मैं तुम्हें
इश्क़ के मुहाने तक लेकर आया
और तुम लौट गए
उस मोड़ पर भी तुम
आगे बढ़ने का
साहस नहीं दिखा सके
इसके बाद
रूढ़ियों के टूटने
और ख़ामोशी छोड़ कर
उन्मुक्त हो जाने की बातें
तो की जा सकती हैं
अपने संस्कार, विचार और सोच से
आज़ाद नहीं हुआ जा सकता
हां कपड़ों की आज़ादी
किसी स्त्री की मौलिक आज़ादी
कतई नहीं है
तुम्हें आज़ाद होना है
तो उस सोच से आज़ाद हो जाओ
जिसने तुम्हें सदियों से
ग़ुलाम बना रखा है
जहां मान-सम्मान और
नैतिकता का संपूर्ण बोझ
मात्र तुम्हारे कंधे पर टिका है
इसके आगे मेरी बात
सिर्फ़ समझने के लिए बचती है
कहने के लिए नहीं
क्योंकि एक पुरुष हो कर
यह कहने के लिए
मुझे बहुत हिम्मत
जुटानी पड़ी है…
– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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