चाह नहीं, इस हफ़्ते तुमसे मैं ‘गुलाब’ कोई पाऊं
चाह नहीं ‘आई लव यू’ कहो, और मैं सुनकर इतराऊं
चाह नहीं, तुम ‘चॉकलेट’ दो और मैं गपगप खा जाऊं
चाह नहीं, ‘टैडी’ पाकर उसे शोकेस में सजाऊं
चाह नहीं, एक ताजमहल का ‘वादा’ तुमसे पाऊं
चाह नहीं, ‘आलिंगन’ में, मैं तुम्हारे बंध जाऊं
चाह नहीं, ‘चुंबन’ तुम्हारे मैं अधरो पे सजाऊं
मुझे देना वो चादर प्रिये…
जिसे तान मैं, पूरा दिन सो जाऊं…
और जब भी तुम किसी काम को बोलो,
मैं बहरी हो जाऊं… मैं बहरी हो जाऊं!
– दीप्ति मित्तल
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