*
गुज़र जानी थी ये उम्र
किसी बेनाम कहानी की तरह
कि बियाबान में फैली
ख़ुशबू और उसकी रवानी की तरह
गर ये दिल की धड़कन
तेरी आंखों के
समंदर में न उतरी होती..
*
न अफ़साने न फ़साने होते
न ही तक़दीर का मसला होता
गर फ़रिश्तों ने तेरी रूह को
धरती पे न छोड़ा होता..
*
क्यूं
गुज़रती है ज़िंदगी
बार-बार
तेरी चौखट से
उम्मीद के दामन में
तेरी तमन्ना
अभी बाकी तो नहीं है…
– शिखर प्रयाग
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