आवश्यक है कि
हम अपने लिए
खड़ी करते रहें
नियमित कुछ चुनौतियां
स्वयं को
मशीन बन जाने से बचाने के लिए
इसलिए सफलता के नियमित सूत्र
भूल कर
रोज़
किसी अनजान बियाबान में
खड़ा हो जाता हूं कि
जहां के रास्ते न पता हों
न ही यह पता हो कि
यहां ख़ुद को
जीवित कैसे रखना है
यह आंतरिक चुनौती
कम से कम मुझे
मशीन होने से बचा लेती है
और तब
नहीं होता मेरे भीतर
ख़ुद को
किसी जानने वाले से
पहचाने जाने का भय
मैं उस भाव से भी मुक्त होता हूं
जहां मेरी छवि निर्मित है कि
इस व्यक्ति से
इसके व्यक्तित्व के अनुरूप
यही उम्मीद थी
स्वयं को
अनजान स्थिति में पा
ख़ुद से ही मुक्त
हो जाने की स्थिति
मुझे नवजीवन दे देती है
अपने अनुभव और विचारों के
खो जाने के बाद
और तब
मशीन होने का प्रश्न
ही नहीं उठता
क्योंकि किसी बियाबान में
अपने भीतर
कुछ भी तो ऐसा नहीं है
जिसे मैं जानता हूं…
– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
बियाबान- जंगल
Photo Courtesy: Freepik
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