pahla affair

पहला अफेयर- रेत के आंसू (Love Story- Ret Ke Aansu)

“तुम सूखे पत्तों की तरह हो शिल्पी और मैं एक बेजान ठूंठ की तरह! नहीं संभाल पाऊंगा मैं तुम्हें... शायद…

March 15, 2025

पहला अफेयर- सुरों भरी शाम के नगमे… (Love Story- Suron Bhari Sham Ke Nagme…)

मैं तो सच में मदहोश हो गई. गाने के हर लफ़्ज़ के साथ जैसे एक डोर वास्तव में मन को…

March 10, 2025

पहला अफेयर- जनवरी की वह सर्द शाम (Love Story- January Ki Woh Sard Sham)

शादी के हवन में तुम्हारी बेवफ़ाई को स्वाहा करके एक नए हमसफ़र के साथ नई दुनिया बसा ली. लेकिन उस…

January 6, 2025

पहला अफेयर- तुम्हारी सहपाठी (Love Story- Tumhari Sahpathi)

तुम मेरे जीवन में न होकर भी हमेशा मेरी स्मृतियों में रहे. मैं तुम्हें भूला नहीं पाई या ये कहूं…

December 7, 2024

पहला अफेयर: अभी तक नहीं समझी… (Love Story- Abhi Tak Nahi Samjhi…)

स्कूल में जब तुम मुझे क्लास बंक करते देख मुझे हक़ से डांटते, तो मुझे तुम्हारी डांट बहुत अच्छी लगती.…

November 11, 2024

पहला अफेयर- करवा चौथ की मेहंदी… (Love Story- Karva Chauth Ki Mehndi…)

प्रेम सृष्टि की अनोखी अनुभूति है, जिसके एहसास धमनियों में प्रवाहित होते रहते हैं. कुछ एहसास तो इतने गहरे होते…

October 16, 2024

पहला अफेयर- बूंदों की सरगम… (Love Story- Boondon Ki Sargam)

हल्की सी बूंदाबांदी शुरू हो गई. वह बूंदों की सरगम पर फिर गुनगुनाने लगी. उसका आसमानी दुपट्टा हवा से लहरा…

September 11, 2024

पहला अफेयर- मेट्रो वाला प्यार… (Love Story- Metro Wala Pyar…)

सौम्य, सुसंस्कृत लडका रिया को पहली नज़र में ही भा गया. जब दोनो एक ही स्टेशन पर उतरे और एक…

August 29, 2024

पहला अफेयर: वो ख़त जो कभी न गया (Pahla Affair: Wo Khat Jo Kabhi Na Gaya)

कल अलमारी साफ करते-करते रुचिका फाइल्स भी ठीक करने में लग गई. जब से बेटे उत्सव का एडमिशन इंदौर में…

May 13, 2024

पहला अफेयर: एक गुलाबी सुगंध… (Pahla Affair: Ek Gulabi Sugandh)

केमिस्ट्री का नीरस लेक्चर सुनते हुए नींद से आंखें बोझिल होने लगी थीं. मैं क्लास में लास्ट बेंच पर बैठा…

May 10, 2024

पहला अफेयर: पीली चूड़ियां (Pahla Affair… Love Story: Peeli Choodiyan)

प्रेम त्वरित आनंद देता है.. उसका रिसाव धमनियों का प्रवाह जीवंत बनाए रखता है. प्रेम, सृष्टि का सबसे महंगा सुख…

March 25, 2024

पहला अफेयर: कुछ कह कर तो जाते… (Pahla Affair… Love Story: Kuchh Kehkar Toh Jaate)

20 दिसंबर 1987 को तुम मुझे अपने दोस्त, बहन और भतीजे के साथ देखने आए थे. मैं सुबह से बेचैन थी, ज़िंदगी बदल जाएगी इसएक नए रिश्ते से, सोच रही थी कि न जाने कैसा होगा वो, मुझे पसंद आएगा भी या नहीं… ज़ाहिर है हर लड़की के मन में ऐसे सवाल आनेलाज़मी हैं…  इतने में ही डोर बेल बजी… मैंने सोचा अभी तो काफ़ी वक्त है तुम्हें आने में तो इस वक़्त कौन होगा? मम्मी ने कहा जाकर देख लौंड्रीवाला होगा, मैंने दरवाज़ा खोला और सामने तुम्हें पाया… हम दोनों ने सिर्फ एक-दूसरे को पल भर ही निहारा था और वो ही पल हमारापहला अफेयर बन गया था. मेरी धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि डर लग रहा था सबको सुनाई न दे जाएं. मैं नज़रें झुकाकर एक तरफ़ हो गई, तब तक मम्मी आ गई थी. ख़ैर मैं गर्दन झुकाए तुम्हारे सामने बैठी थी, कुछ नहीं पूछा तुमने बस नज़रों ही नज़रों में प्रेम की मौन स्वीकृति दे दी. उस रात मुझे नींद नहींआई. आनेवाले कल के रंगीन सपने मैं खुली आंखों से देख रही थी. न जाने क्या था तुम्हारी उन आंखों में जो एक ही पल में मैं डूब ही गई, कभी न उबरने के लिए. कितना शांत था तुम्हारी आंखों का वो गहरा समंदर, जिसमें मैं इश्क़ के गोते लगा रही थी. तुम्हारी हां थी और मेरी भी हां थी तो बस फिर क्या था, चट मंगनी पट ब्याह हो गया फागुन की फुलेरा दूज को. सहेलियां अरेंज मैरिजमानने को तैयार नहीं थीं. सभी का कहना था कि यह तो लव मैरिज है और सच भी यही था वह पल हमारा पहला अफेयर ही था. पहलीनज़र का प्यार, जिसके बारे में बस सुना ही था पर जब ख़ुद उस एहसास से गुज़री तो पता चला ऐसा सच में होता है. ऊपरवाला इशारादेता है कि हां यही है वो जो अब तक कल्पनाओं में था और अब रूबरू है. वैवाहिक जीवन के 32 वर्ष हंसी-खुशी से गुज़र गए और नवंबर की एक क्रूर रात्रि को तुम मुझसे रूठकर  ऐसे सफर पर चले गए, जहां सेलौटकर आना नामुमकिन है. मैं  बहुत नाराज़ हूं तुमसे… भला ऐसे भी कोई जाता है? तुम अपने सफर पर गए हो और मेरे अंदर हर रोज़ यादों का एक सफर शुरू होताहै... सुबह की चाय से… चाय की ख़ुशबू में, उसकी महकती भाप के बीच भी तुम नज़र आते हो और मुस्कराते हो... मैं बावली-सीअनायास पूछ बैठती हूं- वही रोज़वाला सवाल, ‘फीकी चाय पी कैसे लेते हो?’  ‘तेरी मीठी मुस्कान से चाय मीठी हो जाती है…’ ‘धत्त’ कहकर मैं शरमा जाती हूं…  यादों का अंतहीन सिलसिला फिर रफ्तार पकड़ लेता है. तमाम खूबसूरत लम्हे जीवंत हो उठते हैं, भरपूर जी लेती हूं उन लम्हों को. चाहेवह बोलचाल बन्द होने के हों, तीखी नोकझोंक या खट्टी-मीठी तकरार के हों. शाम ढलते ही मन में खालीपन, उदासी और तन्हाई का गहरा धुंधलका छा जाता है. रात घिरते ही... अचानक कमज़ोर हो उठती हूं मैं, टूट जाती हूं… बिखर जाती हूं... फिर हिम्मत-हौसले से खुद को सम्भालती हूं. कभीतलाशती हूं तुम्हें बिस्तर की सलवटों में... लिहाफ की गर्माहट में... स्पर्श के एहसास में... अचानक तुम्हारा मौन मुखर हो उठता है... ‘पगली, मैं यहीं हूं, तेरे पास... तेरे साथ... जन्मजन्मांतर का साथ है हमारा...’ यह सुनकर बेचैन मन का समंदर शांत हो जाता है... औरआंखों के किनारों से चंद नमकीन बून्दें ढुलक जाती हैं… नींद कब अपनी आगोश में ले लेती है पता ही नहीं चलता. फिर सुबह वही यादोंका सफर शुरू हो जाता है. फिर वही चाय, वही ख़ुशबू और वही तुम्हारी यादों का जादू… सच बहुत खफा हूं तुमसे... ऐसे बिन कहे, बिनसुने अचानक कौन चला जाता हैं… शब्दों से न सही पर सिर्फ़ निगाहों से ही कम से कम कुछ कह कर तो जाते...  सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी... बावली…   डॉ. अनिता राठौर मंजरी 

January 8, 2024
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