व्यंग्य- गरीब आदमी का मोबाइल फोन (Satire- Garib Aadmi Ka Mobile Phone)

घर में वक़्त पर फफूंद लगी रोटी हो या न हो, लेकिन आज के जमाने में फोन तो होना चाहिए. तो इस घर में भी एक फोन है. ये फोन घर के मुखिया के पास होता है और इतनी छोटी साइज़ का होता है कि पसंद आने पर घर के चूहे उसे खींच कर बिल में छुपा सकते हैं. गरीब आदमी के फोन में रिश्तेदार के कम ठेकेदार के ज़्यादा नंबर होते हैं. गरीब के फोन पर बाहर से आनेवाली कॉल कम और मिस कॉल ज़्यादा होती है.

अगर कोई घर गरीबी की गिरफ़्त में हो, तो उसका असर घर के चूहे और बिल्ली तक पर पड़ता है. चूहे उस घर में आज़ादी से आते-जाते हैं, वहीं दूध मुक्त रसोई होने के कारण बिल्लियां घर को दूर से ही प्रणाम कर लेती हैं. गुरबत भरे घर के लोग कुपोषित, लेकिन चूहे हृष्ट-पुष्ट और इतने दबंग होते हैं कि डेढ़ साल तक के बच्चे से रोटी छीन कर चले जाते हैं! ढीठ इतने कि ये चूहे अक्सर घर की पुरानी रजाई में ही बच्चे दे देते हैं. गरीब के घर का दरवाज़ा इतना कमज़ोर और कुपोषित होता है कि मुहल्ले का कृषकाय कुत्ता तक बेरोक-टोक अंदर आ जाता है! इसके बाद भी वो कुत्ता अगर दोबारा उस घर में नहीं घुसता, तो उसकी शराफ़त नहीं, चूहों की भरमार है. (आत्मनिर्भर चूहे कमज़ोर कुत्ते को दौड़ा लेते हैं!)
ऐसे घरों में एक फोन भी पाया जाता है. जी हां, घर में वक़्त पर फफूंद लगी रोटी हो या न हो, लेकिन आज के जमाने में फोन तो होना चाहिए. तो इस घर में भी एक फोन है. ये फोन घर के मुखिया के पास होता है और इतनी छोटी साइज़ का होता है कि पसंद आने पर घर के चूहे उसे खींच कर बिल में छुपा सकते हैं. गरीब आदमी के फोन में रिश्तेदार के कम ठेकेदार के ज़्यादा नंबर होते हैं. गरीब के फोन पर बाहर से आनेवाली कॉल कम और मिस कॉल ज़्यादा होती है. गरीब आदमी मिस कॉल को ठेकेदार की कॉल समझ पलट कर फोन करता और दुखी होता है.

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गरीब आदमी का फोन और बीड़ी का बंडल एक ही जेब में होता है. कभी-कभी मजदूरी न मिलने के टेंशन में वो बंडल की जगह मोबाइल से बीड़ी निकालने की कोशिश करता है. क्या करे गरीबीवाले जिगर मा बड़ी आग है. जब बुद्धि धुआं देने लगती है, तो नोकिया फोन और नूरा बीड़ी में फर्क़ नहीं नजधर आता.
गरीब का फोन कई शिफ्ट में ड्यूटी देता है. शाम को थका-हारा गरीब जैसे ही आठ बजे सोता है उसकी पत्नी तकिए के नीचे से फोन निकालकर अपनी बड़ी बहन को फोन करती है, “दीदी, फिर ठेकेदार इनका पैसा मार कर भाग गया. इनको अब तक सारे ठेकेदार रण छोड़दास ही मिलते आए हैं. जीजाजी से कहकर कहीं ऑफिस में चपरासी या गार्ड की बढ़िया नौकरी लगवा देती.” उधर से ऑक्सीजन विहीन आश्वासन पाकर वो अपनी छोटी बहन को फोन करके बड़ी बहन की स्तुति शुरू कर देती है, “जीजाजी एक मामूली क्लर्क हैं तब इतना नखरा है, कहीं ठेकेदार होते तो आंख बड़ेरी से नीचे न उतरती. इस महीने सारे फोन मैंने ही किए उधर से एक बार भी फोन नही आया… हमारे ठेंगे से. मैं पागल हूं क्या?”
घर का बड़ा लड़का हाई स्कूल में पढ़ रहा है. वह जानता है कि दिनभर के हाड़ तोड़ काम के बाद मां भी नौ बजे तक फोन बाप की तकिया के नीचे सरका कर सो जाएगी. दस बजे फोन लेकर लड़का अपने दोस्त अकील को फोन किया, देर से फोन उठाते ही उसने पूछा, ”हां यार अब बता, क्या शर्त लगाया तूने अपनी गर्लफ्रेंड से? तूने कहा था न कि रात में शालू के बारे में कुछ बताएगा.” उधर से नींद में सिर से पैर तक डूबा अकील दीवार घड़ी देखकर भन्नाया हुआ बोला, “दो घंटे करवट बदल-बदल कर जागने के बाद अब जाकर नींद आई थी. अब तू भी सो जा यार. शालू चीज ही ऐसी है कल तुझसे मिलवाता हूं. गुड नाइट.” अब शालू से मिलने की कल्पना में बाकी रात करवट बदलने की बारी इस लड़के की थी.
गरीब आदमी का फोन भी उसी की तरह ठोकर खाकर जीता रहता है. वह इतनी बार ज़मीन पर गिरता है कि नंबर तक लहूलुहान लगते हैं. फोन के बार-बार गिरने से क्रुद्ध आदमी कभी-कभी फोन को ठेकेदार समझकर गाली देता है, “किसी दिन तुझ पर ईंट बजाऊंगा साले.”
हमारे गांव में हालात के मारे एक जमालू भाई हैं. उनका फोन उनसे ज़्यादा दुखियारा और दीन-हीन है. जमालू भाई का ये फोन एक्सपायरी डेट के बाद भी चल रहा है. फोन में बैटरी और नेटवर्क के अलावा ज़िंदा रहने की कोई निशानी नही है. उनका फोन सबके सोने के बाद नेटवर्क पकड़ता है और सुबह पांच बजे तक सबका साथ सबका विकास पर अमल करता है.
अक्सर जमालू फोन की बैटरी निकाल धूप में सुखाते हैं. पिछली नवंबर की सर्दियों में गांव जाने पर मैंने जब लगातार तीन दिन तक बैट्री को सुखाते देखा, तो कारण पूछा. बड़ी दिलचस्प कहानी बताई जमालू भाई ने.

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“चार दिन पहले की बात है, रात में पेट के अन्दर गुड़गुड़ शुरू हुई. मैं जाकर गांव से बाहर तालाब के किनारे बैठा. निवृत होकर जैसे ही मैं पानी के लिए तालाब की ओर झुका ऊपर की जेब में रखा फोन तालाब में जा गिरा. मैं कपड़ा उतार कर फ़ौरन तालाब में कूद गया. फोन निकाल कर कपड़ा पहना और घर आकर रजाई फाड़ा, रूई निकाला और फोन की बैट्री और फोन दोनों को रूई में लपेट दिया , ताकि रूई पानी खींच ले. अब तीन दिन तक धूप में बैट्री और फोन को सुखाना है. संकट में इंसान की आस्था सेकुलर हो जाती है. ऐसे में प्राणी पहलवान बाबा के साथ साथ पीर बाबा की भी परिक्रमा कर लेता है. न जाने किस भेष में बाबा मिल जाए भगवान! चौथे दिन जमालू का फोन काम करने लगा था!

– सुलतान भारती

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Photo Courtesy: Freepik

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