पहला अफेयर: रूहानी रिश्ता (Pahla Affair: Roohani Rishta)
इतने सालों बाद अचानक तुम्हारा फ़ोन आया तो मैं हैरान रह गई. मैंने कहा, "इतने वर्षों के बाद मुझे अचानक कैसे याद किया?" तुमने हंसते हुए कहा "मैं तो तुम्हें एक पल के लिए भी नहीं भूला. हमारे घर में अक्सर तुम्हारी बात होती है." मैंने पूछा, "क्या बात होती है? बताओ न प्लीज़." तुमने शरमाते हुए कहा, "यही कि थी कोई एक अच्छी-सी लड़की. उसी के लिए पढ़ लेता था. मेरे इस पद पर पहुंचने में तुम्हारा बहुत बड़ा हाथ है."
अरसे बाद अचानक तुमसे पहली बार बात हुई और वह भी इस तरह. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं. फिर तुमने कहा, "बहुत दिनों से तुमसे बात करने की सोच रहा था, पर हिम्मत ही नहीं हो रही थी." मैंने पूछा, "क्यों?" तुमने कहा, "यही सोचकर कि न जाने कौन फ़ोन उठाएगा?" मैंने कहा, "अब हम बच्चे थोड़े हैं, युवा बच्चों के माता-पिता हैं."
तुमने बहुत-सी बातें की और फिर कहा, "तुम जानती हो, मैं तुम्हें स्कूल के दिनों से ही प्यार करता रहा हूं. जब तुम स्कूल की प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी तो मैं तुम्हें जी भर कर देखा करता था. तुम्हारा नाम अपनी क़िताबों में न जाने कितनी बार लिख दिया करता था. मैं अपने घर से स्कूल के लिए तभी निकलता था, जब तुम निकलती थीं. हम कक्षा में सबसे आगे की सीट पर बैठा करते थे.
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उसके बाद हमारी साथ-साथ नौकरी लगी. एक बार तुम मुझे बस में मिलीं. उस दिन भी हम पास-पास बैठे थे. एक-दो औपचारिक बातों के सिवाय हमने कोई ख़ास बात नहीं की." तुमने कहा, "मैं सारे रास्ते अपने दिल की बात कहने के लिए हिम्मत जुटा रहा था, पर कह नहीं पाया. तुमने सोचा कि कहीं मैं नाराज़ न हो जाऊं. इसलिए पहले कुछ बनना चाहते थे. तुमने सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा दी और उसमें पास भी हो गए, पर तब तक मेरा विवाह हो चुका था. तुम बिल्कुल टूट चुके थे. दस दिनों तक तुम्हारी तबीयत बहुत ख़राब रही. उसके बाद तुम अधिकारी बन कर नई जगह पर चले गए और मेरी यादों के सहारे जीने लगे."
"अकेले में मैंने तुमसे कितनी बातें की हैं. तुम्हारा नाम मैंने अपने हस्ताक्षर में मिला लिया और अब हर रोज़ तीन-चार सौ चिट्ठियां साइन करता हूं. मेरा पासवर्ड भी तुम्हारे नाम से ही है. मैंने तुम्हें अपनी ज़िंदगी में किस तरह से मिला लिया है, इसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकती. तब से आज तक तुम्हारी यादों के सहारे अपना जीवन बिता रहा हूं.
मैंने शादी की, मेरे बच्चे भी हैं. समाज में रहकर समाज के नियमों का पालन तो करना ही पड़ता है, पर आज भी मैं तुम्हें भुला नहीं पाया. तुमसे मेरा रूहानी रिश्ता है. मैं चाहता तो पहले भी तुम्हारा पता लेकर तुमसे मिल सकता था, पर उससे क्या होता? तुम अपने परिवार में ख़ुश थीं. मेरे लिए इससे बढ़कर और कोई ख़ुशी नहीं थी. हमेशा तुम्हारे सुख की कामना करता हूं. स़िर्फ एक ख़्वाहिश थी कि मरने से पहले तुमसे यह पूछूंगा कि क्या तुम भी मुझसे प्यार करती हो?"
यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: हमसफ़रमैं अतीत में खो गई. "इतने वर्षों तक तुम अकेले ही जलते रहे और उसकी आंच तक मुझे नहीं आने दी. मैं भी शायद तुम्हें प्यार करती थी. निगाहें तुम्हें ही खोजती थीं. कक्षा में इतने पास-पास बैठने पर भी हमने कभी एक-दूसरे से बात नहीं की थी. तुम पढ़ाई में बहुत अच्छे थे, मैं भी ठीक थी. स्कूल में न सही स्कूल के ऑर्नर बोर्ड पर तो हम दोनों के नाम एक साथ हैं." और तुम रोने लगे. तुम कितने भावुक हो! तुम्हारा प्यार कितना गहरा है. कितना आत्मिक है, यह सोचकर मेरा मन श्रद्धा से झुक जाता है.
- गुरुशरण