Short Stories

कविता- पंख… (Poem- Pankh…)

एक छवि बसी हुई है
अब तक आंखों में
बड़े जतन से
मेरा कुरता प्रेस करते हुए..

एक छवि
पहला कौर
मुझे खिलाने को
उठे हुए हाथ की
जिसे अपने से ज़्यादा
परवाह है मेरी भूख की..

एक छवि
घबराकर मुझे अपनी ओर
खिंचती हुई
सड़क पर चलते हुए
पीछे से आती गाड़ी से
बचाने के लिए..

जीवन के पन्नों पर
ऐसी कितनी ही छवियां
अंकित है
हर दिन मैं देखती हूं
एक नई छवि
उभर आती है
तुम्हारे समर्पण की,
स्नेह की, प्रेम की
जो भर देती है नमी आंखों में
और होंठों पर मुस्कुराहट..

एक विश्वास तिरता है
इस घर में, मन में
कोई है जिसके रहते
लापरवाह सी हो सकती हूं मैं
जी सकती हूं
उन्मुक्त होकर
कि थामे रखेगा प्रेम तुम्हारा
हमेशा बांधे रखेगा एक डोर से..

बस यही विश्वास
पंख देता है मुझे
ऊंचे और ऊंचे
उड़ने के लिए
अपना आसमान
नापने को…

– विनीता


यह भी पढ़े: Shayeri

Photo Courtesy: Freepik

Usha Gupta

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Usha Gupta

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