Shayeri

कविता- मां का आंचल… (Poetry- Maa Ka Aanchal)

कभी धूप में छांव बन जाती है

कभी पसीने में रूमाल बन जाती है

थाम लो जो एक बार इसे

ज़मीन क्या ये पूरा आसमान बन जाती है

कभी ये बिस्तर बन जाती है

कभी हथपंखा

अक्सर ओढ़ा है इसे सबने

ये वस्त्र है सबके मनपसंद का

हम घूमें इसके चारों ओर

ये घूमें हमारे संग संग

कभी पोंछे आंसू हमारे

कभी खिलखिलाएं हमारे संग

पूरे ब्रह्मांड में हैं सबसे प्यारी

सबसे अनमोल और शीतल

जो है तेरे भी घर, जो है मेरे भी घर

वो है एक मां का आंचल…

शिल्पी कुमारी


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Photo Courtesy: Freepik

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