मेरा उससे वादा था कि
जब सूरज और सागर का मिलन होगा
और रक्ताभ हो उठेंगे
सूरज के गाल
तो मैं उसे याद करूंगी..
पर मैंने लहरों को
दिन भर
सूरज को पुकारते देखा है
और हर पल उसे याद किया है..
मेरा उससे वादा था कि
जब मेरे द्वार हरसिंगार खिलेगा
तो मैं उसे याद करूंगी
पर
मेरे भीतर का हरसिंगार
वर्ष भर खिला है
और
हर दिन मैंने उसे याद किया है..
वह आ सकता है सखी
कभी भी
ख़ुशबू के झोंके की तरह…
यह सोच
मैंने वर्षों उसका इंतज़ार किया है
मैं नहीं जानती कि
उम्मीद से भरी यह प्रतीक्षा
अधिक सुखद हैं
अथवा
बिछोह की शर्त लिए
मिलन का वह एक पल….
– उषा वधवा
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