मेरा मन न जाने कैसा-कैसा हो आया. एयरपोर्ट पहुंचकर मेरी नज़रें उसे तलाशती रहीं. मन में कितना कुछ उमड़-घुमड़…
"गंजी दुल्हन कितनी ख़राब दिखेगी न?" अनन्या ने मेरा हाथ थामकर पूछा. आज उसके चेहरे पर एक अजीब-सी ख़ुशी थी.…
इस बार मैंने चिल्लाकर पूछा था. पता नहीं ये मेरे मन का कौन-सा डर था, जो मुझे इतना अभद्र बना…
अंकल के बारे में सोचता, तो मन कसैला हो जाता. अपनी बीमारी का बहाना बनाकर वो अपनी बात मनवा ले…
"अनन्या, तुम ख़ुद सोचो न, तुम मेरी क्या हो! सब कुछ कहना पड़ेगा क्या?" उसकी हथेली पर आया पसीना मैं…
पता नहीं क्यों मैं उस दिन हां कहते हुए शरमा गया था. लेकिन आनेवाले कुछ सालों में मुझे अपने इस…
अनन्या के पापा और मेरे पापा की दोस्ती धीरे-धीरे प्रगाढ़ होते हुए चाय-नाश्ते और साथ खाना खाने तक आ गई…
रही मेरी बात. संत कबीर कह गए हैं- ‘प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए. प्रेम की खेती नहीं…
किवाड़ राधिका ने ही खोला था. भैया साथ न होते, तो वह मुझे पहचानती भी न. कैसा तो अजब सन्नाटा…
निर्णय यही रहा कि इतना बड़ा नहीं था मेरा मन कि उसमें एक के रहते दूसरा प्रवेश पा सके. इसी…
मैंने कैसे अपने मन को वश में रखा यह कौन समझ सकता है? हर थोड़ी देर बाद बुलवा भेजतीं बुआ…
मैं बारहवीं में पहुंच गई थी और यही वह दिन थे, जब मैं आयुष के प्रति एक अजब-सी चाहत महसूस…