मैं पीतल नहीं सोना हूं और चमकूंगी
सितम की आंधियां कितनी चला लोगे?
स्त्री हूं दीया हिम्मत का जलाए रखूंगी
ताक़त पर कर लिया तुमने गुमान बहुत
चंदन हूं घिसो जितना भी और गमकूंगी
दीवार ऊंची बना लो निकल ही जाऊंगी
पानी सी हूं मैं भाप बन के उड़ जाऊंगी
रास्ते ख़ुद ब ख़ुद मंज़िल खड़ी कर देंगे
अपने पर जब आ गई बढ़ के निकलूंगी
सब्र की मियाद है जिस भी दिन टूटेगी
गर्म लावा सी चीरकर बहा ले जाऊंगी
जितना तपाओगे मुझको और दमकूंगी
मैं पीतल नहीं सोना हूं और चमकूंगी
डॉ. नीरजा श्रीवास्तव नीरू
मेरी सहेली वेबसाइट पर डॉ. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’ की भेजी गई कविता को हमने अपने वेबसाइट में शामिल किया है. आप भी अपनी कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…
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