फिल्म रिव्यू: ‘सिमरन’ में सारा दारोमदार है कंगना पर, ‘लखनऊ सेंट्रल’ कमज़ोर फिल्म है (Movie Review: Simran And Lucknow Central)
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फिल्म- सिमरनस्टारकास्ट- कंगना रनौत, सोहम शाहनिर्देशक- हंसल मेहतारेटिंग- 3 स्टार्सकहानी
ये कहानी है खुलकर अपनी शर्तों पर जीने वाली लड़की प्रफुल पटेल की. प्रफुल पटेल (कंगना) एक बिंदास लड़की है. उसका तलाक हो चुका है और वो अपने माता-पिता के साथ रहती है. एक होटल में वो हाउसकीपर का काम करती है. उसका बॉयफ्रेंड भी है. एक दिन वो पहुंचती है लॉस वेगास, जहां वो गैम्बलिंग करती है और बहुत सा पैसा हार जाती है. कर्ज़ में डूबी बिंदास प्रफुल लूटपाट का काम शुरू करती है और धीरे-धीरे क्राइम की ओर बढ़ जाती है. क्या होता है प्रफुल का? क्या उसकी चोरी की लत उसे बड़ी मुश्किल में फंसा देती है? क्या होता है तब, जब उसके बॉयफ्रेंड को पता चलता है कि प्रफुल को चोरी करने की आदत है? इन सवालों का जवाब आपको फिल्म देखने पर ही मिल पाएगा.
फिल्म की यूएसपी और कमज़ोर कड़ी
फिल्म की यूएसपी है कंगना की ऐक्टिंग, जो हमेशा की तरह अच्छी है. फिल्म में कंगना के कई शेड्स हैं, जो आपको मज़ेदार लगेंगे.
बात करें अगर कमज़ोर कड़ी कि तो फिल्म की कहानी थोड़ी-सी बिखरी नज़र आती है. कई जगहों पर कहानी में कुछ ऐसा होता है, जिस पर यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है.
शाहिद, अलीगढ़ और सिटीलाइट जैसी बेहतरीन फइल्में बना चुके हंसल मेहता इस फिल्म में वो कमाल नहीं दिखा पाए.
फिल्म का ट्रेलर काफ़ी मज़ेदार थी, लेकिन फिल्म से ये उम्मीद नहीं की जा सकती है.
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है.
फिल्म देखने जाएं या नहीं?
अगर आप कंगना रनौत के फैन हैं और हल्की-फुल्की कॉमेडी पसंद करते हैं, तो एक बार ये फिल्म देख सकते हैं.
यह भी पढ़ें:नवंबर में दूल्हा बनेंगे ज़हीर खान, सागरिका संग करेंगे शादी!फिल्म- लखनऊ सेंट्रलस्टारकास्ट- फरहान अख्तर, डायना पेंटी, गिप्पी ग्रेवाल, रोनित रॉय, रवि किशन और दीपक डोबरियालनिर्देशक- रंजीत तिवारीरेटिंग- 2.5लखनऊ सेंट्रल का विषय अच्छा है. आइए, जानते हैं फिल्म कैसी है.
कहानी
कहानी है किशन मोहन गिरहोत्रा (फरहान अख़्तर) की, जो मुरादाबाद में रहता है और म्यूज़िक डायरेक्टर बनना चाहता है. एक दिन उसके साथ कुछ ऐसा होता है कि वो एक मामले में आरोपी बना दिया जाता है और जेल पहुंच जाता है. जेल में वो वहां के कैदियों गिप्पी ग्रेवाल, दीपक डोबरियाल, इनामुलहक और राजेश शर्मा के साथ मिलकर बैंड बनाता है. जेलर (रोनित रॉय) की नज़रें इन सब कैदियों पर होती है. सोशल वर्कर बनी डायना पेंटी इन कैदियों से सहानभूति रखती हैं. क्या किशन मोहन ख़ुद को निर्देष साबित कर पाता है? क्या वो संगीतकार बनने का अपना सपना पूरा कर पाता है? इन सब सवालों का जवाब फिल्म में आखिर में मिल जाता है.
फिल्म की यूएसपी और कमज़ोर कड़ी
फिल्म का विषय अच्छा था, लेकिन फिल्म इस विषय पर खरी नहीं उतरती है. बेहद ही कमज़ोर डायरेक्शन है फिल्म का.
फरहान अख़्तर की ऐक्टिंग हमेशा की तरह अच्छी है, लेकिन कमज़ोर डायरेक्शन का असर उन पर साफ़ नज़र आता है.
रवि किशन, दीपक डोबरियाल का काम अच्छा है.
फिल्म में यूं तो बैंड दिखाया गया है, लेकिन गाने ऐसे नहीं की याद रखे जाएं.
फिल्म देखने जाएं या नहीं?
अगर आप फरहान अख़्तर के फैन हैं, तो ये फिल्म देखने जा सकते हैं. वैसे किसी कारणवश अगर ये फिल्म आप नहीं भी देख पाते हैं, तो कोई नुक़सान नहीं होगा आपका.