कभी कभी सोचता हूं
तमन्ना में
जी लूं वह अधूरी ज़िंदगी
कि जिसे जीने की
ख़्वाहिश में
उम्र गुज़र गई
क्योंकि
जिनके साथ हम होते हैं
उनके साथ हम
वह ज़िंदगी जी ही नहीं पाते
जो जीना चाहते हैं
कभी कभी तमन्ना
इतनी छोटी होती है
कि उसे सोच कर
शर्म आती है
जो उम्र से परे निकल जाती है
और एक दिन
यह छोटी छोटी तमन्नाएं
इतनी बड़ी हो जाती हैं
कि उन्हें बस
ख़्वाब में जीना पड़ता है
बहुत ज़रूरी था
कि तुम मुझे मिलते
वर्ना मैं तो
इन अधूरी तमन्नाओं के
ख़्वाब देखना भी
भूल गया था…
– शिखर प्रयाग
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