अब न कोई शक़-ओ-शुबा है, हर ढंग से तस्तीक़ हो गई
निराशाओं से लड़ने की, मेरी बीमारी ठीक हो गई
लहू नसों में कुछ करने का, धीरे-धीरे ठंड पा गया
ज़ख़्म अभी बाकी है पर, भरने का सा निशां आ गया
उठती-गिरती धड़कन भी, इक सीधी-सी लीक हो गई
निराशाओं से लड़ने की, मेरी बीमारी ठीक हो गई
अब न जुनूं कुछ करने का, बेचैन रूह को करता है
अब न दिल में ख़्वाबों का, दरिया बेदर्द बहता है
ख़्वाब फ़ासला पा गए और हक़ीक़तें नज़दीक़ हो गई
निराशाओं से लड़ने की, मेरी बीमारी ठीक हो गई…
शक-ओ-शुबा- संदेह
तस्तीक़- सत्यता प्रमाणित होना
लीक- लकीर
(इस ग़ज़ल का मतलब है कि अब ख़्वाबों को पूरा करने के लिए पागलपन की हद तक संघर्ष करते रहने की आदत ख़त्म हो रही है…)
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