रिश्तों को पाने के लिए कहीं ख़ुद को तो नहीं खो रहे आप? (Warning Signs & Signals That You’re Losing Yourself In A Relationship)

कोई भी रिश्ता हो, वो कुछ न कुछ चाहता है, कुछ वादे, कुछ सपने, कुछ शर्तें, तो कुछ सामंजस्य व बदलाव भी… रिश्ते एक तरह से ख़ूबसूरत बंधन होते हैं… लेकिन ये बंधन तब तक ही अच्छे लगते हैं, जब तक आप इनमें बंधकर भी एक सुकून व ख़ुशी महसूस करते हैं, लेकिन जब यही बंधन बोझ लगने लगे, तो समझ जाएं कि आप कुछ ज़्यादा ही बंध गए हैं और अपने रिश्तों को पाने और जीने के लिए आप ख़ुद को खाते जा रहे हैं और ख़ुद के लिए जीना तक भूलते जा रहे हैं. जब कभी ऐसी नौबत आ जाए, तो एक बार रुक जाएं, ठहर जाएं और सोचें ज़रूर कि क्या इस तरह से रिश्ते आगे बढ़ पाएंगे और कब तक आप अपनी तरफ़ से इन्हें आगे बढ़ा पाएंगे?

– यह सच है कि रिश्तों में कभी अपनी पसंद पर, तो कभी अपनी ख़्वाहिशों से कॉम्प्रोमाइज़ करना पड़ता है, क्योंकि रिश्तों का दूसरा नाम ही एडजेस्टमेंट है. 
– रिश्तों को निभाने के लिए कॉम्प्रोमाइज़ भी ज़रूरी है और बदलाव भी. आपको बदलना पड़ता है और इसमें कोई बुराई भी नहीं, लेकिन ऐसा करते-करते कहीं ऐसा न हो कि आपके लिए ये बदलाव बोझिल साबित होने लगें?
– आप ही अगर अपनी तरफ़ से हर बात पर समझौता करते हैं, तो ज़ाहिर है आप सामने वाले की अपेक्षाएं बढ़ा रहे हैं. 
– माना रिश्तों की उम्र बढ़ाने के लिए कई बातों पर, कई चीज़ों पर समझौता करना पड़ता है, लेकिन हर बात पर आपको ही समझौता करना पड़े, तो हर किसी की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं, उन्हें लगता है कि यह काम तो इसकी ज़िम्मेदारी है. 
– लेकिन एक व़क्त ऐसा आता ही है, जब आपके द्वारा किया गया यह एकतरफ़ा बदलाव भारी पड़ने लगता है और आप अपने ही फैसले पर पछताते हैं. 
– ज़ाहिर-सी बात है कि ये बदलाव अधिकांश मामलों में महिलाओं को ही करने पड़ते हैं, जिससे उन पर रिश्तों का बोझ, काम व ज़िम्मेदारियों का बोझ बढ़ता ही जाता है और उनसे उम्मीदें भी बढ़ती ही जाती हैं.
– लेकिन अक्सर महिलाएं अपने रिश्तों को पाने व बचाने के लिए ख़ुद को खो देती हैं.


– वो न स़िर्फ ज़िम्मेदारियों ओढ़ती चली जाती हैं, बल्कि अपनी हेल्थ, अपने निर्णय, अपने सपने और अपनी ख़ुशी तक को भूलती व कुर्बान करती चली जाती है. 
– अपने स्वास्थ्य को इतना नज़रअंदाज़ करने लगती है कि आगे चलकर उसे ही भारी पड़ता है.
– यहां तक कि ख़ुद बीमार भी हो जाए, तो उसे जल्दी ठीक स़िर्फ इसलिए होना होता है कि उसे अन्य घरवालों व घर के कामों की फिक्र होने लगती है. 
– वो बीमार होकर भी ख़ुद को अपराधबोध से ग्रस्त कर लेती है कि उसके स्वास्थ्य के चलते घरवालों को इतनी परेशानी झेलती पड़ रही है. 
– ये सब आख़िर कहां तक जायज़ है? आप रिश्तों को नहीं पा रही होती हैं, बल्कि ख़ुद को खो रही होती हैं, क्योंकि रिश्ते तो दोनों तरफ़ से बराबरी से निभाए जाएं और ज़िम्मेदारियों को बंटवारा भी बराबरी से हो, तभी रिश्तों का मतलब है, वरना वो बेमानी हैं. 
ऐसे में सवाल यह उठता है कि किया क्या जाए?
– शुरू से ही अपने काम व ज़िम्मेदारियों के प्रति क्लीयर रहें. 
– आप यह ज़रूर जताएं कि हां, आप बदलेंगी, लेकिन उतना ही सामनेवाले को भी बदलना होगा.


– हर बार और हर परिस्थिति में स़िर्फ आपसे ही बदलाव की उम्मीद न की जाए. 
– रिश्तों में संतुलन ज़रूरी है. स़िर्फ आप ही न बदलें, अपने पार्टनर व अन्य सदस्यों को भी कहें कि वो भी सहयोगपूर्ण रवैया अपनाकर आपका साथ दें. 
– रिश्ते व घर से जुड़ी सभी ज़िम्मेदारी ख़ुद न ओढ़ें. 
– अन्य लोगों को भी उनके ज़िम्मेदारियों का एहसास कराएं. ज़िम्मेदारियों को बांट दें. इसके लिए एक सभी घरवाले एक टाइम टेबल बना लें और फॉलो करें. 
– हर काम व हर बात प्यार से करें, ताकि किसी को बुरा भी न लगे, क्योंकि प्यार से भी बहुत कुछ किया और करवाया जा सकता है. 
– बेहतर होगा कि आप सबसे पहले पार्टनर से पहले बात करें, उन्हें विश्‍वास में लें, उनका सहयोग होगा और वो आपके लिए बदलेंगे, तो आसान होगा.


– कुछ बातों पर ना कहना भी सीखें. आप अगर शुरू से ही सभी को आदत डाल देंगी कि आप हर बात पर समझौता करने को तैयार हैं, तो हर बार आपसे ही उम्मीद की जाएगी.
– बेहतर होगा ख़ुद के लिए भी समय निकालें. अपने सपनों को भी उड़ान दें. आप ख़ुश रहेंगी, तभी तो बेहतर तरी़के से काम कर सकेंगी. हर बात पर अगर आप झुकती चली जाएंगी, तो ख़ुद को मुसीबत में ही डालेंगी.
– ख़ुद को पैंपर करें. सहेलियों के साथ मूवी या डिनर पर जाएं. ज़रूरी नहीं कि हर बार पति या बच्चों के साथ ही आप बाहर जाएं. 
– कभी खाना न बनाकर बाहर से मंगवाएं. 
– अपनी फिटनेस और ब्यूटी का भी पूरा ख़्याल रखें. 
– अगर आपसे हर बात की उम्मीद की जाती है, तो कभी-कभी उम्मीदें तोड़ना भी ज़रूरी है. 
– यह आपको तय करना है कि आपको कोई कैज़ुअली न ले. ख़ुद से प्यार करना सीखें. 
– आप भी दिनभर काम करती हैं, तो आपको भी आराम करने का पूरा हक है. अपने लिए वीकली ऑफ डिसाइड करें और घरवालों को भी बता दें. उस दिन खाना या तो कोई और बनाए या बाहर से मंगवाए इस पर चर्चा करके हर कोई अपने लिए ऑफ और काम करने की ज़िम्मेदारी बांट ले. 
– ज़रूरी नहीं सबकी फरमाइशें हर बार पूरी की जाएं. क्या कभी ऐसा भी हुआ है कि आपकी फरमाइशों पर किसी का ध्यान गया हो?
– आपने जितना भी रिश्तों को दिया है, क्या घरवालों को उसका एहसास भी है? अगर नहीं, तो एहसास आपको कराना होगा. 
– रिश्तों को बनाए व बचाए रखने की ज़िम्मेदारी सभी की होती है, तो ज़िम्मेदारी भी सभी को लेनी होगी. आप ही अपने सपनों को छोड़कर सब कुछ क्यों करती या करते चले जाएं?
– ये तमाम बातें स़िर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि हर उस सदस्य के लिए हैं, जो अपना सब कुछ रिश्तों को दे देते हैं, लेकिन बदले में उन्हें सराहा तक नहीं जाता और जाने-अंजाने उनका फ़ायदा उठाया जाने लगता है और उन्हीं से उम्मीद की जाती है.


– जहां तक आप सहज महसूस करें और बात रिश्ते टूटने पर आ जाए, वहां कॉम्प्रोमाइज़ करने या दो क़दम पीछे हटने में भी बुराई नहीं, लेकिन अगर आपको निराशा और घुटन लगने लगे, तो अपने लिए ज़रूर सोचें, इसमें कोई बुराई नही. 
– अक्सर ऐसा भी होता है कि जो शख़्स उम्मीदें पूरी करता चला जाता है और एक व़क्त के बाद वो अपने लिए कुछ कहना या करना चाहता है, तो उसे स्वार्थी करार दिया जाता है, क्योंकि सबको यह लगने लगता है कि इसे तो हमारे लिए ही सब करना चाहिए, यही इसकी ज़िम्मेदारी है, तो ये अपने लिए कैसे सोच सकता है? 
– बेहतर होगा ऐसी सोच पनपने से पहले ही आप लोगों की उम्मीदें इतनी न बढ़ा दें और ख़ुद को इतना न खो दें कि दूसरे तो दूसरे ख़ुद आप भी ख़द को ढूंढ़ न पाएं. 
– दूसरों के स्वास्थ्य से पहले अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें, दूसरों के सपने ज़रूर पूरे करें, लेकिन अपने सपनों को पूरी तरह से दबा न दें. जीना न भूल जाएं, अपने लिए, ख़ुद को ख़ुश करने के लिए भी कुछ करें, ये स्वार्थ नहीं, बल्कि रिश्तों को पाने और ख़ुद को न खाने के लिए संजीवनी का काम करेगी. आगे आपकी मर्ज़ी.


– बिट्टु शर्मा

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Geeta Sharma

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