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मां भी नहीं समझ पाती शायद… (How To Understand Your Child Better?)

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कहते हैं बिन रोये मां भी शिशु को दूध नहीं पिलाती. पर जब बच्चा थोड़ा बड़ा होने लगता है, तो वे ये जानने लगती हैं कि बच्चा क्यों रो रहा है. भूख की वजह से या पेट दर्द की वजह से. और थोड़ा बड़ा होने पर वह जानने लगती हैं कि वाक़ई पेट दर्द हो रहा है या स्कूल जाने के नाम से पेट दर्द हो रहा है. स्कूल जाने का समय निकल जाने पर पेट दर्द छू मंतर हो जायेगा. कभी ट्यूशन न जाने के लिए कोई बहाना है.
तू सब जानती है कह देना तो आसान है पर मां सब कभी नहीं समझ पाती क्योंकि किसी भी मन के भीतर क्या उमड़-घुमड़ रहा है भला कब जाना जा सकता है. अनजाने में ही हम बच्चों की उम्र की परवाह किये बिना उनसे बड़ी उम्मीदें करने लगते हैं और उनकी भावनाओं को समझ नहीं पाते हैं. हम बच्चों से बहुत बड़ी आशाएं करते हैं. अपने सपनों को उनके माध्यम से पूरा करने के अरमानों के चलते उसे समझ ही नहीं पाते हैं. हमसे कब भूल होती है. हम समझदारी के बहाने नासमझी करते हैं, ये जानने के लिए कई बार अपने ही व्यवहार का मूल्यांकन करना भी ज़रूरी होता है. साइकोलॉजिस्टों का यह कहना कि अक्सर यह देखा जाता है कि ग़लती बच्चे के व्यवहार में नहीं बल्कि मां-बाप के व्यवहार में होती है वे ही अपने विचार, अपने स्टाइल उन पर थोपने की कोशिशों में उसे समझ नहीं पाते.
बहुत छोटी उम्र और बहुत बड़ी उम्मीदें
एक बार मेरी एक मित्र अपनी तीन साल की बेटी को ऑफिस लेकर आयी. मैंने उसे खाने के लिए बिस्कुट दिये. बड़े कांपते हाथों से उसने बिस्कुट लिया. खा ही रही थी कि मां ने डांटना शुरू किया. हाथ गंदे कर रही हो. मुंह साफ़ करो, क्यों खा रही हो. ब्रेकफास्ट करके आयी थी. डांट की एक लम्बी लिस्ट थी. उसने बिस्कुट खाना छोड़ दिया पर मेरे पुचकारने और मां को उसे कुछ न कहने की हिदायत पर उस दुबली-सी लड़की ने एक दो नहीं चार-पांच बिस्कुट खाये. उसका चेहरा अब तृप्त था पर सहमा हुआ. मैंने महसूस किया कि उस नन्हीं-सी जान को मां सुपर किड बनाना चाहती है. नन्हें कृष्ण गोपाल चेहरे पर इधर-उधर मक्खन लगे ही अच्छे लगते हैं. उन्हें पहले खाने तो दें फिर साफ-सफाई भी हो जायेगी. बहुत छोटी उम्र, खाना कपड़ों पर न गिरे, हाथ मुंह गंदे न हो खाना कपड़ों पर ही नहीं ज़मीन पर भी न बिखरे ऐसा भला क्या संभव है. उस उम्र से इतनी उम्मीदें न रखें. यदि ऐसी उम्मीदें रखेंगी तो लगेगा कि कहना नहीं मान रहा. उसकी उम्र को ज़रा समझने की कोशिश करें.
रोना-कभी नहीं रोना
गाने में भले ही यह गाना अच्छा लगे कि कभी नहीं रोना पर बच्चे रोते ही हैं. बच्चे क्या सभी रोते हैं. जब तकलीफ़ हो तो आंसू बाहर निकल जाए तो हर्ज़ ही क्या है. पर प्रश्न यह उठता है कि कोई बच्चा क्यों रो रहा है. उसका कारण क्या जानने की कोशिश की या उसे बहानेबाज समझ कर उसके रोने को यूं ही टाल दिया जाये. * बहुत छोटा बेबी ज़रूरी नहीं कि इसलिए रो रहा हो कि उसे गोद में उठाया जाये. हो सकता है जो फैंसी ड्रेस आपने पहनायी हो उसका कोई पिन उसे चुभ रहा हो या फिर जूता तकलीफ़ दे रहा है. * ये माना कि बच्चे रोकर अपनी ज़िद मनवा लेते हैं, पर हो सकता है कि उसकी ज़िद, ज़िद न हो और आप कभी भी उसकी बात तब तक न मानती हो जब तक वह रोता न हो. * बच्चा स्कूल जाते समय रोता है. पढ़ना नहीं चाहता यह ज़रूरी नहीं हो सकता है कि स्कूल में टीचर डांटती हो, कोई दूसरा बच्चा तंग करता हो उसका सामान छीन लेता हो या किसी से उसका झगड़ा हो गया हो. * कुछ बड़ी उम्र या किशोर वय का बच्चा मूड स्विंग्स के चलते तनावग्रस्त होकर छोटी-छोटी बातों से खीझ रहा है. ये भी सकता है कि चाइल्ड एब्यूज़ का शिकार हुआ हो. उसके रोेने के कारणों को आप नहीं समझेंगी तो कौन समझेगा?
बच्चे को बच्चा ही बना रहने दें
हमारे एक परिचित की बेटी सात वर्ष की उम्र में ही पूरा घर संभालती थी. घर ही नहीं दो जुड़वा छोटे भाईयों को भी वही संभालती थी. मेहमानबाजी भी उसी तरह करती थी जैसे घर की स्त्री करती है. उसके इस व्यवहार को मैं कभी सराहा नहीं सकी, क्योंकि उसकी मां ने उसका बचपन उससे स़िर्फ इसलिए छीन लिया कि तीन बच्चों की परवरिश और घर ऑफिस की जिम्मेदारी वे अकेले कैसे संभालती! जिस उम्र में बच्चे दूसरे बच्चों के साथ मिलकर धमाल मचाते हैं, सोफों पर कूदते हैं, पिलो एक-दूसरे को मारते हैं, सारे घर में इधर-उधर रेलगाड़ी बनाते घूमते हैं उस उम्र में उन्हें सब सामान क़रीने से रखने की उम्मीद करना, मेहमानों की आवभगत करना आना उसे चाय भी बनानी आनी चाहिए और दाल-चपाती भी, तो यह कुछ जल्दी ही चाह रही हैं. यकीं जाने की ये सब उम्र के साथ ही आ जाता है. मौज़-मस्ती के साल बहुत कम होते हैं. उसके बाद तो हर व़क़्त कोचिंग के चक्कर रहेंगे. उन्हें व़क़्त से पहले बड़ा बनाने की ये नाहक कोशिश न करें तो बच्चे भी सुखी होंगे और आप भी उनकी मस्ती एन्जॉय करेंगी.
बच्चा बिल्कुल नहीं सुनता
* सारा दिन शरारत और स़िर्फ शरारत यही बात तो आपको खिझाती है, पर शरारत भी नहीं करता और फिर भी कोई बात नहीं सुनता. इतना बदतमीज़, इतना ज़िद्दी कह देना आसान है, पर कभी यह सोचा कि हो सकता है उसकी लिसनिंग स्किल अपनी उम्र के मुताबिक़ विकसित न हुए हों. * उसके कान में हियरिंग की प्राब्लम हो. * उसका पढ़ने में मन नहीं लगता. हो सकता है कि लर्निंग डिसएबिलिटी हो. बच्चा हायपर एक्टिव हो सकता है या किसी अन्य बीमारी का शिकार, जिसे आप समझ नहीं पा रही हों. * हायपर एक्टिव बच्चा यदि खाने की टेबल पर आने से पहले अपने कमरे की दीवार पर बॉल मारने की अंधाधुंध प्रैक्टिस किये जा रहा है, तो समझें कि उसकी एनर्जी को कहीं चैनलाइज करने की ज़रूरत है.
बच्चा ज़रूरत से ज़्यादा चुपचाप रहता है
* यह ज़रूरी नहीं संगत बिगड़ गयी हो. * हो सकता है कि उसके किसी ख़ास दोस्त के परिवार में कुछ तकलीफ़ हो, जिसे वह आपसे शेयर नहीं करना चाहता. * हो सकता है कि उसने आप पति-पत्नी को लड़ते या अंतरंग स्थिति में देखा हो. * आपकी ज़िंदगी में चल रहे तनाव परेशानियों की वजह से भी कई बच्चे ख़ामोश रहने लगते हैं. * यही नहीं पेपर ख़राब हो गया है या सहेली से तक़रार हो गया हो उसके उस ख़राब मूड की वजह तो आपको तलाशनी होगी. * उससे संवाद आपको करना है. यदि कम्युनिकेशन नहीं कर पा रही हैं तो अपनी कोशिश जारी रखें.
आप चाहती हैं कि वे आपकी आवश्यकताएं आपका मूड समझें
* होना तो यह चाहिए कि आप समझें कि बच्चे क्या चाहते हैं. * वे कब किस बात से परेशान है उनके बोले बिना आप समझ जाएं. * उनका मूड क्यों उखड़ा है. * वे क्यों खीझ रहे हैं, आप को समझना चाहिए. पर आप यह चाहती हैं कि वो आपको समझें. * आपके ऑफ़िस में कोई प्रॉब्लम चल रही है और आप उन्हें डांट रही हैं और अपनी बेवजह डांट को उचित ठहराना चाहती हैं कि उन्हें समझना चाहिए कि मां-बाप के ऑफ़िस में प्रॉब्लम है इसलिए घूमने नहीं ले जा रहे हैं. * आप अपनी तकलीफों से इतनी आक्रांत है कि बच्चे से उम्मीद कर रही हैं कि वे आपको समझें. * घर में बर्तन वाली, सफाई वाली नहीं आयी आप सुबह से काम में उलझी हैं, सुबह से उठकर काम कर रही हैं और चाह रही हैं कि बेटी बिस्तर से उठकर आये और काम में हाथ बंटाये. * उसको काम करना सिखाया नहीं, पर अब अचानक उससे उम्मीद रख खीझ रही हैं. * पहले उन्हें अपनी तकलीफ़ की जानकारी दें फिर उम्मीद रखें पर आप तो उल्टा कर रही हैं.
बच्चों की आलोचना मत करें- प्रशंसा करें
* बच्चे हैं और उन्हें सही ग़लत की पहचान नहीं है और जब बड़े अपनी गलतियों से सीखते हैं तो बच्चे क्यों नहीं. * पर आप उन्हें उनकी ग़लतियों को लेकर हर व़क़्त डांटती हैं और एक ही ग़लती का ताना हर बार देती हैं. * उनकी ग़लती पर गुस्सा न हों, बल्कि प्यार से समझायें. * यदि बार-बार समझाने पर भी न समझें तो ही डांटे. * उनकी किसी ग़लती को उनके व्यवहार का रूप न बना डालें कि वह ऐसे ही करता है. * हर व़क़्त की आलोचना उसे हठी बना सकती है. इसमें कोई दो राय नहीं है. * जहां आलोचना उसे हठी बनाने के साथ उसका आत्मविश्वास को कमजोर करती है वह तिरस्कार महसूस करता है. * वहीं प्यार के दो बोल उसकी प्रशंसा उसका मनोबल बढ़ाती है. * कभी आपने यह सोचा है कि उसकी ग़लती पर आलोचना तो करती हैं, पर क्या अच्छा करने पर प्रशंसा भी करती हैं. * यदि नहीं तो उसकी प्रशंसा किया करें. * आपके कहे हर शब्द की बच्चों के लिए अहमियत होती है.
पर उपदेश कुशल बहुतेरेे
* जी हां उन्हें ईमानदारी, सच्चाई, न झगड़ने, दिन रात पढ़ने, सारा दिन टीवी देखने, कम्प्यूटर पर गेम खेलने जैसी एक लम्बी फेहरिस्त पर अमल करने से पहले उन पर स्वयं अमल करें. * बच्चे जो देखते हैं वे उस पर अमल स्वतः करते हैं. * आप बड़े-बुजुर्गों की इ़ज़्ज़त करती हैं, स्वयं पुस्तकें पढ़ती हैं. * सारा दिन टीवी सीरियल में नहीं उलझी रहती हैं, तो वैसा व्यवहार वे भी सीख जाते हैं. * आप उसे बहुत छोटी उम्र में वो उम्मीदें रख रही हैं, जो आपके व्यवहार में न हो. * उसे दरवाज़े पर दस्तक देकर आपके कमरे में आना चाहिए. * उसे आप पति-पत्नी बात कर रहे हों या आप किसी से बातचीत में व्यस्त हों,तो उसे आपको डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए. * चार-पांच साल के बच्चे से यह बहुत बड़ी डिमांड है. आप उसे डांटकर ये जतलाना चाहती हैं कि उसे गुडमैनर्स नहीं है, जो सही नहीं है. * उसे धीरे-धीरे अच्छी मैनर्स सिखायें, ताकि वे उन्हें सहजता से सीख पाए.
उनका इंकार करना
* उसने किसी काम को करने से मना कर दिया, आप यही सोचती हैं न कि निकम्मा है, आलसी है, कहना नहीं सुनता. * हो सकता है कि वह उस समय तकलीफ़ में हो. उसका पेट दर्द कर रहा हो, हो सकता है या स्कूल में किसी व्यवहार से दुखी हो, इस प्रकार प्रतिक्रिया दे रहा हो. * यह भी हो सकता है कि आपके व्यवहार को कॉपी कर रहा है. * आप भी तो उसकी किसी भी फ़रमाइश को पूरी तरह सुने बिना पहले मना कर देती हैं. * आपका हर वाक्य ‘नो’ से ही तो शुरू होता है. * बच्चे के हर ज़़ज़्बात को समझ नहीं पा रही हैं, इसलिए अपनी पेरेंटिंग को दोष न दें और न ही अपराधबोध महसूस करें. * बच्चा कोई व्यवहार क्यों कर रहा है उसका दोष ढूंढने से पहले अपने व्यवहार का विश्लेषण यदि करेंगी, तो पायेंगी कि ग़लती कई बार अपनी ही व्यवहार में हो रही होती है. * पर समझदारी भी इसी में है कि अपने को सुधारते हुए उसको सुधारते चलें और मां बिना कहे ही सब समझ जाती है यह विश्वास पक्का हो जाए.
- कृष्णा रानी

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