“मेघा, तुम्हारी तरह मेरी भी एक बेटी है जूही... जो तुमसे महज़ दस साल छोटी होगी. मैं चाहता हूं कि वो भी तुम्हारी तरह प्रतिभाशाली हो, लेकिन आज तुम्हें देखकर मुझे डर लगता है कि कहीं मेरी जूही ने भी महज़ आकर्षण के कारण मेरे प्यार, स्नेह, समर्पण और कंसर्न को दरकिनार कर दिया तो क्या होगा? मेरे पढ़ाने का ढंग, तुम लोगों से जुड़ जाना मेरा प्रोफेशन है. कीट्स की कविताओं को पढ़ाना मेरी रोज़ी-रोटी है. अपने परिवार के पालन-पोषण का ज़रिया मात्र है.” घुटनों के बीच सिर छुपाए मेघा रो पड़ी थी. अटकते शब्दों में इतना कहा, “मेरे लिए फिर से आपका सामना करना, सब कुछ नॉर्मल होना, आसान नहीं है.”
कैसे बताते कि उनकी बेटी आज अपने टीचर की वजह से अवसाद में आई है. नहीं, कुछ भी हो... मेघा में इन परिस्थितियों से निकलने की शक्ति तो फूंकनी ही पड़ेगी. अगले ही पल वो मेघा के सामने खड़े थे.
“कैसी हो मेघा?”
“आपके उस दिन के कठोर व्यवहार के बाद मैं कैसी हो सकती हूं?” मेघा के कठोर शब्दों से अविचलित वो बोले, “जानती हो मेघा, इन दिनों तुम्हारे स्कूल ना आने से किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, सिवाय तुम्हारे मम्मी-पापा के. वो चिंता में घुल रहे हैं कि उनकी परवरिश और समर्पण में कहां चूक हो गई, जिससे तुम आज इस अवसाद में हो. अगर उन्हें पता चला कि तुम्हारी इस हालत के पीछे मेरा अपरोक्ष रूप से हाथ है, तो सोचो मैं ख़ुद से कैसे नज़रें मिलाऊंगा. ख़ुद को संभालो मेघा, विश्वास करो. कल जब तुम अपने बचपने को याद करोगी, तो तुम्हें हंसी आएगी सोचकर कि किस तरह तुम अपने टीचर के प्रति आकर्षण को प्यार समझ बैठी.”
मेघा की आंखों में आंसू तैरने लगे थे, उस व़क्त उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा था, “मेघा, तुम्हारी तरह मेरी भी एक बेटी है जूही... जो तुमसे महज़ दस साल छोटी होगी. मैं चाहता हूं कि वो भी तुम्हारी तरह प्रतिभाशाली हो, लेकिन आज तुम्हें देखकर मुझे डर लगता है कि कहीं मेरी जूही ने भी महज़ आकर्षण के कारण मेरे प्यार, स्नेह, समर्पण और कंसर्न को दरकिनार कर दिया तो क्या होगा? मेरे पढ़ाने का ढंग, तुम लोगों से जुड़ जाना मेरा प्रोफेशन है. कीट्स की कविताओं को पढ़ाना मेरी रोज़ी-रोटी है. अपने परिवार के पालन-पोषण का ज़रिया मात्र है.” घुटनों के बीच सिर छुपाए मेघा रो पड़ी थी. अटकते शब्दों में इतना कहा, “मेरे लिए फिर से आपका सामना करना, सब कुछ नॉर्मल होना, आसान नहीं है.”
“यही तो परीक्षा की घड़ी है कि तुम किस तरह ख़ुद का सामना करोगी. मेरी चिंता मत करो. मेरे लिए तुम्हारी ग़लती वैसी ही है, जैसी अन्य किसी की कोई उद्दंडता, जिसके लिए मैं हमेशा अपने स्टूडेंट्स को डांटता-फटकारता और माफ़ करता आया हूं. उन सबके पीछे मेरा एक ही उद्देश्य तो रहता है, तुम सबको सही मार्ग पर जाते देखना. तुम तो वर्षा की वो बूंद हो, जो सागर में गिरने योग्य है. सागर में गिरोगी तो सागर कहलाओगी. गंदे पोखर में गिरने से वैसी ही हो जाओगी. तुम्हें दूषित जल बनते देखना तुम्हारे माता-पिता व टीचर्स के बस में नहीं होगा. हम सबको तब अच्छा लगेगा, जब तुम सागरमय होकर हमें गौरवान्वित करोगी. करोगी ना हमें गौरवान्वित? संभालोगी ना ख़ुद को.” मेघा की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे.
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उसके बाद मेघा स्कूल नहीं आई, लेकिन उसकी मम्मी ने बताया कि वो जी-तोड़ मेहनत कर रही है. इम्तहान हुए. रिज़ल्ट आया, मेघा ने सबको चौंका दिया, नाइंटी फाइव पर्सेंट लाकर. एक दिन सुकीर्ति ने एक बड़ा-सा कार्ड दिया, जिसमें मेघा ने बड़े अक्षरों में ‘सॉरी’ लिखा था. साथ में थी चंद पंक्तियां- ‘मिलने की हिम्मत नहीं थी, पर बिना कुछ कहे जाती, तो मन पर बोझ रहता. सर, उम्मीद है आपने मेरी उस दिन की ग़लती को माफ़ कर दिया होगा. आपके कहे अनुसार वर्षा की बूंद बनकर सागर में गिरने के लिए पूरा ज़ोर लगा दूंगी, ताकि मेरे मम्मी-पापा की तरह आप भी एक दिन मुझ पर गर्व करें. मेरी ग़लती का वो प्रायश्चित भी होगा. आपकी स्टूडेंट मेघा.’ समीर सर का मन भर आया था.
सुकीर्ति पूछ रही थी, “ऐसी क्या ग़लती हो गई थी इससे.”
समीर सर कह रहे थे, “बच्चे हैं, आए दिन कुछ ना कुछ करते रहते हैं. हमें भी कहां याद रहती हैं इनकी ग़लतियां.” अतीत के पन्नों की इबारतें उभरकर फिर धुंधली पड़ने लगी थीं. इबारतों की जगह मेघा का आज सुबह मुस्कुराता चेहरा था. मेघा का हंसता-खिलखिलाता आत्मविश्वास से भरा चेहरा. “पापा इस बार मुझे नाइंटी फाइव से ऊपर लाने हैं. मैं भी मेघा दीदी की तरह मेडिकल में जाऊंगी.” जूही की आवाज़ सुनकर समीर अतीत से बाहर आ गए थे.
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“मम्मी, पापा को देखो आज कितना प्राउड फील कर रहे हैं. मैं भी आपको और पापा को ऐसा प्राउड फील कराऊंगी. जब पापा के स्टूडेंट अपनी सफलता के लिए पापा को क्रेडिट देते हैं, तो मैं तो उनकी बेटी हूं.” समीर ने ध्यान से जूही को देखा, एक पल को लगा मेघा खड़ी है और कह रही हो... ‘थैंक्यू सर...’ उस दिन आपके बोले कड़वे बोल और कठोर व्यवहार मेरे इलाज का एक हिस्सा था. जिसने ना केवल मुझे स्वस्थ किया, बल्कि इस योग्य बनाया कि मैं समाज के अभ्युदय के लिए योगदान करूं. आपके ये शब्द मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे. जीवन कीट्स की रोमांटिक कविताओं की तरह सुगम नहीं है. इसमें हिचकोले हैं, जो हमें संभलने की अनवरत प्रेरणा देते है.’
मीनू त्रिपाठी
“सर, मैं जब भी पढ़ने बैठती हूं, आपका चेहरा सामने आ जाता है. मैं क्या करूं सर? सही-ग़लत नहीं जानती. बस, इतना जानती हूं कि आप ही मेरा पहला प्यार हैं. आप नहीं मिलते, तो जान ही नहीं पाती कि पहले प्यार का नशा कैसा होता है. सर, आई लव यू सो मच...” उसने चेतनाशून्य होते हुए कहा. हकबकाए अवाक् से वो मेघा का मुंह देखते रहे, जिस पल से आशंकित थे, वो सामने था. भय की झुरझुरी-सी उभरी.
“मेघा, मैं घर पर स्टूडेंट्स का आना पसंद नहीं करता हूं. स्कूल खुल जाएंगे, तब मैं क्लास में इन प्रॉब्लम्स को क्लास प्रॉब्लम बनाकर सॉल्व कर दूंगा, ताकि किसी के मन में कोई डाउट ना रहे.” मैंने सख़्ती बरतते हुए कहा.
“पर सर, मेरी प्रॉब्लम सबकी प्रॉब्लम कैसे हो सकती है?” मेघा उनको ताकती हुई बोली.
“देखो मेघा, एक की समस्या को उठाने से बहुतों को लाभ मिले, यही पढ़ाने का तरीक़ा होता है. हो सकता है, जो तुम्हारे डाउट्स हैं, वो किसी और के भी हों. ऐसे में मेरा प्रयास व्यर्थ ना जाए, इसलिए कक्षा में एक साथ सबको पढ़ा दूंगा.”
“सर, मेरी प्रॉब्लम सबसे अलग है.” मेघा की बढ़ती धृष्टता बर्दाश्त से बाहर होने लगी थी.
“मेघा, अब तुम घर जाओ. मुझे और भी काम हैं.” कहकर समीर सर वहां से चले गए. उसके जाने के बाद सुकीर्ति ने दरवाज़ा बंद किया.
“बहुत सिंसियर लड़की है. अपनी पढ़ाई को लेकर बेहद सचेत है.” “हूं...” कहकर समीर सोच में डूब गए थे. स्कूल खुलनेवाले थे, उस दिन सुकीर्ति जूही को लेकर बाज़ार गई थी. अचानक मेघा फिर घर आ गई.
“मेघा, मैं इस वक़्त बाहर जा रहा हूं. तुम स्कूल में पूछना.”
“सर, मैं कुछ कहने आई हूं.” मेघा अपनी उंगलियों को एक-दूसरे में फंसाती फिर निकालती. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह अपने अंतर्द्वन्द्व से निकल आना चाहती हो, उसकी मनोदशा डराने लगी थी. रोज़ की अपेक्षा उस दिन ख़ुद पर उन्होंने कठोर आवरण चढ़ा लिया था. उनकी स्वाभाविक कोमलता छिप गई थी, लेकिन मेघा तो अंतर्मन में बसे प्रेम के वशीभूत सुध-बुध खोने को आतुर थी. अचानक उसने कहा, “सर, मैं जब भी पढ़ने बैठती हूं, आपका चेहरा सामने आ जाता है. मैं क्या करूं सर? सही-ग़लत नहीं जानती. बस, इतना जानती हूं कि आप ही मेरा पहला प्यार हैं. आप नहीं मिलते, तो जान ही नहीं पाती कि पहले प्यार का नशा कैसा होता है. सर, आई लव यू सो मच...” उसने चेतनाशून्य होते हुए कहा. हकबकाए अवाक् से वो मेघा का मुंह देखते रहे, जिस पल से आशंकित थे, वो सामने था. भय की झुरझुरी-सी उभरी.
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“सर, कुछ बोलिए... आपकी हां या ना पर मेरी ज़िंदगी टिकी है.” उनकी छात्रा उनसे वो जवाब मांग रही थी, जिसका उत्तर तलाशने में उनकी चेतना लुप्त हुई जाती थी.
अचानक अपने विवेक को जागृत कर वे ज़ोर से बोले, “प्यार समझने की उम्र है तुम्हारी? नहीं, तुम किसी के प्यार के योग्य नहीं हो.”
वो आसमान से गिरती, उससे पहले वो बोले “तुम स्वार्थी हो मेघा, मैं अपने प्यार को स्वार्थी लोगों पर ज़ाया नहीं करता हूं.” फिर तमतमाए हुए भीतर कमरे में अख़बारों की गड्डियों से कुछ ढूंढ़ने लगे, आवेश में कांपते वो एक अख़बार को ले आए, उसे दिखाते हुए बोले, “ये लड़की है प्यार के क़ाबिल... क्योंकि इसे अपने माता-पिता के प्यार का मोल चुकाना आता है.” ख़बर थी- ‘वेजीटेबल वेंडर की बेटी ने तमाम अभावों के बीच परचम लहराया. साइंस ओलम्पियाड में प्रथम स्थान प्राप्त किया. वह मेडिकल में जाकर अपने माता-पिता के सपने को साकार करना चाहती है.’
मेघा की आंखें अपमान से डबडबाई झुकी हुई थीं और वो ज़ोर-ज़ोर से उसकी मुख्य पंक्तियों को पढ़ रहे थे. प्यार को व्यक्त करने के बाद इस हश्र के लिए मेघा तैयार नहीं थी. समीर सर की ग़ुस्से से भरी आंखों की ओर देखने की भी हिम्मत नहीं थी, सो अपने दोनों हाथों से चेहरे को ढांपकर रो पड़ी. ऊपर से ख़ुद को कठोर दिखाते वो तब घबरा उठे. सुकीर्ति घर पर नहीं थी, कहीं किसी ने देख लिया, तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा. कुछ समझ में नहीं आया, तो घर से बाहर निकल गए. कुछ देर खुली हवा में बैठे रहे. मेघा कब वहां से गई पता नहीं. आधे घंटे बाद आए, तो मेघा जा चुकी थी. सुकीर्ति इस तरह घर खुला देखती, तो बहुत नाराज़ होती, पर आज सर को भौतिक चीज़ों से अधिक अपने मान-सम्मान और आज तक कमाए नैतिक मूल्यों की फ़िक्र थी.
बार-बार मूल्यांकन करके इस एकतरफ़ा तथाकथित प्यार में ख़ुद की भूमिका ढूंढ़ते. इस घटना के बाद मेघा स्कूल नहीं आई. एक हफ़्ते बाद उसके परेशान माता-पिता आए और बताया कि वह मानसिक रूप से टूट गई है. काउंसलर से मिलने की बात हुई, पर मेघा काउंसलर से मिलने को तैयार नहीं हुई. समीर सर का मन उन्हें कचोटने लगा था. उनकी अमनोवैज्ञानिक तरी़के से डांट उनकी छात्रा की ज़िंदगी खराब करने जा रही थी. एक दिन हिम्मत जुटाकर मेघा के घर पहुंचे.
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उसके माता-पिता के व्यवहार से ज़ाहिर था कि मेघा ने कुछ भी नहीं बताया है. “इन बच्चों के मन की बात जानना भी तो मुश्किल है. आप अगर उससे बात करके समस्या का पता लगा पाएं, तो कुछ हो... डर है, कहीं प्यार-व्यार के चक्कर में ना पड़ गई हो. मेघा पहले जैसी हो जाए बस...” वो बहुत देर तक मेघा की मम्मी की उम्मीद भरी नज़रों का सामना नहीं कर पाए.
मीनू त्रिपाठी
मेघा के आचरण को वो कई दिनों से देख रहे हैं. पढ़ाते समय छात्रों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर पाना एक टीचर के लिए अच्छा है, लेकिन ख़ुद पर टिकी मेघा की निर्बाध दृष्टि जाने क्यों परेशान करती है. कभी वो अनमनी-सी दिखती, तो कभी बेवजह ख़ुश. ना चाहकर भी वो मेघा की आंखों में अपने प्रति बढ़ते आकर्षण को सहज भांप लेते. इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति महज़ आकर्षण नया नहीं है, लेकिन अपने टीचर के प्रति ऐसे आकर्षण का होना संवेदनशील मुद्दा था.
आह्लादित समीर आंखें मूंदे सुबह की घटना को कितनी बार दोहरा चुके थे. आज सुबह-सुबह मेघा उनसे मिलने आई थी. आत्मविश्वास से दमकती डॉक्टर मेघा, उसकी आवाज़ अभी भी ज़ेहन में गूंज रही थी, “सर, मेरी जॉब पूना मेडिकल इंस्टिट्यूट में लगी है. जॉइनिंग से पहले आपको बताना चाहती थी कि मैं अब सागर कहलाने योग्य हो गई हूं. सर, आपने ठीक कहा था, बीते कल के बचपने को याद करके अब हंसी आती है. सर, मैंने उसी दिन सोच लिया था कि कुछ बनकर ही आपको अपना चेहरा दिखाऊंगी. मेरे नाम के आगे लगा डॉक्टर शब्द आपका टीचर्स-डे गिफ्ट है. सर, आप मेरे मेंटर हैं. थैंक्यू सर...” सुकीर्ति और जूही की आंखों में समीर की इस उपलब्धि के लिए प्रशंसा थी, तो समीर अपनी छात्रा की उपलब्धि में ख़ुद को मिले श्रेय से आनंदित थे और ये श्रेय दिया किसने? ख़ुद मेघा ने. वो मेघा जो कभी एक भ्रांति की शिकार हो गई थी, पर समय रहते उसने ना केवल ख़ुद को संभाला, बल्कि ख़ुद को ऐसे मुक़ाम पर खड़ा किया, जहां से वो अपने उज्ज्वल भविष्य और सुखद-संतोषजनक वर्तमान को निहारकर प्रसन्न थी. आज सालों बाद हुई मेघा से मुलाक़ात अतीत की यादों को उलट-पुलटकर देखने को मजबूर कर रही थी. समीर आंखें मूंदे बीते दिनों के उन चंद क्षणों को याद करने लगे, जिनमें मेघा थी.
“सर, मे आई कम इन...”
“येस कम इन.”
“सर, आप बिज़ी तो नहीं हैं? मुझे... जॉन कीट्स की कविता के कुछ डाउट्स क्लियर करने थे.”
“अभी बिज़ी हूं... कल क्लास में एक बार और पढ़ा दूंगा, सबका रिवीज़न हो जाएगा...” वो अभी भी अपनी उंगलियों को एक-दूसरे से मसल रही थी.
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“थैंक्यू सर...” बोलती हुई मेघा चली गई. ध्यान काम से हट गया था. तभी नवीन सर की आवाज़ आई, “क्या बात है समीर सर, आजकल जॉन कीट्स के डाउट्स लेकर स्टूडेंट्स बहुत आते हैं. भई क्लास में ठीक से नहीं पढ़ाया था क्या...?”
“नवीन सर, कुछ तो सोच-समझकर बोला कीजिए. अगले हफ़्ते से प्री-बोर्ड हैं. ऐसे में बच्चे हम टीचर्स को नहीं याद करेंगे, तो किसे करेंगे. यूं फालतू के मज़ाक मुझे पसंद नहीं.”
“अरे, आप तो बुरा मान गए. हम तो मज़ाक कर रहे थे. भई लैंग्वेज का यही तो फ़ायदा है. जीवन में रस भर देता है. हमारे साइंस और मैथ्स जैसे सूखे विषय, वैसे ही रूखे-सूखे हम टीचर्स भी हो जाते हैं.”
“वैसे नवीन सर ग़लत नहीं बोल रहे हैं. इन 12वीं के स्टूडेंट्स को क्लास में बिठाना मुश्किल होता है. ख़ासकर तब, जब क्लास लैंग्वेज की हो, लेकिन आपकी क्लास में बिल्कुल सन्नाटा होता है. सुई गिरे, तो वो भी सुनाई दे.” मीनल मैम चुप हुई थी कि पचास पार कर चुकी श्यामुता मैम हंसती हुई बोली, “भई ऐसे हैंडसम सर होंगे, तो बच्चे ध्यान तो देंगे ही. आधा ध्यान समीर सर पर भी दे दिया, तो क्लास में शांति हो जाएगी.” समीर ने वहां से खिसकने में ही भलाई समझी.
लाइब्रेरी में आकर सुकून मिला. कैसे कोई काम के बीच इन फालतू के मज़ाक के लिए समय निकाल लेता है. दो मिनट आंखें मूंदे वो वस्तुस्थिति का अवलोकन करते रहे. सबके हंसी-मज़ाक के अंतर्निहित संदेह का कोई बीज तो नहीं छिपा है. मेघा के आचरण को वो कई दिनों से देख रहे हैं. पढ़ाते समय छात्रों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर पाना एक टीचर के लिए अच्छा है, लेकिन ख़ुद पर टिकी मेघा की निर्बाध दृष्टि जाने क्यों परेशान करती है. कभी वो अनमनी-सी दिखती, तो कभी बेवजह ख़ुश. ना चाहकर भी वो मेघा की आंखों में अपने प्रति बढ़ते आकर्षण को सहज भांप लेते. इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति महज़ आकर्षण नया नहीं है, लेकिन अपने टीचर के प्रति ऐसे आकर्षण का होना संवेदनशील मुद्दा था. दूसरे दिन उन्होंने क्लास में कीट्स की कविता का रिवीज़न करा दिया.
उन दिनों स्कूल की छुट्टियां थीं. वो सुकून से अख़बार पढ़ रहे थे. कॉलबेल बजी, तो मेघा को देखा, “सर, सॉरी टु डिस्टर्ब यू. दरअसल, इंग्लिश में कुछ डाउट्स थे, तो मुझे आना पड़ा. इस बार इंग्लिश में सबसे ज़्यादा नंबर लाना चाहती हूं.”
“गुड, लेकिन बाकी सब्जेक्ट्स में कैसी तैयारी है तुम्हारी?”
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“ठीक है सर, पर इंग्लिश... सर, जबसे आपने पढ़ाना शुरू किया है, तब से ये मेरा फेवरेट सबजेक्ट बन गया है. आप कीट्स की रोमांटिक कविताएं कितनी अच्छी तरह से समझाते हैं, पूरी क्लास सम्मोहित रहती है और मैं... मुझे तो ऐसा लगता है कि बस आपको सुनती रहूं.” उसका चेहरा लाल हो गया था.
मीनू त्रिपाठी