श्रम-निष्ठा जो हो सच्ची, माँ मेरे द्वारे तुम आना,
आत्मा को तृप्त करें, वरदान मुझे वो दे जाना।
युक्ति की कमी बहुत, महसूस मुझको होती है,
बुद्धि में बनके विवेक, माँ गायत्री तुम बस जाना।
वाक्-चातुर्य नहीं है बिल्कुल, माँ तेरी इस बेटी में,
बन के ये कला मुझमें, माँ सावित्री तुम बस जाना।
जाने कितनी बातों से, तेरी बेटी डर जाती है,
मन में निर्भयता बनकर, माँ शक्ति तुम बस जाना।
ढाल नहीं पाती शब्दों में, निज व्यथाएं तेरी बेटी,
लेखनी को माँ सरस्वती, ये सामर्थ्य दिला जाना।
हार कभी न माने मन, जगत के रक्तबीजों से,
मेरी आत्मा में दुर्गा माँ, तुम अपना आवास बनाना।
– भावना प्रकाश
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