जैसे लौट आती हैं चिड़ियां
दिनभर की उड़ान के बाद
थकी-हारी
वापस घोंसलों में
जैसे लौट आते हैं बीज
ओढ़े हुए
अनंत संभावनाओं के कवच को
हरियाली के सफ़र के बाद
चुपचाप
सूखे हुए फूलों में
जैसे लौट आती हैं बारिशें
समेटे हुए
तमाम नदियों को
और उड़ेल देती हैं
अपना सर्वस्व
जी भर
रेगिस्तानों में
जैसे लौट आता है प्रेम
बगैर ही किसी
मिलने-बिछुडने की शर्तों के साथ
अनसुना करते हुए
सारी नसीहतें
ग्रह-नक्षत्रों की
सुनते हुए सारी फटकारें
जन्म-जन्मांतरों की
सुनो,
लौट आएंगे हम-तुम भी
घोंसलों में
चिड़ियां की तरह ,
बीजों में
फूलों की तरह
रेगिस्तानों में
बारिशों की तरह
एक-दूसरे की कविताओं में
ठीक प्रेम की ही तरह…
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