ऑफिस से लौटने के बाद मैं अक्सर वॉक पर जाता हूं. तेज़ क़दमों से वॉक करने पर ताज़गी का अनुभव होता है. घर के पास ही लगभग 1.5 किलोमीटर का वॉकिंग ट्रैक बना हुआ है, जो बेहद ख़ूबसूरत है. ट्रैक के दोनों तरफ़ हवा में झूमते बड़े-बड़े पेड़ भी हैं. ट्रैक एलईडी लाइट्स से रोशन है और ट्रैफिक भी ज़्यादा नहीं है. कुल मिलाकर वॉक के लिए परफेक्ट जगह है.
उस दिन संडे था. छुट्टी के दिन मैं कुछ जल्दी ही वॉक पर निकल गया. बारिश का मौसम शुरू ही हुआ था, लेकिन उस दिन हल्के बादल छाए हुए थे. देखकर ऐसा लगा नहीं था कि तेज़ बारिश होगी. मैं बिना छतरी के ही निकल गया.
अभी आधा ट्रैक ही पार किया था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. साथ ही बिजली कड़कने लगी, बादल गरजने लगे. मौसम अचानक बदल गया. तूफ़ानी बारिश होने लगी. मन ही मन मैं ख़ुद को कोसने लगा कि क्यों बिना छतरी के निकल पड़ा. अपने आलस पर मुझे ग़ुस्सा आ रहा था. ख़ैर सबक तो मिलना ही था.
देखते ही देखते पूरा ट्रैक खाली हो गया. जिनके पास छतरियां थीं, वो आगे निकल पड़े और कुछ स्कूटर पर ही भीगते हुए हवा से बातें करते तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ गए.
आसपास कहीं कोई छिपने की जगह नहीं थी, इसलिए मैं एक घने पेड़ के नीचे ही खड़ा हो गया. सोचा कुछ तो बचाव होगा, लेकिन भीगी पत्तियों से गिरती तेज़ बूंदों ने मुझे पूरी तरह से तर-बतर कर दिया था. उस पर आसमान में चमकती तेज़ बिजली ने मंज़र को थोड़ा भयावह कर दिया था. मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं?
तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी. सामने से आती एक तेज़ रफ़्तार कार अचानक मेरे पास आकर रुक गई. उसमें से एक युवती निकली और अपना छाता मुझे थमाते हुए तेज़ी से कार में बैठकर बोली, “मैं आपको घर छोड़ देती, पर मैं अपने पापा को रिसीव करने एयरपोर्ट जा रही हूं, उनकी फ्लाइट का टाइम हो गया है…”
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इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, वो तेज़ी से आगे बढ़ गई और देखते ही देखते उसकी कार आंखों से ओझल हो गई. न मैं कुछ पूछ सका, न ही कार का नंबर नोट कर पाया. आंधी की तरह वो लड़की आई और मेरे मन में सवालों का तूफ़ान छोड़कर चली गई.
अगले तीन-चार दिन मौसम बिल्कुल साफ़ रहा, लेकिन मैं रोज़ वो छतरी लेकर जाता रहा, ताकि ‘थैंक्स’ कह सकूं, लेकिन वो नहीं दिखी. मैं निराश हो गया.
तभी एक दिन मम्मी ने कहा, “तेरे लिए एक रिश्ता आया है. शाम को लड़कीवालों के यहां चलना है.”
मैं तैयार होकर सबके साथ चला गया, तो देखा वही लड़की चाय लेकर आई. मैं उसे देखता ही रह गया और वो भी मुझे ही निहार रही थी. हम दोनों मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे. लड़की ख़ूबसूरत तो थी ही, इंजीनियर भी थी, मैं तो पहले ही उससे इंप्रेस हो गया था और अब तो बस शादी के लिए ‘हां’ कहना बाकी था.
चलते समय मैंने हौले से उससे कहा, “आज फिर मैं आपका छाता लाना भूल गया…”
“लौटाने की ज़रूरत नहीं. अपने पास ही रखिए, लेकिन शाम को उसे अपने साथ लेकर ज़रूर जाइए, जिससे कोई दूसरी लड़की आपको अपनी छतरी भेंट न कर सके.” उसके होंठों पर एक शरारतभरी मुस्कान थी. कुछ शायद उसने बिना कहे ही अधूरा छोड़ दिया था… मेरे अनुमान के लिए.
जिसने हमारी मुलाक़ात करवाई उस प्रिय छतरी के तले बरसते पानी की झमाझम में, शीतल फुहारों का आनंद उठाते मैं शाम को फिर वॉक पर निकल पड़ा… मन में पहले प्यार का मदभरा एहसास था, लबों पर गीत और आंखों में होनेवाले जीवनसाथी के प्यारभरे सपने…
– सत्य स्वरूप दत्त
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