मैं आज भी वही तो कह रहा हूं जो सालों से कह रहा था तुम भी तो सुन रहे हो सालों…
एक दिन मैं अपनी ही धड़कनों से नाराज़ हो गया इतनी सी शिकायत लेकर कि जब तुम उसके सीने में…
सुबहों को व्यस्त ही रखा, दुपहरियां थकी-थकी सी रही कुछ जो न कह सकी, इन उदास शामों से क्या कहूं..…
मुहब्बत इस जहां के जर्रे जर्रे में समाई है मुहब्बत संत सूफी पीर पैगम्बर से आई है कोई ताकत मिटा…
मैं तन्हाई में कहां जी रहा हूं तुम एहसास की तरह मेरे साथ हो ठीक वैसे ही जैसे हमारी दुनिया…
सुनों कविताओं.. (मन का विश्वास) जबकि हिम्मत बंधाने की बजाय दहशतों के कारनामे गिना रहे थे लोग तुमने प्रेम से…
न जाने क्यों, सुबह से ज़िंदगी ढूढ़ रहा हूं बस उसे धन्यवाद देना था ख़ुद से ही अपने लिए माफ़ी…
इतनी क्यूं है हलचल मन घबराए हर पल बस जहां देखो वहीं है इस मुए कोरोना वायरस की दहशत वायरस…
मैं फिर लौट आऊंगी धूप के उजास सी कि करूंगी ढेरों मन भर बातें उस जाती हुई ओस से भी…
सुनो दोस्तों, तुम घबराना मत.. जल्दी ही हम फिर मिलेंगे जो साथी छूट गए उनकी बातें याद करेंगे कभी हंस…