प्रेम कथाओं के पृष्ठों पर, जब-जब कहीं निहारा होगा
सच मानो मेरी आंखों में केवल चित्र तुम्हारा होगा
कभी याद तो करके देखो, भूले बिसरे चौराहों को
कान लगा कर सुनो कभी, अपने अंतर की चाहों को
कभी अधर तो सौंपे होंगे, अपनी चंदन सी बांहों को
कस्तूरी सी गंध समझ, हर संभव मुझे बिसारा होगा
सच मानो मेरी…
कई बरस तेरे माथे पर रखी मैंने काजल बिंदिया
कहीं उड़ाकर ले जाती थी, इन आंखों से मेरी निंदिया
संभवता कभी लगाई हूं, एकाकी क्षण में वो बिंदिया
क्या हुआ कभी आभास नहीं, यहीं कहीं बंजारा होगा
सच मानो मेरी…
यह सोच खुले ही छोड़ दिए, इस हृदय भुवन के द्वार सभी
कोई कुछ मुझको कहे मगर, भेडूंगी नहीं किवाड़ अभी
वापस लौट गए तुम यदि तो, यह ज्वाला न होगी शांत कभी
आहट-आहट कान लगाए, तुमने मुझे पुकारा होगा
सच मानो मेरी…
अब दूल्हा सा तुम सज धज, खड़े हुए हो इस आंगन में
लगा रहे हो आग और अब, इस रिमझिम-रिमझिम सावन में
और किसी की किन्तु धरोहर, शोभित हो इस मन दर्पण में
‘डाली’ मर्यादित प्रश्नों पर, किंचित नहीं विचारा होगा
सच मानो मेरी आंखों में, केवल चित्र तुम्हारा होगा
प्रेम कथाओं के पृष्ठों पर, जब-जब कहीं निहारा होगा
सच मानो मेरी…
– अखिलेश तिवारी ‘डाली’
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Photo Courtesy: Freepik
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