जब से गली बॉय ऑस्कर अवॉर्ड की दौड़ से बाहर हुई है, तब से इसे लेकर कई क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. किसी ने इसे ग़लत चुनाव बताया, तो किसी ने फिल्मों में हो रही भाई-भतीजावाद पर भी ताने मारे. इसी कड़ी में जनाब रंगोलीजी ने यहां तक कह डाला कि भला ऑस्कर जूरी ऐसी फिल्म को क्यों पुरस्कार देगी, जो उन्हीं के यहां की फिल्म की नकल है.
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रंगोली चंदेल ने गली बॉय की टीम पर इसे हॉलीवुड मूवी 8 माइल की कॉपी का इल्ज़ाम लगाया है. उनका यह मानना है कि जब उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक व मणिकर्णिका जैसी सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्में हैं, तो क्योंकर गली बॉय को प्राथमिकता दी गई. फिल्में मूवी माफिया, चाटुकारता से नहीं, बल्कि अपने ओरिजनल कंटेंट के कारण ऑस्कर अवॉर्ड जीतती हैं. इसमें जी हुजूरी काम नहीं आती.
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यह रहा रंगोलीनामा का मास्टरस्ट्रोक. वे ऐसे ही समय-समय पर अपनी बातों, जिसमें कटाक्ष, ताने अधिक होते हैं, से सभी को आश्चर्यचकित करती रहती हैं. भट्ट फैमिली तो हमेशा ही उनके निशाने पर रहता है. आलिया भट्ट को तो रंगोली ने कई बार शर्मसार किया है. कभी उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड मिलने पर, तो उनके द्वारा अवॉर्ड मिलने से पहले ही फोटो खिंचवाने व उसे अभी न छापे जैसी बातों पर आलिया की ईमानदारी की प्रशंसा करते हुए, तो कभी महेश भट्ट को नागरिकता संशोधन क़ानून पर लताड़ते हुए.
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हाल ही में महेश भट्ट ने इस क़ानून का कड़ा विरोध करते हुए सोशल मीडिया पर वीडियो शेयर किया था. तब इसी के जवाब में रंगोली ने उनकी पुरानी तस्वीर जिसमें वे अपनी बेटी पूजा भट्ट को होंठों पर किस कर रहे हैं को शेयर करते हुए कई कमेंट्स किए. यह विवादपूर्ण फोटो एक मशहूर फिल्मी पत्रिका के कवर पर भी छपी थी, तब इसे लेकर बहुत बड़ा बवाल मचा था. अधिकतर लोगों ने महेश भट्ट को बुरा-भला कहा था और कड़ी आलोचना की थी. इसी पर रंगोली का कहना है, जो शख़्स इस तरह तस्वीरें खिंचवाने से भी बाज नहीं आता और जिसने देश का अब तक तो कुछ भला किया नहीं, तो वो किस अधिकार से देश में पास हुए किसी क़ानून को लेकर निंदनीय बयान दिए जा रहा है.
समय-समय पर इसी तरह की बयानबाज़ी से रंगोलीनामा भरा हुआ है. एसिड अटैक पर भी उन्होंने ख़ुद के साथ हुए हादसे को पूरी ईमानदारी व साहस के साथ बयां किया था. उनकी दर्दभरी कहानी को सुन एकबारगी विश्वास नहीं होता, लेकिन बकौल उनके यही सच है.
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वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि अनगिनत मौलिक कहानियां होने के बावजूद फिल्म इंडस्ट्री हॉलीवुड फिल्में या फिर विदेशी फिल्मों की नकल करने में अपना अक्ल अधिक ख़र्च करती है. यही दिमाग़ सच्ची व देश से जुड़ी विभिन्न घटनाओं पर डालें, तो मैरीकॉम, भाग मिल्खा भाग, टॉयलेट- एक प्रेमकथा, नीरजा, उरी, बाला जैसी और भी बेहतरीन विषयों पर फिल्में क्यों नहीं बन सकतीं! इसी फेहरिस्त में छपाक फिल्म भी एक बेहतरीन उदाहरण है.आनेवाले कल में रंगोलीनामा और क्या रंग लाएगी, यह तो रनौत बहने ही बख़ूबी जानती-समझती होंगी. अपना तो यह हाल है कि हम बोलेगा, तो बोलोगे की बोलता है... इसीलिए हम ख़ामोशी से इंतज़ार करेंगे उनके कुछ कहने का...
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