mohabbat

पहला अफेयर: वो ख़त जो कभी न गया (Pahla Affair: Wo Khat Jo Kabhi Na Gaya)

कल अलमारी साफ करते-करते रुचिका फाइल्स भी ठीक करने में लग गई. जब से बेटे उत्सव का एडमिशन इंदौर में…

May 13, 2024

पहला अफेयर: एक गुलाबी सुगंध… (Pahla Affair: Ek Gulabi Sugandh)

केमिस्ट्री का नीरस लेक्चर सुनते हुए नींद से आंखें बोझिल होने लगी थीं. मैं क्लास में लास्ट बेंच पर बैठा…

May 10, 2024

पहला अफेयर: कुछ कह कर तो जाते… (Pahla Affair… Love Story: Kuchh Kehkar Toh Jaate)

20 दिसंबर 1987 को तुम मुझे अपने दोस्त, बहन और भतीजे के साथ देखने आए थे. मैं सुबह से बेचैन थी, ज़िंदगी बदल जाएगी इसएक नए रिश्ते से, सोच रही थी कि न जाने कैसा होगा वो, मुझे पसंद आएगा भी या नहीं… ज़ाहिर है हर लड़की के मन में ऐसे सवाल आनेलाज़मी हैं…  इतने में ही डोर बेल बजी… मैंने सोचा अभी तो काफ़ी वक्त है तुम्हें आने में तो इस वक़्त कौन होगा? मम्मी ने कहा जाकर देख लौंड्रीवाला होगा, मैंने दरवाज़ा खोला और सामने तुम्हें पाया… हम दोनों ने सिर्फ एक-दूसरे को पल भर ही निहारा था और वो ही पल हमारापहला अफेयर बन गया था. मेरी धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि डर लग रहा था सबको सुनाई न दे जाएं. मैं नज़रें झुकाकर एक तरफ़ हो गई, तब तक मम्मी आ गई थी. ख़ैर मैं गर्दन झुकाए तुम्हारे सामने बैठी थी, कुछ नहीं पूछा तुमने बस नज़रों ही नज़रों में प्रेम की मौन स्वीकृति दे दी. उस रात मुझे नींद नहींआई. आनेवाले कल के रंगीन सपने मैं खुली आंखों से देख रही थी. न जाने क्या था तुम्हारी उन आंखों में जो एक ही पल में मैं डूब ही गई, कभी न उबरने के लिए. कितना शांत था तुम्हारी आंखों का वो गहरा समंदर, जिसमें मैं इश्क़ के गोते लगा रही थी. तुम्हारी हां थी और मेरी भी हां थी तो बस फिर क्या था, चट मंगनी पट ब्याह हो गया फागुन की फुलेरा दूज को. सहेलियां अरेंज मैरिजमानने को तैयार नहीं थीं. सभी का कहना था कि यह तो लव मैरिज है और सच भी यही था वह पल हमारा पहला अफेयर ही था. पहलीनज़र का प्यार, जिसके बारे में बस सुना ही था पर जब ख़ुद उस एहसास से गुज़री तो पता चला ऐसा सच में होता है. ऊपरवाला इशारादेता है कि हां यही है वो जो अब तक कल्पनाओं में था और अब रूबरू है. वैवाहिक जीवन के 32 वर्ष हंसी-खुशी से गुज़र गए और नवंबर की एक क्रूर रात्रि को तुम मुझसे रूठकर  ऐसे सफर पर चले गए, जहां सेलौटकर आना नामुमकिन है. मैं  बहुत नाराज़ हूं तुमसे… भला ऐसे भी कोई जाता है? तुम अपने सफर पर गए हो और मेरे अंदर हर रोज़ यादों का एक सफर शुरू होताहै... सुबह की चाय से… चाय की ख़ुशबू में, उसकी महकती भाप के बीच भी तुम नज़र आते हो और मुस्कराते हो... मैं बावली-सीअनायास पूछ बैठती हूं- वही रोज़वाला सवाल, ‘फीकी चाय पी कैसे लेते हो?’  ‘तेरी मीठी मुस्कान से चाय मीठी हो जाती है…’ ‘धत्त’ कहकर मैं शरमा जाती हूं…  यादों का अंतहीन सिलसिला फिर रफ्तार पकड़ लेता है. तमाम खूबसूरत लम्हे जीवंत हो उठते हैं, भरपूर जी लेती हूं उन लम्हों को. चाहेवह बोलचाल बन्द होने के हों, तीखी नोकझोंक या खट्टी-मीठी तकरार के हों. शाम ढलते ही मन में खालीपन, उदासी और तन्हाई का गहरा धुंधलका छा जाता है. रात घिरते ही... अचानक कमज़ोर हो उठती हूं मैं, टूट जाती हूं… बिखर जाती हूं... फिर हिम्मत-हौसले से खुद को सम्भालती हूं. कभीतलाशती हूं तुम्हें बिस्तर की सलवटों में... लिहाफ की गर्माहट में... स्पर्श के एहसास में... अचानक तुम्हारा मौन मुखर हो उठता है... ‘पगली, मैं यहीं हूं, तेरे पास... तेरे साथ... जन्मजन्मांतर का साथ है हमारा...’ यह सुनकर बेचैन मन का समंदर शांत हो जाता है... औरआंखों के किनारों से चंद नमकीन बून्दें ढुलक जाती हैं… नींद कब अपनी आगोश में ले लेती है पता ही नहीं चलता. फिर सुबह वही यादोंका सफर शुरू हो जाता है. फिर वही चाय, वही ख़ुशबू और वही तुम्हारी यादों का जादू… सच बहुत खफा हूं तुमसे... ऐसे बिन कहे, बिनसुने अचानक कौन चला जाता हैं… शब्दों से न सही पर सिर्फ़ निगाहों से ही कम से कम कुछ कह कर तो जाते...  सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी... बावली…   डॉ. अनिता राठौर मंजरी 

January 8, 2024

पहला अफेयर: सद्धयः स्नात प्रेम… (Pahla Affair… Love Story: Saddhyah Snaat Prem)

कंपकपाती ठंड से परेशान होकर नाश्ता करने के बाद मैं छत पर चला आया. बाहर गुनगुनी धूप पसरी हुई थी जो बड़ी भली लग रही थी. मैं मुंडेर के पास दरी बिछाकर उस पर लेट गया. धूप चटक थी लेकिन मुंडेर के कारण हल्की सी छांव के साथ सुहावनी लग रही थी. ठंडसे राहत मिलते ही कंपकपी बंद हो गई. धूप की गर्माहट से कुछ ही समय में आंखें उनींदी होने लगी और मैं पलकें मूंदकर ऊंघने लगा. यूंभी पिछले साल भर से किताबों में सर खपा कर मैं बहुत थक चुका था और कुछ दिनों तक बस आराम से सोना चाहता था, इसलिए लॉकी परीक्षा देने के बाद अपनी मौसी के यहां कानपुर चला आया था. अभी हल्की-सी झपकी लगी ही थी कि अचानक मुंह पर पानी की बूंदे गिरने लगी. मैंने चौक पर आंखें खोली, आसमान साफ था. नीलेआसमान पर रुई जैसे सफेद बादल तैर रहे थे. तब मेरा ध्यान गया कि पानी की बूंदें मुंडेर से झर रही हैं. दो क्षण लगे नींद की खुमारी सेबाहर आकर यह समझने में कि पानी किसी के लंबे, घने काले बालों से टपक रहा है. शायद कोई लड़की बाल धोकर उन्हें सुखाने केलिए मुंडेर पर धूप में बैठी थी. एक दो बार खिड़की से झलक देखी थी. एक बार शायद गैलरी में भी देखा था, वह मौसी के पड़ोस वालेघर में रहती थी. उसके भीगे बालों से शैंपू की भीनी-भीनी सुगंध उठ रही थी. मैं उस सुगंध को सांसों में भरता हुआ अधखुली आंखों से उन काले घने भीगेबालों को निहारता रहा. बूंद-बूंद टपकते पानी में भीगता रहा जैसे प्रेम बरस रहा हो, सद्धयः स्नात प्रेम… कितना अनूठा एहसास था वह. भरी ठंड में भी पानी की वह बूंदें तन में एक गर्म लहर बनकर दौड़ रही थी. मेरे चेहरे के साथ ही मेरा मन भी उन बूंदों में भीग चुका था. तभी उसने अपने बालों को झटकारा और ढेर सारी बूंदें मुझ पर बरस पड़ी. मेरा तन मन एक मीठी-सी सिहरन से भर गया. मैं उठ बैठा. मेरेउठने से उसे मेरे होने का आभास हो गया. वह चौंककर खड़ी हो गई. उसके हाथों में किताब थी. कोई उपन्यास पढ़ रही थी वह धूप मेंबैठी. मुझे अपने इतने नज़दीक देखकर और भीगा हुआ देखकर वह चौंक भी गई और सारी बात समझ कर शरमा भी गई. उसे समझ हीनहीं आ रहा था कि इस अचानक आई स्थिति पर क्या बोले. दो पल वह अचकचाई-सी खड़ी रही और फिर दरवाज़े की ओर भागकरसीढ़ियां उतर नीचे चली गई. पिछले पांच दिनों में पहली बार उसे इतने नज़दीक से देखा था. किशोरावस्था को छोड़ यौवन की ओर बढ़ती उम्र की लुनाई से उसकाचेहरा दमक रहा था. जैसे पारिजात का फूल सावन की बूंदों में भीगा हो वैसा ही भीगा रूप था उसका. रात में मैं खिड़की के पास खड़ा था. इस कमरे की खिड़की के सामने ही पड़ोस के कमरे की खिड़की थी. सामने वाली खिड़की में रोशनीदेखकर मैंने उधर देखा. उसने कमरे में आकर लाइट जलाई थी और अलमारी से कुछ निकाल रही थी. उसने चादर निकाल कर बिस्तर पररखी, तकिया ठीक किया और बत्ती बुझा दी. मैं रोमांचित हो गया, तो यह उसका ही कमरा है, वह मेरे इतने पास है. मैं रात भर एकरूमानी कल्पना में खोया रहा. देखता रहा उसके बालों से बरसते मेह को. एक ताज़ा खुशबूदार एहसास जैसे मेरे तकिए के पास महकतारहा रात भर. मैं सोचता रहा कि क्या उसके मन को भी दोपहर में किसी एहसास ने भिगोया होगा, क्या वह भी मेरे बारे में कुछ सोच रहीहोगी? जवाब मिला दूसरे दिन छत पर. जब मैं छत पर पहुंचा, तो वह पहले से ही छत पर खड़ी इधर ही देख रही थी. हमारी नज़रें मिली औरउसने शरमा कर नज़रें झुका लीं. कभी गैलरी में, कभी खिड़की पर हमारी नज़रें टकरा जाती और वह बड़े जतन से नज़रें झुका लेती. उनझुकी नज़रों में कुछ तो था जो दिल को धड़का देता. नज़रों का यह खेल एक दिन मौसी ने भी ताड़ लिया. मैंने उन्हें सब कुछ सच-सच बता दिया. फिर तो घर में बवाल मच गया और मुझेसज़ा मिली. सज़ा उम्र भर सद्धयः स्नात केशों से झरती बूंदों में भीगने की और मैं भीग रहा हूं पिछले छब्बीस वर्षों से, उसके घने कालेबालों से झरते प्रेम के वे सुगंधित मोती आज भी मेरे तन-मन को सराबोर कर के जीवन को महका रहे हैं और हम दोनों के बीच का प्रेमआज भी उतना ही ताज़ा है, उतना ही खिला-खिला जैसा उस दिन पहली नज़र में था, एकदम सद्धयः स्नात. विनीता राहुरीकर

August 21, 2023

पहला अफ़ेयर: … और फिर प्यार हो गया! (Pahla Affair… Love Story: Aur Phir Pyar Ho Gaya)

चांदनी… दूधिया सफ़ेद… न सिर्फ़ उसका रंग बल्कि उसके कपड़े भी… वो हमेशा सफ़ेद रंग ही पहनती है… उस पर खूब फबता भी है… एकदम पाक… मासूम रंग जैसे सुबह-सुबह की नर्म-नाज़ुक ओस… उसकी भोली मुस्कान उसके गुलाबी होंठों पर हमेशा बिखरी रहतीहै… अभी-अभी हमारे मोहल्ले में रहने आई है और रोज़ सुबह-शाम मेरी गली से गुजरती है, उसके साथ उस वक्त एक छोटी बच्ची भीरहती है, उसकी छोटी बहन होगी, उसी को स्कूल छोड़ने-ले जाने जाती है… जब भी वो मेरे घर के सामने से गुजरती है मैं ज़ोर से वो गाना मोबाइल पे लगा देता हूं… चांद मेरा दिल, चांदनी हो तुम… और वो एकनज़र मेरी खिड़की की तरफ़ डालकर निकल जाती है. यही सिलसिला चल रहा था कि एक रोज़ उसे बस स्टॉप पर देखा. मैंने बाइकरोकी और उसके पास जाकर बात करने की कोशिश की… “आपको रोज़ देखता हूं मैं, नई आई हैं आप इस मोहल्ले में?” “जी हां.” उसकी मीठी आवाज़  आज पहली बार सुनी. खुद को खुशक़िस्मत समझ रहा था मैं उसके इतना क़रीब जाकर. “कहीं जा रही हैं? आइए मैं छोड़ दूं…” मैंने उसकी मदद करने के इरादे से पूछा, तो उसने नो, थैंक यू कहकर टाल दिया…  अब अक्सर उससे यूं ही मुलाक़ात होने लगी, कभी मार्केट में, तो कभी बस स्टॉप पर, क्योंकि मैंने बाइक छोड़ बस से जाना शुरू करदिया.  “एक रोज़ हमें बस में साथ बैठने का मौक़ा मिला, तो उसने सवाल किया, “आप तो बाइक से जाते थे ना?” “जी, लेकिन सोचा बाइक से पेट्रोल बर्बाद करने से बेहतर है पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूज़ करूं…” “वैसे आपका नाम जान सकता हूं…?” मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया.  “मैं चांदनी हूं. वैसे आपका नाम क्या है?” “मैं वियान हूं…” फिर हम दोनों चुप रहे और इतने में ही मेरा स्टॉप आ गया… अरे, ये क्या चांदनी भी यहीं उतर रही है? मैं सोच में पड़ गया. वो आगे चलरही थी, मेरे ही बैंक के गेट की ओर वो जाने लगी. मैंने सोचा कोई काम होगा. मैं भी अंदर चला गया और काम में जुट गया. वैसे मेरीनज़रें चांदनी को ही ढूंढ़ रही थीं, पर वो कहीं नज़र ही नहीं आ रही थी. इतने में ही डेस्क पर रखा फ़ोन बजा और हमको कॉन्फ़्रेन्स रूम मेंबुलाया गया.  “हेलो एवरीवन, मैं चांदनी… आपकी नई ब्रांच मैनेजर…”  उसको यूं देखकर मेरे तो होश ही उड़ गए थे.जिसे मैं एक घरेलू लड़की समझ रहा था, उसका एक अलग ही रूप और अंदाज़ आज मेरेसामने था.  ख़ैर, मीटिंग ख़त्म हुई और मैं अपने डेस्क पर लौट आया.  “वियान सर, आपको मैम ने बुलाया है…” मुझे ऑफ़िस बॉय ने आकर कहा तो मैंने केबिन में जाकर कहा- “मैम आपने बुलाया?” “हां, मैंने सोचा बैंक के सभी सीनियर पोस्ट वालों से वन ऑन वन बात करके अपडेट ले लेती हूं ताकि हम मिलकर बतौर एक टीम कामकरें और अपने बैंक को फिर से नंबर वन बनाएं.”…

January 17, 2023

काव्य: मुहब्बत के ज़माने… (Poetry: Mohabbat Ke Zamane)

खामोशी के साये में खोए हुए लफ़्ज़ हैं… रूमानियत की आग़ोश में जैसे एक रात है सोई सी…  सांसों की हरारत है, पिघलती सी धड़कनें… जागती आंखों ने ही कुछरूमानी से सपने बुने…  मेरे लिहाफ़ पर एक बोसा रख दिया था जब तुमने, उसके एहसास आज भी महक रहे हैं… मेरी पलकों पर जब तुमने पलकें झुकाई थीं, उसे याद कर आज भी कदम बहक रहे हैं… लबों ने लबों से कुछ कहा तो नहीं था, पर आंखों ने आंखों की बात पढ़ ली थी, वीरान से दिल के शहर में हमने अपनी इश्क़ की एक कहानी गढ़ ली थी…  आज भी वोमोड़ वहीं पड़े हैं, जहां तुमने मुझसे पहली बार नज़रें मिलाई थीं, वो गुलमोहर के पेड़ अब भी वहीं खड़े हैं जहां तुमने अपनेहोंठों से वो मीठी बात सुनाई थी…  आज फिर तुम्हारी आवाज़ सुनाई दी है, आज फिर प्यार के मौसम ने अंगड़ाई ली है, तुम्हारे सजदे में में सिर झुकाए आज भी बैठा हुआ हूं, तुम्हारी संदली ख़ुशबू से मैं आज भी महका हुआ हूं…  आ जाओ किमौसम अब सुहाने आ गए, हवा में रूमानियत और मेरी ज़िंदगी में मुहब्बत के ज़माने आ गए! गीता शर्मा डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z…

February 26, 2022

पहला अफेयर: काश, तुम समझे होते (Pahla Affair: Kash Tum Samjhe Hote)

पहला अफेयर: काश, तुम समझे होते (Pahla Affair: Kash Tum Samjhe Hote) कभी-कभी अचानक कहे शब्द ज़िंदगी के मायने बदल…

February 16, 2020

पहला अफेयर: उसकी यादें दिल में समाए हूं (Pahla Affair: Uski Yaden Dil Mein Samaye Hoon)

पहला अफेयर: उसकी यादें दिल में समाए हूं (Pahla Affair: Uski Yaden Dil Mein Samaye Hoon) वह अक्सर कहा करता…

February 2, 2020

पहला अफेयर: पहले प्यार की आख़िरी तमन्ना (Pahla Affair: Pahle Pyar ki Akhri Tamanna)

पहला अफेयर: पहले प्यार की आख़िरी तमन्ना (Pahla Affair: Pahle Pyar ki Akhri Tamanna) कहते हैं, इंसान कितना भी चाहे,…

January 19, 2020

पहला अफेयर: ख़ामोशियां चीखती हैं… (Pahla Affair: Khamoshiyan Cheekhti Hain)

पहला अफेयर: ख़ामोशियां चीखती हैं... (Pahla Affair: Khamoshiyan Cheekhti Hain) हमारी दोस्ती का आग़ाज़, शतरंज के मोहरों से हुआ था.…

January 5, 2020

पहला अफेयर: मंज़िल (Pahla Affair: Manzil)

पहला अफेयर: मंज़िल (Pahla Affair: Manzil) आज भी दिल का एक कोना सुरक्षित है उसके लिए, जो मेरे लिए केवल…

December 22, 2019

पहला अफेयर: ख़ूबसूरत फरेब (Pahla Affair: Khoobsurat Fareb)

पहला अफेयर: ख़ूबसूरत फरेब (Pahla Affair: Khoobsurat Fareb) घर में आर्थिक तंगी से मेरी पढ़ाई छूट गई थी. बस, गुज़र-बसर…

December 8, 2019
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