मैं
तन्हाई में कहां जी रहा हूं
तुम एहसास की तरह मेरे साथ हो
ठीक वैसे ही
जैसे हमारी दुनिया में
चांद-सूरज
दूर-दूर
बिल्कुल अकेले नज़र आते हैं
लेकिन युगों युगों से
एक-दूसरे से जुड़े हैं
अपने-अपने
अस्तित्व के लिए
ब्रह्मांड में
उनका अस्तित्व
अलग दिखता है
पर है कहां?
चांद-सूरज न हों
तो धरती नहीं है
और धरती न हो तो
चांद-सूरज बेमानी…
– शिखर प्रयाग
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