भोपाल स्टेशन पर खड़ी मैं बार-बार घड़ी देख रही थी. मेरा गला सूख रहा था, दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी कि तभी धड़धड़ करती ट्रेन स्टेशन पर आ गई. मैं उत्सुकता से हर डिब्बे को ध्यान से देख रही थी कि किसी डिब्बे से मलय उतरेगा. मलय को देखे एक युग बीत चला था. उस समय मैं और मलय एडीबी कॉलेज से एमए (इतिहास) कर रहे थे. एक दिन परीक्षा के दौरान कॉलेज जाते व़क्त मेरी स्कूटी पंचर हो गई थी. मैं परेशान हो गई थी कि तभी मलय का स्कूटर मेरे पास आकर रुका और उसने मुझे लिफ्ट ऑफर की. न जाने क्यों उसका यह साथ मुझे बहुत पसंद आ रहा था. जब कभी उसकी पीठ से मेरा हाथ छू जाता, तो एक नशा-सा छाने लगता.
इसी मदहोशी के आलम में कॉलेज आ गया और मैंने ख़ुद को जैसे-तैसे संभालकर पेपर दिया. वापसी में मलय मेरी स्कूटी को गैराज तक ले गया. मैंने उसे धन्यवाद के रूप में चाय पिलाने की पेशकश की, तो उसने अपने घर चलने का आग्रह किया. उसके घर पहुंचकर सबसे मिली. उसकी छोटी बहन तीषा मुझे देखते ही बोली, “दादा ने बताया नहीं कभी कि तुम उसके साथ पढ़ती हो. भालोबाशी, तुम बहुत अच्छी हो.” तभी मलय की मम्मी भी आ गई थीं.
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चाय पीकर मैं घर चली आई. अगले पेपर की तैयारी करना दुश्वार हो गया था. ऐसा लग रहा था मलय अभी भी मेरे साथ है. यह था मेरे पहले प्यार का पहला एहसास. व़क्त के साथ-साथ यह एहसास और गहरा होता चला गया. एमए फाइनल की क्लासेस शुरू हो गई थीं कि तभी मलय के पिताजी का देहांत हो गया और उनकी जगह मलय को दिल्ली में नौकरी मिल गई. कुछ ही दिनों में वो दिल्ली शिफ्ट हो गया. इसके बाद मोबाइल पर बातें होती रहीं, लेकिन फिर अचानक मलय की तरफ़ से फोन और मैसेज आने बंद हो गए. लंबा अरसा गुज़र गया, मलय की कोई ख़बर नहीं मिली. मेरे घर पर मुझ पर भी शादी का दबाव डाला जा रहा था, लेकिन इसी बीच मुझे नौकरी मिल गई और मैंने शादी को और कुछ समय के लिए टाल दिया. तभी एक दिन अचानक तीषा का मैसेज आया कि वो लोग फलां तारीख़ को तमिलनाडु एक्सप्रेस से भोपाल आ रहे हैं.
“संतोष, कैसी हो?” की आवाज़ से मेरी विचारधारा टूटी, तो तीषा ने मुझे पहचान लिया. तीषा बड़ी हो चुकी थी. उसके माथे पर बड़ी बिंदी और मांग में सिंदूर था. मैं उसके गले लग गई और यहां-वहां देखकर मलय को ढूंढ़ने लगी. तीषा ने कहा, “संतोष, जिसे तुम ढूंढ़ रही हो, वो अब नहीं आएगा. मलय एक एक्सीडेंट में हम सबको छोड़कर चला गया. वो तुमसे बहुत प्यार करता था. मां भी उसकी शादी तुमसे करवाना चाहती थीं, लेकिन दादा यूं अचानक हम सबको छोड़कर चला गया और उसके जाने के कुछ समय बाद मां भी नहीं रहीं.” इतना कहकर वो बुरी तरह रो पड़ी, फिर संभलकर बोली, “तुमने शादी नहीं की अब तक?” “मलय के बिना मैं कैसे शादी कर सकती थी…” इतना कहकर मैं स्टेशन से बाहर निकल आई. मुझे इस बात का संतोष था कि मलय मुझे भूला नहीं था. उसके दिल में मैंने जगह बना ली थी. आज पैंतालिस साल की हो गई हूं, मलय की याद और तन्हाई को सहेली बनाकर जीने की आदत पड़ गई है.
– संतोष श्रीवास्तव
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