कविता- मिस करता हूं… (Kavita- Miss Karta Hun…)

तुम्हें एहसास है
मैं तुम्हारे साथ
गुज़रे लम्हे और वक़्त
नहीं मिस करता
वे तो एक दिन
दूर जाने थे
भूल जाने थे
नहीं भूला तो
तुम्हारी हंसी
यक़ीन करो
तुम मेरे कहां थे
तुम्हें मांग भी तो नहीं
सकता था
खुदा से
अधिकार और वक़्त
मेरा नहीं था
लेकिन वह हंसी
जो अनायास ही
ज़िंदगी में
और ज़िंदगी भर देती है
आज भी मेरी चाहत है
मैं
आज भी
उसका मुरीद हूं
मैं
आज भी
महसूस करता हूं
उस हंसी की खनक
कानों में
और बस हर वक़्त
उसे मिस करता हूं
मैं
तुम्हारे होने के एहसास से
बढ़ कर
तुम्हारी हंसी की
खनक को कहीं
अधिक मिस करता हूं…

– शिखर प्रयाग

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Usha Gupta

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