कहानी- तुम्हारी हां तो है… 7 (Story Series- Tumahri Haan Toh Hai… 7)

“यह क्या..?” पीहू और मिलिन्द दोनों हैरान से खड़े हो गए. मिट्ठू पापा का हाथ छुड़ाकर पीहू के पास आया और जेब से कॉकरोच का प्रैंक पीहू के हाथ पर उछाल दिया.

“उईईईई!” पीहू के मुंह से निकला. वह डर से उछली, तो पास खड़े मिलिंद से जा टकराई.
“गुड टाइमिंग बेटा!” आनंद ने ख़ुश होकर अंगूठा ऊपर किया.
“दोस्त आंटी मेरी मम्मी बनेंगी ना?”

 

 

 

… “हां हां, हम सभी आ रहे हैं आप निश्चित रहिए.” निकुंज तपाक से बोल उठे.
आनंद वापस लौट आया था. सब जगह निमंत्रण पत्र भी बांटे जा चुके थे. पांच सितारा होटल में शादी का आयोजन था. वर-वधू दोनों पक्षों का घर मेहमानों से भर गया. आनंद तैयार होने कमरे में आया, तो असमंजस में पड़ गया. वहां दो-दो पगड़ियां और शेरवानियां रखी हुई थीं.
“पापा यह दो-दो मतलब कौन-सी पहनूं?”
“जो अच्छी लगे पहन ले…”
“भाई कहां है उनसे पूछता हूं…”
“होगा यही कहीं उससे कुछ मत पूछो इंतज़ाम में बिजी है.”
“यह क्या बात हुई पापा..?”
उधर वही हाल शुचि का था. जैसे ही वह होटल के ड्रेसिंग रूम में पहुंची, “यह क्या भाभी दो-दो लहंगे-चुनरी और गहनों के सेट. क्या पहनना है..?” मेकअप कर ब्यूटीपार्लर से आई शुचि हैरान थी.
“जो पसंद है पहन लो शुचि और दूसरा यहीं रहने दो. दोनों ही तुम्हारी ससुराल से आए हैं.”
“अच्छा..?” शुचि तब भी हैरान थी.
“चल मैं तेरी हैरानगी दूर कर देती हूं, पर किसी से कहना नहीं. यह बताओ तुम पीहू को जेठानी बनाना चाहोगी…” कुहू ने शुचि के कानों में धीरे-से कहा.
“मतलब..?”
“मिलिंद भाई, हूं… हूं!..” कुहू ने इशारे से समझा दिया और खिलखिला उठी.
“अच्छा आपने पहले क्यों नहीं बताया?”
“मुझे भी कहां पता था. यह तो जब लड़केवालों के यहां से दो जोड़े आए, तो पापा-मम्मा ने चुपके से चारों का प्लान बताया मतलब मेरे मम्मी-पापा और तुम्हारे होनेवाले मम्मी-पापा, वरना शायद पीहू यहां न आती. पर तेरे पेट में तो बात पचेगी ना?”
“ऑफकोर्स भाभी! हाय मैं तो बहुत ख़ुश हूं…” शुचि ने कुहू को गले लगा लिया.
“पर पीहू दी है कहां..?”
“उन्हें कुछ नहीं पता. बुआ के काम में लगी हैं. देनेवाले बचे आख़िरी पैकेट्स में लिस्ट से नाम लिखे जा रही हैं. बस तू उन्हें किसी तरह से यह दूसरा लहंगा पहनने को राजी कर ले. कह दे कि तू दुल्हन का जोड़ा तभी पहनेंगी, जब वह इसे पहनेंगी. बस, किसी भी बहाने उन्हें पहना देना.”
बहुत देर तक ना-नुकुर करने के बाद शुची की ज़िद के आगे पीहू को झुकना ही पड़ा. जब बुआजी भी शुचि के साथ पीहू को ज़ोर देने लगीं. कुहू लता को बुलाकर ले आई.
“हां बेटा पहन ले. देख बारात लगनेवाली है और शुचि अभी तक तैयार नहीं. तू मेरी बेटी है ना मां का कहना नहीं मानेगी? चल फटाफट पहन ले और चुन्नी कंधे पर डाल ले बस.”

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शुचि-आनंद का विवाह संपन्न हुआ. पंडित उठने लगे, तो आनंद के पापा बोल उठे.
“रुकिए पंडितजी!”
“क्या हुआ जजमान?”
“अरे, अभी बैठे रहिए एक और शादी करानी है आपको.”
शुचि की तरह उधर आनंद ने भी मिलिन्द को दूसरी शेरवानी ज़बर्दस्ती पहना दी थी कि मैं तभी पहनूंगा, जब दूसरी आप पहनोगे. उसने झट मां के हाथों पीछे से दी वह दूसरी पगड़ी बगल में बैठे मिलिन्द को पहना दी. कुहू ने पलक झपकते ही पीहू के कंधे पर पड़ी चुनरी उसके सिर पर ओढ़ा दी.
“यह क्या..?” पीहू और मिलिन्द दोनों हैरान से खड़े हो गए. मिट्ठू पापा का हाथ छुड़ाकर पीहू के पास आया और जेब से कॉकरोच का प्रैंक पीहू के हाथ पर उछाल दिया.
“उईईईई!” पीहू के मुंह से निकला. वह डर से उछली, तो पास खड़े मिलिंद से जा टकराई.
“गुड टाइमिंग बेटा!” आनंद ने ख़ुश होकर अंगूठा ऊपर किया.
“दोस्त आंटी मेरी मम्मी बनेंगी ना?”
“मगर..?” मिलिंद अचानक बेटे से सुने इस फ़ैसले के लिए तैयार न था.
“मगर-अगर कुछ नहीं… देखिए भाई, पापा-मम्मी, गोलू, मैं, शुचि, कुहू भाभी, प्रखर भैया और यह सारे अंकल-आंटी भी कितने ख़ुश हैं इस रिश्ते से… पर शायद पीहू भाभी ख़ुश नहीं…” आनंद कहते हुए मिट्ठू को दूसरा प्रैंक फेंकने का इशारा किया. पीहू घबरा उठी उसे उछालते देख.
“नहीं…”
“हां देखो पीहू भाभी ने भी मान लिया नहीं… मतलब ऐसा नहीं है. वह भी ख़ुश हैं.” सभी हंस पड़े. इस शरारत पर मिलिंद के चेहरे पर भी हल्की-सी मुस्कान आ गई.
“खुलकर मुस्कुरा दो भाई, वरना टिकल टिकल…” आनंद ने मिलिंद को गुदगुदाने के लिए हाथ बढ़ाएं, तो वह हंस पड़ा.
“यह हुई ना बात!”
मिलिंद ने प्यार से आनंद के पेट में घूंसा जड़ दिया.
“कुछ तो ख्याल कीजिए भैया. अभी-अभी शादी हुई है मेरी.” दोनों ने प्यार की झप्पी ली. लता और निकुंज पास आ गए.
“हमने बहुत सोचा बेटा, इसी में हम सब की भलाई है कि लोगों के मुंह भी बंद हो जाएंगे, वरना तुम्हें ख़ुशी से, चैन से जीने नहीं देंगे. हम अपनी पीहू को अब और खा़मोश नहीं देख सकते. उसे फिर से चहकना होगा मिट्ठू और मिलिंद के साथ. हमारी वीरान बगिया फिर से गुनगुना उठेगी. अपने नए सदस्यों के आगमन से.”
“पीहू, तुमने हमें बेटी बनकर इतनी सारी ख़ुशियां दी है. तुम्हारा घर बसाने के लिए तुम्हारा कन्यादान कर हमें बहुत ख़ुशी की बात और संतुष्टि मिलेगी. सही मायने में रिश्ता तो यही है, हमें यह हक़ दोगी ना?”
“जजमान जल्दी कीजिए बहुत शुभ मुहूर्त है निकल ना जाए.” लता-निकुंज और मिलिंद के मम्मी-पापा हेमा-तेजेश्वर ने पीहू और मिलिंद के सिर पर आशीर्वाद के लिए हाथ रख कर अपनी रज़ामंदी की मुहर लगा दी. पीहू ने मिलिंद को देखा और मिलिंद ने पीहू को दोनों जैसे कंफर्म कर लेना चाहते हों कि ‘तुम्हारी हां तो है…”
उपस्थित सभी बड़ों ने सहर्ष शुभ आशीष में हाथ उठा कर, तो प्रखर, कुहू, मिट्ठू , शुचि और आनंद ने तालियां बजाकर इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया. मिट्ठू की सबसे अलग बजती ताली उसकी अपनी अलग ही ख़ुशी बयान कर रही थी.

डाॅ. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

 

 

 

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