बहुत ख़ूबसूरत है यह ज़िंदगी
हर रंग चुराया इसका मैंने जीने के लिए
उम्मीद का दामन पकड़े रही हमेशा
ज़िंदगी के जाम का हर घूंट पीने के लिए
कभी ज़हर सा कड़वा
तो कभी गुड़ सी मिठास लिए
कभी सुख का हिंडोला
तो कभी दुख अकस्मात लिए
छलक उठती हैं जब कभी आंखें
तो बह जाने देती हूं ग़म को
काजल के गहरे रंग के साथ
लगा लेती हूं हल्का गुलाबी रंग चेहरे पर
थपक कर दिल पर उम्मीदों भरा हाथ
टूट कर बिखर जाना मेरी फ़ितरत में नहीं
लड़ जाती हूं जब कहे कोई ये तेरी क़िस्मत में नहीं
ज़िंदगी है… इसे जीना तो बनता है
क़िस्मत की आड़ लेकर ना हौसलों का पहिया थमता है
अनवरत संघर्ष ही तो ज़िंदा होने का एहसास करवाता है
नित नई अड़चनों को पार करना मुझे सुहाता है
अड़ जाती हूं कभी अपने नाम के लिए
उलझ बैठती हूं कभी अपनी पहचान के लिए
जीती हूं सबके लिए पर ख़ुद के लिए भी जीना जानती हूं
उधड़ रहे ख़्वाबों को तुरपाई करके सीना जानती हूं
हर हासिल व नुक़सान को त्योहार की मानिंद मनाया मैंने
ज़िंदगी के इंद्रधनुष का हर रंग चुराया मैंने…
– शरनजीत कौर
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