्द हल्का-सा मुस्कुराया.
पीहू ने उसे चुप का इशारा किया और दबे पांव जाकर मिट्ठू के माथे पर हाथ रखा.
“ओ वाउ आप यहां, थैंक यू दोस्त आंटी आप आ गई… पापा को मैंने कितनी बार बोला पर…” वह रूठने के अंदाज़ में बोला.
“चलिए कोई बात नहीं मिट्ठू बाबा पहले आप जल्दी से ठीक हो जाइए. फिर हम ख़ूब मिला करेंगे. मेरा घर यहां से ज़्यादा दूर नहीं…” पीहू ने ख़ुश करने की कोशिश की.
“सच्ची..?” वह फूले फूले गालों में हंस उठा, तो उसके गालों के गड्ढे साफ़ नजर आने लगे.

 

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शरीर तो पीहू का प्रखर और कुहू के साथ घर चला आया, पर मन वहीं मिट्ठू के पास ही छूट गया. पीहू और मिट्ठू दोनों को एक-दूसरे से मिले बिना जैसे चैन ना आता. पीहू स्कूल से लौट कर एक बार मिट्ठू को ज़रूर देख आती. नौकरानी को पूरा सहेज कर सारा घर भी ठीक-ठाक कर आती. मिलिन्द जब शाम को घर लौटा, तो सब व्यवस्थित पाकर हैरान रहता. मिट्ठू दवाई और खाना सही समय पर करके जल्दी अच्छा हो गया. वह समय से पढ़ने खेलने भी लगा. स्कूल से उसकी शरारतों और होमवर्क न करने की शिकायतें भी आनी बंद हो गई. सब पीहू की वजह से संभव हुआ है यह मिलिंद भी जानता. मन ही मन व पीहू का बहुत आभारी था. उनके माता-पिता हेमा और तेजेश्वर निश्चिंत हो मुंबई वापस हो लिए. पहले तो मिट्ठू का ठीक से ध्यान ना रख पाने से वह काफ़ी परेशान रहते थे. पर मिट्ठू की ज़िद के आगे कोई चारा न था. जाने से पहले वह पीहू के घर भी आए और लता व निकुंज से मिले. चारों मिलकर काफ़ी प्रसन्न हुए. चलते-चलते उन्होंने इशारे में कुछ बातें की और मुस्कुरा दिए.
“शादी में आप सब को भी आना पड़ेगा.”
“हां.. हां.. क्यों नहीं निमंत्रण पत्र का हमें इंतज़ार रहेगा.”
जाते-जाते उन्होंने पीहू के सिर पर हाथ रखा था,
“तुम तो आ रही हो ना बेटा ?” आग्रह, निमंत्रण से अधिक वचन लेने के भाव से उनके चेहरे पर मुस्कान खेल रही थी. पीहू ने बड़ी-बड़ी पलकें उठाकर निकुंज-लता को देखा…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

डाॅ. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

 

 

 

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Usha Gupta

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