बरखा रानी लगता है तुम, युगों के बाद आई हो
धरती की प्यास बुझाने, कितनी ठंडक लाई हो
मीठी यादें, अल्हड़ सपने, तुम झोली में भर लाई हो
तपते-जलते आकुल मन में, बनके शांति मुस्काई हो
सूरज की तपिश झेलकर, तुम वाष्प बन जाती हो
फिर अंबर के आंगन में, संगठित हो जाती हो
अपने अस्तित्व को खोकर, सबकी प्यास बुझाती हो
परिवर्तन और त्याग ही जीवन है, ये पाठ पढ़ाती हो
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