उलझा हूं ज़िंदगी की उलझनों में ऐसे
उनको याद करने की फ़ुर्सत नहीं मिलती
जो इश्क़ में करते थे जीने मरने के वादे
अब ढूंढे़ं से उन आंखों में चाहत नहीं मिलती
जिस घर में गूंजते थे यारों के कहकहे
उस घर में अब किसी की आहट नहीं मिलती
हर सांस चल रही है हर शख़्स जी रहा है
पर जीने की किसी में हसरत नहीं मिलती
अब मेरी शायरी में वो रंग कैसे आए
जब हुस्न में पहले सी नज़ाकत नहीं मिलती
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