व्यंग्य- एक्ट ऑफ गॉड (Satire- Act Of God)

“जैसे बाढ़, सूखा, भूकंप, कोरोना आदि सब एक्ट ऑफ गॉड की सूची में है. जैसे मेरे ऊपर आठ महीने से दूध की उधारी चढ़ी है और मैं लगातार गिरती जीडीपी के कारण तुम्हें पेमेंट नहीं दे नहीं पा रहा हूं, तो उसके लिए मैं नहीं, एक्ट ऑफ गॉड ज़िम्मेदार है.”

‘अब जा के आया मेरे बेचैन दिल को करार…’ बड़े दिनों बाद ‘एक्ट ऑफ गॉड’ समझ में आया है. अभी तक गॉड ही समझ में नहीं आया था, एक्ट कहां समझ में आता! ग़लती मेरी है, आपदा के कई अवसर पर गॉड ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया था, ‘तेरे द्वार खड़ा भगवान भगत भर ले रे झोली…’ मैं ये सोचकर घर से बाहर नहीं निकला कि कहीं चौधरी उधारी वसूलने ना आया हो. एक्ट ऑफ गॉड को एक्ट ऑफ चौधरी समझने के फेर में आत्मनिर्भर होने से रह गया! ग़लती मेरी भी नहीं, आजकल लोग अपने गुनाहों का ‘अंडा’ गॉड के घोंसले में रखने लगे हैं.
अब थोड़ा-थोड़ा एक्ट ऑफ गॉड समझ में आया. पहले जब आबादी और पॉल्यूशन कम था, तो गॉड और एक्ट ऑफ गॉड दोनों पृथ्वी पर नज़र आते थे. अब एक्ट तो रतौंधी के बावजूद नज़र आता है, मगर गॉड कोरोना की तरह अन्तर्ध्यान बना हुआ है. वो ऊपर स्वर्ग में बैठे भू लोक के लोगों को पाताल लोक के कीड़ों की तरह रेंगते देखकर चिंतित होते रहते हैं. पास खड़े सुर, मुनि, किन्नर, निशाच, देव आदि चारण गीत गाते रहते हैं, ‘दुख भरे दिन बीते रे भैया, सतयुग आयो रे…’
सितंबर की दुपहरी में सावन नदारद था, पर एक्ट ऑफ गॉड देखकर जनता गांधारी बनी नाच रही थी! ईमानदार देवता गॉड को वस्तु स्थिति से आगाह कर रहे थे, “सर! पृथ्वी लोक पर हाहाकार मचा है, पेट में आग जल रही है और चूल्हे ठंडे होते जा रहे हैं!”
गॉड के बोलने से पहले ही एक मुंहलगा चारण बोल
पड़ा, “पेट की आग को चूल्हे में डालो. आग को पेट में नहीं, चूल्हे में जलना चाहिए. आग के लिए चूल्हा सही जगह है.”
गॉड ने प्रशंसनीय नज़रों से चारण को देखा.
कल मेरे कॉलोनी में भैंस का तबेला चलानेवाले चौधरी ने मुझसे पूछा, “उरे कू सुन भारती. एक्ट ऑफ गॉड के बारे में तमें कछु पतो सै?”
“बहुत लंबी लिस्ट है, जो भी दुनिया में हो रहा है, सब एक्ट ऑफ गॉड में शामिल है.”
“मन्नें के बेरा. साफ़-साफ़ बता.”
“जैसे बाढ़, सूखा, भूकंप, कोरोना आदि सब एक्ट ऑफ गॉड की सूची में है. जैसे मेरे ऊपर आठ महीने से दूध की उधारी चढ़ी है और मैं लगातार गिरती जीडीपी के कारण तुम्हें पेमेंट नहीं दे नहीं पा रहा हूं, तो उसके लिए मैं नहीं, एक्ट ऑफ गॉड ज़िम्मेदार है.”
“मैं गॉड के धोरे क्यूं जाऊं. मैं थारी बाइक बेच दूं. इब तो मोय एक्ट ऑफ गॉड के मामले में कछु काला लग रहो. दूध कौ मामलो में एक्ट ऑफ गॉड की बजाय मोय एक्ट ऑफ गुरु घंटाल दीखे सै…”
चौधरी भी कैसा पागल आदमी है. एक्ट ऑफ गॉड को एक्ट ऑफ गुरु घंटाल बता रहा है…

सुल्तान भारती

यह भी पढ़ें: व्यंग्य- एक शायर की ‘मी टू’ पीड़ा… (Satire- Ek Shayar Ki ‘Me Too’ Peeda…)

Usha Gupta

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