मैं ज़िद्दी, बेपरवाह, अल्हड़-सा था. रोज़ पापा कहते हैं सुबह जल्दी शोरूम पहुंच जाना और मैं हूं कि हर रोज़ लेट होता हूं.
“राज, कहां हो तुम? बहुत हो गया गाना-बजाना, कब ज़िम्मेदार होगा ये लड़का.”
हमेशा की तरह मां ने मुझे पीछे के दरवाज़े से भगा दिया और मैं बाइक लेकर सीधे अपने दोस्त विक्की के पास पहुंच गया.
“राज, एक गुड न्यूज़ है. वो शर्मा अंकल के कैफेटेरिया की एक ब्रांच अपने कॉलेज के पास खुली है, उन्होंने सामने से ऑफर दिया है. शाम को उनसे मिलने जाना है.” मुझे शर्मा अंकल के कैफेटेरिया को संभालने का काम मिल गया था, मम्मी-पापा भी बेहद ख़ुश हुए.
अगली सुबह कैफेटेरिया पहुंचा, तो सब कुछ किसी कॉफी हाउस जैसा ही था, लेकिन वहां एक छोटी-सी लाइब्रेरी भी थी, जो उसे दूसरे कॉफी हाउस से अलग बना रही थी.
अक्टूबर महीने की गुलाबी शाम वैसे ही रोमांटिक होती है, उस पर मैं एक रोमांटिक गाना गा रहा था. मेरे गाने की धुन ने सबको मदहोश कर दिया था, लेकिन कोई एक था, जिस पर मेरी मधुर आवाज़ का कोई असर ही नहीं हो रहा था. वो लड़की अपनी किताब पढ़ने में ही बिज़ी थी, बीच-बीच में डायरी में भी कुछ लिखती. उसे देखकर मैं चौंक गया, अरे! ये तो वही है… हां वही तो है, जिसके साथ मैं बस में ट्रैवल करता था, इसे देखने के चक्कर में ही तो मैं बाइक को घर पर छोड़कर बस में जाता था. मैं तब 12वीं का स्टूडेंट था. कभी उससे बात नहीं की थी, लेकिन कहीं न कहीं उसकी ख़ामोशी मेरे दिल को छू जाती थी. लेकिन आज उसकी ख़ामोशी मुझे अच्छी नहीं लगी. शायद उसकी संगीत की समझ मुझसे अच्छी हो, यही सोचकर मैंने अपना रियाज़ और बढ़ा दिया.
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मेरे गाने का जादू सब पर सिर चढ़कर बोलने लगा, लेकिन जिसे इंप्रेस करना चाहता था, बस उस पर ही कोई असर न हुआ. वो मेरी तरफ़ देखती तक नहीं थी.
एक दिन घर जाते समय देखा सड़क पर भीड़ जमा है. पास जाकर देखा, तो वो लड़की खून से लथपथ थी, कोई गाड़ी टक्कर मारकर निकल गई थी. मैंने उसे अस्पताल पहुंचाया. उसके घरवालों को भी ख़बर कर दी. उसका नाम पलक था, जिसे मैं अपलक देखता रह जाता था. अगले दिन मैं उसे देखने पहुंचा, उसके घरवालों ने मुझे धन्यवाद कहा, लेकिन उसकी बेरूख़ी ने मेरी जान ले ली, उसने मुझे थैंक्स तक नहीं कहा. उसके बाद मैं कभी अस्पताल नहीं गया.
वो ठीक होकर कैफेटेरिया आई, तो मैंने देखा उसका एक दोस्त उससे साइन लैंग्वेज में बात कर रहा है. पहली बार पलक को किताबों के बाहर किसी से बात करते देखा, लेकिन वो भी उसी साइन लैंग्वेज में उससे बात कर रही थी. मुझे समझते देर न लगी कि जिसे मैं उसकी बेरूख़ी और घमंड समझ रहा था, वह उसकी मजबूरी थी. वो न सुन सकती थी, न बोल सकती थी.
मेरे दिल का हाल जानकर विक्की ने मेरा साथ दिया और उसकी मदद से मैंने साइन लैंग्वेज भी सीख ली. वैलेंटाइन डे आया और उस रूमानी माहौल में मैंने साइन लैंग्वेज की मदद से अपने दिल की बात गुनगुनाते हुए पलक से कह दी. पलक ने भी इशारा किया कि मैं बहुत अच्छा गाता हूं. जैसे-जैसे मैं गाता गया, उसकी आंखें भीगती गईं. कुछ देर बाद वो आंसू पोंछते हुए बाहर जाने लगी कि तभी उसकी डायरी नीचे गिर गई, मैंने वो डायरी उठाई, उसमें लिखा हर लफ़्ज़ उसके प्यार की गवाही दे रहा था. हर पन्ना जज़्बात से भरा था. मैंने पलक से कुछ कहना चाहा, मगर पानी में तैरते रह गए मेरे अनबोले शब्द, जो हमारे होंठों तक का सफ़र तय नहीं कर पा रहे थे. जहां शब्दों की सीमाएं ख़त्म हो जाती हैं, वहां रह जाता है स़िर्फ एहसास! हम दोनों के बीच अनायास ऐसा लम्हा आ गया था, जब पूरी ताक़त के बावजूद भी शब्दों को आकार नहीं मिल पा रहा था. इस ख़ूबसूरत एहसास का हर लम्हा हम अपने अंदर समेटना चाह रहे थे.
– नीतू मुकुल
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