* रँगा अम्बर नील वर्ण में सूरज ने छिटका अबीर गुलाल हरसिंगार से झरा रँग नारंगी झूम उठी महुए की…
असल वजह यही है थोड़े कुछ में ही बहुत कुछ ढूंढ़ने की कोशिश करना और बहुत कुछ में थोड़े कुछ…
खामोशी के साये में खोए हुए लफ़्ज़ हैं… रूमानियत की आग़ोश में जैसे एक रात है सोई सी… सांसों की हरारत है, पिघलती सी धड़कनें… जागती आंखों ने ही कुछरूमानी से सपने बुने… मेरे लिहाफ़ पर एक बोसा रख दिया था जब तुमने, उसके एहसास आज भी महक रहे हैं… मेरी पलकों पर जब तुमने पलकें झुकाई थीं, उसे याद कर आज भी कदम बहक रहे हैं… लबों ने लबों से कुछ कहा तो नहीं था, पर आंखों ने आंखों की बात पढ़ ली थी, वीरान से दिल के शहर में हमने अपनी इश्क़ की एक कहानी गढ़ ली थी… आज भी वोमोड़ वहीं पड़े हैं, जहां तुमने मुझसे पहली बार नज़रें मिलाई थीं, वो गुलमोहर के पेड़ अब भी वहीं खड़े हैं जहां तुमने अपनेहोंठों से वो मीठी बात सुनाई थी… आज फिर तुम्हारी आवाज़ सुनाई दी है, आज फिर प्यार के मौसम ने अंगड़ाई ली है, तुम्हारे सजदे में में सिर झुकाए आज भी बैठा हुआ हूं, तुम्हारी संदली ख़ुशबू से मैं आज भी महका हुआ हूं… आ जाओ किमौसम अब सुहाने आ गए, हवा में रूमानियत और मेरी ज़िंदगी में मुहब्बत के ज़माने आ गए! गीता शर्मा डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z…
गोधूलि-सी शाम में, तुम्हारे मखमली एहसास हैं… रेशम-सी रात में, शबनमी तुम्हारे ख़्वाब हैं… एक मुकम्मल रुत हो तुम, मैं अधूरा पतझड़-सा… तुम रोशनी हो ज़िंदगी की और मैं गहरा स्याह अंधेरा… थक गया हूं ज़माने की रुसवाइयों से… डरने लगा हूं अब जीवन की तनहाइयों से… तुम्हारे गेसुओं की पनाह में जो गुज़री महकती रातें, अक्सर याद आती हैं वो तुम्हारे नाज़ुक-से लबों से निकली मीठी बातें… मुझे अपनी पनाह में ले लो, बेरंग से मेरे सपनों में अपने वजूद का रंग भर दो… लौट आओ कि वो मोड़ अब भी रुके हैं तुम्हारे इंतज़ार में… सूनी हैं वो गालियां, जो रहती थीं कभी गुलज़ार तुम्हारे दीदार से… गुलमोहर-सी बरस जाओ अब मेरे आंगन में, मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू सी बिखर जाओ इस सावन में… अपनी उलझी लटों मेंमेरे वजूद को सुलझा दो… तुम्हारा बीमार हूं मैं और बस तुम ही मेरी दवा हो… गीता शर्मा
1 वसुदेव चले शिशु शीश धरे, तट तीर-लता हरषाय रहीं। चम से चमके नभ दामिनियाँ, तम चीरत राह दिखाय रहीं।…
बड़ी चीज़ें कहां मांगता हूं मुझे वक़्त बीतने के बाद भी बस छोटी-छोटी चीज़ों से प्यार है मैं तो बस…
प्रेम कथाओं के पृष्ठों पर, जब-जब कहीं निहारा होगा सच मानो मेरी आंखों में केवल चित्र तुम्हारा होगा कभी याद…
एक दिन मैं अपनी ही धड़कनों से नाराज़ हो गया इतनी सी शिकायत लेकर कि जब तुम उसके सीने में…
हे प्रभु जब मैं तुमसे प्रेम मांगता था तब तुमने जीवन के संघर्ष के रूप में मुझे युद्ध प्रदान किया…
तेरी आंखों से कब राहों का उजाला मांगा अपनी आंखों में बस थोड़ी सी ज़िंदगी दे दे सदियों से इस…
जैसे लौट आती हैं चिड़ियां दिनभर की उड़ान के बाद थकी-हारी वापस घोंसलों में जैसे लौट आते हैं बीज ओढ़े…
मनमुटाव तो शुरुआत से ही रहा इसीलिए खींच दी गई लक्ष्मण-रेखाएं ईश्वर को ढूंढ़ा गया उससे मिन्नतें-मनुहार की फ़ैसला तब…