नेत्र कहूं नयन कहूं या कहूं मैं चक्षु
आंखों की भाषा सिर्फ़ नहीं है अश्रु
जीवन का दर्पण है आंखें
भक्ति का अर्पण है आंखें
प्रेम की अभिव्यक्ति आंखें
तो कभी विरह का क्रन्दन बन जाती आंखें
जो अधरों से ना फूटे वो बोल है आंखें
प्रियतम की प्रीत का हसीन एहसास करती आंखें
कभी प्रेम तो कभी समर्पण आंखें
तो कभी नशे से मदहोश हो झूमती आंखें
ग़म को अश्रुओं में बहाती आंखें
तो कभी उसी ग़म को हंसी में छिपाती आंखें
दिल के दरवाज़ों में बंद राज़ को बेपरदा करती आंखें
तो कभी हर राज़ को दफ़न करती आंखें
चाहे जितना छिपाओ मन के भावों को पर
हर भाव की अभिव्यक्ति बन जाती ये आंखें
रात को ख़्वाब सजाती
दिन में हक़ीक़त से रूबरू करवाती ये आंखें
ख़ुशक़िस्मत है वो जिन पर आंखों की नेमत है
है अगर दो आंखें तो ज़िंदगी का हर लम्हा रोशन है…
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