… सच कहूं तो मैं भी यही चाहती थी. तुम से अलग होने के एहसास से ही दिल कांप उठता था, क्योंकि मैं जानती थी तुम्हारे बिना मैं जी नहीं पाऊंगी. फिर भी मैं समझ रही थी यह सब कहते हुए भी तुम्हारे मन की दुविधा जा नहीं रही थी. मैं जानती थी तुम काफ़ी स्वतंत्र और आधुनिक विचारोंवाले इंसान हो. ज़रूरत पड़ने पर ख़ुद के लिए फ़ैसला लेने की क्षमता रखते हो, पर यह कैसी विडंबना थी कि जब मन तुम्हारा प्यार पाकर तुम्हारे साथ जीने का सपना देख रहा था, नियति जीवनभर के लिए हमें अलग करने का पैग़ाम लिख रहा थी. दूसरे दिन ही तुम्हे शारदा मौसी के ज़्यादा बीमार होने की सूचना मिली. तुम पटना में रुक नहीं सके दरभंगा चले गए. एक हफ़्ते बाद लौटे तो तुम्हारा फ़ैसला बदल गया था.
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आते ही तुमने कहा, “हमारा साथ इतना ही तक था. मैं जल्द ही संध्या से शादी करने जा रहा हूं.’’
मुझे एक गहरा धक्का लगा. एक झटके में मेरे सारे सपने बिखर गए. मैंने किसी तरह से अपने को संभाला. तुम जानते थे कि तुम्हारे प्यार ने मुझे इतना कमज़ोर कर दिया था कि मैं तुम्हें ज़िंदगीभर भूला नहीं पाऊंगी. तुम्हारे बिना जीना मेरे लिए बेहद कठिन था, पर मैंने तुम्हारे अंतःकरण की आवाज़ सुन ली थी. दिल ने कहा तुम्हें मनाने का प्रयास व्यर्थ है. जिसे हम प्यार करते हैं, हमें हमेशा उसके फ़ैसले का सम्मान करना चाहिए. इसलिए तुम्हारे फ़ैसला का सम्मान करते हुए मैं चुप रही. मैं जानती थी तुम भी यह फ़ैसला ख़ुश होकर नहीं लिए थे, पर मैं एक ऐसे मुक़ाम पर थी, जहां मैं तुम्हें दूसरी लड़की के साथ नहीं देख सकती थी, न मैं ख़ुद किसी की हो सकती थी, इसलिए अपना सारा जोर लगाकर पटना से बाहर दूसरे शहर में ट्रांसफर करवा लिया. पर शहर छोड़ते समय अपने को रोक नहीं पाई थी, ट्रेन में बैठते ही मेरी रूलाई फूट पड़ी थी.
मम्मी-पापा के बहुत समझाने पर भी मैं कही और शादी करने के लिए तैयार नहीं हुई. मैंने भी बहुत हिम्मत दिखाई. सब से अलग हो़कर अपने काम में मगन रहने लगी. आत्मिय स्वजन के प्रेम के धागे के टूटते ही जीवन में सिर्फ़ कर्म ही रह गया. मैं पूरी तरह टूट गई थी. हिम्मती लगना और हिम्मतवाली होना दोनो अलग-अलग बातें होती है.
सजा हुआ बंगला, कार, नौकर, अर्दली सुख के सभी साधन मेरे पास थे फिर भी सब कैसा व्यर्थ लगने लगा था, क्योंकि अकेलापन और सुख-दुख बांटनेवाला कोई नही था मेरे पास. पर नियती के खेल देखो एक बार फिर तुम्हारे सामने लाकर खड़ा कर दिया. ऑफिस आते ही हर रोज़ नज़रें तुम्हारे बंगले की ओर उठ जाती हैं. अनजाने ही कभी तुम नज़र आ जाते हो, कभी तुम्हारी बीवी और तुम्हारा बेटा. तुम सब के चेहरे बतातें हैं कि तुम सब बेहद ख़ुश हो. मेरा प्यार इतना ख़ुदर्गज़ नही कि मैं तुम्हारे जीवन में हलचल मचाने की सोचूं, इसलिए मैंने तुम्हारे घर के तरफ़ खुलनेवाली खिड़की को आज मैंने बंद करवा दिया. जब तक मैं इस ऑफिस नें यहां हूं, यह खिड़की हमेशा बंद रहेगा, ताकि यादों के दरीचा भी बंद रहे.
जो चाहत बरसों से दिल में थी आज उसने मुझे समझा दिया कि भले ही कर्म और बुद्धि आदमी के संकल्प और विकल्प तय करता है, पर भावना में आदमी के सारे सुख, सारी ऊर्जा निहित होती है, जिसके बिना सब कुछ होते हुए भी जीवन उजाड़ और बेजार हो जाता है. जो प्यार मेरे जीवन में अपना अस्तित्व खो चुका है उससे चिपके रह कर अपना जीवन विरान बनाने के बदले आगे बढ़ने में ही सब की भलाई है. अपनी मम्मी-पापा से भी मेरा प्यार का नाता है. मैं उनकी इकलौती संतान हूं, फिर उनके प्यार और हसरतों को क्यों मिट्टी में मिलने दूं? मेरी ज़िंदगी में दोबारा आकर इतने महत्वपूर्ण सच से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद!..
रीता कुमारी
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