कविता- कोयलिया और मैं.. (Kavita- Koyaliya Aur Main..)

कोयलिया
तू हर दिन किसे बुलाती है?

भोर होते ही सुनती हूं तेरी आवाज़
विरह का आर्तनाद
प्रणयी की पुकार
मनुहार
सभी कुछ है उसमें
गूंज उठता है उपवन
हर दिन
दिन भर

ढूंढ़ती है उसे तू डाल-डाल
भोर से सांझ तक
तेरा खुला निमंत्रण पाकर भी
नहीं आता क्यों मीत तेरा?
विरक्त है तुझसे?
या वह
विवश?

प्रात: होते ही गूंज उठती है
फिर वही पुकार
कुहू-कुहू की अनुगूंज
खिड़की की राह भर जाती है
मेरे कमरे में
द्विगुणित हो गूंजती है
मेरे आहत मन में
पुकारता है मेरा भी मन
मनमीत को
विरह का आर्त्त
प्रणयी की पुकार
मनुहार
सभी कुछ उसमें
पर सखी
कैसे पहुंचे उस तक
मेरी आवाज़?
पंख विहीन मैं
मेरे तो लब भी सिले हुए हैं!..

उषा वधवा

यह भी पढ़े: Shayeri

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कद्दू के उपयोगी घरेलू नुस्ख़े (Useful home remedies of pumpkin)

कद्दू में विटामिन ए, सी व ई के साथ-साथ फाइबर, पोटैशियम, बीटा-कैरोटीन पाए जाते हैं,…

July 5, 2025

काजोल- यहां हर‌ फ़ैसला एक कुर्बानी है… (Kajol- Yahaan har faisla ek kurbani hai…)

- 'मां' एक माइथोलॉजिकल हॉरर मूवी है. इसमें मैं लोगों को इतना डराउंगी... इतना डराउंगी…

July 5, 2025

पुरुषों के इन हेल्थ सिग्नल्स को न करें नज़रअंदाज़ (Men’s health: Critical symptoms that should never be ignored)

पत्नी, बच्चों और घर के दूसरे सदस्यों के जरा-सा बीमार पड़ने पर अक्सर पुरुष तुरंत…

July 5, 2025

कहानी- वे दोनों‌ (Short Story- Ve Dono)

"बाकी जो समय बचेगा, उसमें हम दोनों पुराने दिनों के सहारे जी लिया करेंगे." "ठीक…

July 5, 2025
© Merisaheli