Shayeri

कविता- निःशब्द (Poem- Nishabd)

न!
कहीं मत जाओ
यूँ ही बैठे हम
देखते रहें
उस नभ खंड को
जहाँ अभी अभी
इक सिंदूरी गोला
सोने के सागर में
डूब गया है
बिखरे हैं अब तक
उसके छींटे
क्षितिज में
इधर उधर

न!
कोई दीप मत जलाओ
अंधकार को
जी भर के घना हो लेने दो
इतना कि
हम एक दूसरे को देख भी न सकें
बस महसूस करते रहें
समीपता के सुख को
पलकों से सहलाते रहें
हवा में तैरते स्वप्न
हथेलियों पर थाम लें
गिरती शबनम को

यूँ ही बैठे रहें
नि:शब्द!
देर तक
रात भर
जब तक
कि
पीछे से आकर
चुपचाप
चौंका न दे
एक नया सूरज…

– उषा वधवा


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Photo Courtesy: Freepik

Usha Gupta

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Usha Gupta

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