सुनो-सुनो मज़े की एक कहानी उस दुनिया की जो हुई सयानी है कुछ साल पहले की बात दिवाली के कुछ…
क्यों ख़ामोश हो इस कदर इन अधरों को खुलने दो जो एहसास जगे है तुममें उन्हें लबों पर आने दो…
क्या कहें आज क्या माजरा हो गया ज़िंदगी से मेरा वास्ता हो गया इक ख़ुशी क्या मिली मैं निखरती गई…
आ गए आपकी मेहरबानी हुई दिल की सरगम बजी शादमानी हुई मिल गई प्यार की सल्तनत अब हमें वो भी…
देख लेती हूं तुम्हें ख़्वाब में सोते-सोते चैन मिलता है शब-ए-हिज्र में रोते-रोते इक तेरे ग़म के सिवा और बचा…
प्रेम कथाओं के पृष्ठों पर, जब-जब कहीं निहारा होगा सच मानो मेरी आंखों में केवल चित्र तुम्हारा होगा कभी याद…
अब मुझे किसी से शिकवा ना शिकायत है अब मैं अकेला हूं, कितनी बड़ी राहत है थी चोट लगी उनको…
हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे ये एक हम ही थे जो फिर भी शान से गुज़रे कभी ज़मीन…
किसी रिश्ते में वादे और स्वीकारोक्ति ज़रूरी तो नहीं कई बार बिना आई लव यू कहे भी तो प्यार होता…
मैं आज भी वही तो कह रहा हूं जो सालों से कह रहा था तुम भी तो सुन रहे हो सालों…
एक दिन मैं अपनी ही धड़कनों से नाराज़ हो गया इतनी सी शिकायत लेकर कि जब तुम उसके सीने में…
सुबहों को व्यस्त ही रखा, दुपहरियां थकी-थकी सी रही कुछ जो न कह सकी, इन उदास शामों से क्या कहूं..…